कानपुर में पत्रकारिता को नया आयाम देने वाले शख्स गणेश शंकर विधार्थी

 

वैसे तो इतिहास के पन्नों में 26 अक्टूबर को बहुत सारी घटनाएं दर्ज हैं,लेकिन इस दिन को पत्रकारिता जगत में ऐतिहासिक इस लिए माना जाता है,क्योंकि पत्रकारिता में क्रांति लाने वाले गणेश शंकर विधार्थी का आज ही के दिन जन्म हुआ था। अगर आप पत्रकारिता में हैं तो विधार्थी जी के बारे में जरूर पढ़िएगा।

विधार्थी जी का नाम उन क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों में आता है जिन्होंने कानपुर की धरती पर पत्रकारिता को एक नया आयाम दिया। 26 अक्टूबर 1890 को इलाहाबाद के अतरसुइया मुहल्ले में कायस्थ परिवार में जन्में गणेश शंकर विधार्थी शुरू से क्रांतिकारी रहे।

पत्रकारिता जगत में अपनी पहचान बनाने वाले गणेश शंकर विधार्थी का बचपन मुंगावली में बीता,दरअसल उनके पिता जयनारायण मुंगावली के एक स्कूल में हेडमास्टर थे। विधार्थी जी की पढ़ाई की शुरुआत उर्दू से हुई और 1905 ई में उन्होंने भेलसा से अंग्रेजी मिडिल परीक्षा पास की थी।

उन्होंने सन 1907 में प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में एंट्रेंस परीक्षा पास की और आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद के कायस्थ पाठशाला में दाखिला लिया। इसी समय से उनका झुकाव पत्रकारिता की ओर दिखने लगा और वे प्रसिद्द लेखक पंडित सुन्दर लाल के साथ उनके हिंदी साप्ताहिक ‘कर्मयोगी’ के संपादन में सहायता करने लगे।

आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण लगभग एक वर्ष तक अध्ययन के बाद सन 1908 में उन्होंने कानपुर के करेंसी आफिस में 30 रु. महीने की नौकरी की पर एक अंग्रेज अधिकारी से कहा-सुनी हो जाने के कारण नौकरी छोड़ कानपुर के पृथ्वीनाथ हाई स्कूल में सन 1910 तक अध्यापन का कार्य किया। इसी दौरान उन्होंने सरस्वती,कर्मयोगी,स्वराज्य तथा हितवार्ता जैसे प्रकाशनों में अपने लेख लिखे।  

पत्रकारिता के दौरान उन्होंने विद्यार्थी उपनाम अपनाया और इसी नाम से लिखना शुरू किया। कुछ समय बाद उन्होंने हिंदी पत्रकारिता जगत के अगुआ पंडित महाबीर प्रसाद द्वेदी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया जिन्होंने विद्यार्थी को सन 1911 में अपनी साहित्यिक पत्रिका सरस्वती में उप-संपादक के पद पर कार्य करने का प्रस्ताव दिया पर विद्यार्थी की रूचि सैम-सामियिकी और राजनीति में ज्यादा थी इसलिए उन्होंने हिंदी साप्ताहिकी अभ्युदय में नौकरी कर ली।

पत्रकारिता जगत में पूरी तरह से मंझ जाने के बाद सन 1913 में विद्यार्थी कानपुर वापस लौट गए और एक क्रांतिकारी पत्रकार और स्वाधीनता कर्मी के तौर पर अपने जीवन की नई शुरूआत की। अन्याय के खिलाफ आवाज को बुलंद करने के लिए विधार्थी जी ने अपनी पत्रिका प्रताप का प्रकाशन शरू किया।

प्रताप के माध्यम से उन्होंने पीड़ित किसानों, मिल मजदूरों और दबे-कुचले गरीबों के दुखों को उजागर किया। हालांकि इस दौरान उन्हे अपनी क्रांतिकारी पत्रिकारिता के कारण बहुत कष्ट भी झेलने पड़े।  अंग्रेजी हुकूमत ने उनपर कई मुक़दमे किये,भारी जुर्माने लगाए और कई बार गिरफ्तार कर जेल भी भेजा,लेकिन उनका प्रयास निरंतर जारी रहा। जेल से छूटने के बाद वह फिर से अपने काम में निडरता से लग जाते थे।

सन 1916 में महात्मा गाँधी से उनकी पहली मुलाकात हुई जिसके बाद उन्होंने अपने आप को पूर्णतया स्वाधीनता आन्दोलन में समर्पित कर दिया। उन्होंने सन 1917-18 में होम रूल आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई और कानपुर में कपड़ामिल मजदूरों की पहली हड़ताल का नेतृत्व किया।

सन 1920 में उन्होंने प्रताप का दैनिक संस्करण आरम्भ किया और उसी साल उन्हें राय बरेली के किसानों के हितों की लड़ाई करने के लिए 2 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। सन 1922 में विद्यार्थी जेल से रिहा हुए पर सरकार ने उन्हें भड़काऊ भाषण देने के आरोप में फिर से गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। सन 1924 में उन्हें रिहा कर दिया गया पर उनके स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया था फिर भी वे जी-जान से कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की तैयारी में जुट गए।

सन 1925 में कांग्रेस के राज्य विधान सभा चुनावों में भाग लेने के फैसले के बाद गणेश शंकर विद्यार्थी कानपुर से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए और सन 1929 में त्यागपत्र दे दिया जब कांग्रेस ने विधान सभाओं को छोड़ने का फैसला लिया। सन 1929 में ही उन्हें यू.पी.कांग्रेस समिति का अध्यक्ष चुना गया और यू.पी. में सत्याग्रह आन्दोलन के नेतृत्व की जिम्मेदारी भी सौंपी गई। सन 1930 में उन्हें गिरफ्तार कर एक बार फिर जेल भेज दिया गया जिसके बाद उनकी रिहाई गाँधी-इरविन पैक्ट के बाद 9 मार्च 1931 को हुई।

मार्च 1931 में कानपुर में भयंकर हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए जिसमें हजारों लोग मारे गए। गणेश शंकर विद्यार्थी ने आतंकियों के बीच जाकर हजारों लोगों को बचाया पर खुद एक ऐसी ही हिंसक भीड़ में फंस गए जिसने उनकी बेरहमी से हत्या कर दी। 25 मार्च साल 1931 का वो दिन जिस दिन एक ऐसा मसीहा जिसने हजारों लोगों की जानें बचाई उसकी ही कानपुर के चौबे गोला चौराहे पर चाकू घोपकर हत्या कर दी गई।

प्रताप और विधार्थी जी के बारे में जितना लिखा जाए कम होगा। क्योंकि प्रताप के जरिए विधार्थी जी ने कई लोगों को न्याय दिलाया। कई सारे केस ऐसे हुए जो सही थे,लेकिन विधार्थी जी को उसमें फसाकर गलत तरीके से पेश किया गया और सजा सुनाई गए। वो जेल जाते रहे और आने के बाद फिर से शुरू करते रहे अपने पत्रकारिता से सरकार के खिलाफ जंग।

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