अब वक़्त बदल गया है भारत विरोधी नारे अब नहीं चलेंगे...

एक वक़्त था जब भारत में रहकर भारत विरोधी नारे लगाये जाते थे और सरकार कुछ नहीं करती थी. बल्कि उसको राजनैतिक पार्टियों द्वारा भटका हुआ नौजवान और मासूम बच्चा करार दे दिया जाता था. परन्तु बदलते समय और बदलते सरकार में ऐसा नहीं है किसी भी युवा या बूढ़े के द्वारा अब इस तरह के नारे दिए जाने पर सरकार सख्त हो गयी है. साथ ही वो कड़ी से कड़ी कार्यवाही कर उसको सजा देने में भी पीछे नहीं है.

अभी पिछले ही वर्ष एक 19 वर्षीय लड़की ने भारत विरोधी नारे लगाए थे हालाँकि उसका मतलब सिर्फ उस बात को समझाना था वो पूरी तरह से भारत के समर्थन में थी लेकिन किसी ने उसकी नहीं सुनी थी और उसपर राजद्रोह के तहत आईपीसी की धारा 124-A लगा दी गई और जेल में डाल दिया गया लेकिन उसके कुछ समय बाद ही वो रिहा हो गयी क्योंकि पुलिस उसका चार्जशीट कोर्ट में दाखिल नहीं कर पाई थी. ऐसे एक नहीं हजारों केसेस हैं जिनको कुछ राजनैतिक पार्टियों द्वारा हवा दी गयी और उसका नतीजा भी सबके सामने आया.

राजद्रोह के पुराने मामले

31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पंजाब सरकार को दो कर्मचारियों बलवंत सिंह और भूपिंदर सिंह को 'खालिस्तान ज़िंदाबाद' और 'राज करेगा खालसा' का नारा लगाने के मामले में गिरफ़्तार किया गया था. बलंवत और भूपिंदर ने इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ घंटे बाद ही चंडीगढ़ में नीलम सिनेमा के पास ये नारे लगाए थे.

इन पर भी आईपीसी की धारा 124-A के तहत राजद्रोह का केस दर्ज हुआ था. ये मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और 1995 में जस्टिस एएस आनंद और जस्टिस फ़ैज़ानुद्दीन की बेंच ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस तरह से एक दो लोगों का नारा लगाना राजद्रोह नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच ने कहा था, "दो लोगों का इस तरह से नारा लगाना भारत की सरकार और क़ानून-व्यवस्था के लिए ख़तरा नहीं है. इसमें नफ़रत और हिंसा भड़काने वाला भी कुछ नहीं है. ऐसे में राजद्रोह का चार्ज लगाना बिल्कुल ग़लत है."

सरकारी वकील ने ये भी कहा कि इन्होंने 'हिन्दुस्तान मुर्दाबाद' के भी नारे लगाए थे. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इक्के-दुक्के लोगों के इस तरह के नारे लगाने से इंडियन स्टेट को ख़तरा नहीं हो सकता.

कोर्ट ने कहा कि सेडिशन का सेक्शन तभी लगाया जाना चाहिए जब कोई समुदायों के भीतर नफ़रत पैदा करे. कोर्ट ने ये भी कहा कि पुलिस ने इन्हें गिरफ़्तार करने में अपनी परिपक्वता नहीं दिखाई क्योंकि तनाव के माहौल में इस तरह की गिरफ़्तारियों से स्थिति और बिगड़ सकती है.

कन्हैया पर राजद्रोह का मामला

ठीक ऐसा ही आरोप जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और सीपीआई नेता कन्हैया कुमार के ऊपर लगा है. कन्हैया पर पर आरोप लगे लगभग 5 साल हो गए लेकिन अभी तक पुलिस आरोपपत्र दायर नहीं कर पाई है.

अब दिल्ली सरकार की अनुमति पर आरोपपत्र दायर हो सकता है लेकिन कोर्ट में अगर साबित भी होता है कि कन्हैया ने भारत विरोधी नारे लगाए थे तो जस्टिस एएस आनंद के फ़ैसले की नज़ीर ज़रूर दी जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "इस तरह के माहौल में ऐसी कार्रवाइयों से हम समस्या ख़त्म नहीं करते बल्कि बढ़ाते ही हैं." अदालत ने बलवंत सिंह और भूपिंदर सिंह से राजद्रोह का मामला हटा लिया था.

 

Post a Comment

0 Comments