ICMR की
स्टडी हेल्थ साइंसेज के प्री-प्रिंट सर्वर MedRxiv पर पब्लिश हुई है। इसके नतीजे कहते हैं कि कोविड-19 वैक्सीन की मिक्सिंग न केवल इम्यूनिटी और एंटीबॉडी बढ़ाती
है,
बल्कि वैरिएंट्स के खिलाफ लड़ाई में भी ज्यादा असरदार है।
इसका मतलब है कि अगर आपने कोवीशील्ड और कोवैक्सिन के दोनों डोज लगवाए हैं तो उसके
मुकाबले दोनों वैक्सीन के एक-एक डोज लगवाने से कोविड-19 के खिलाफ ज्यादा प्रोटेक्शन मिलता है।
आइए जानते हैं कि
कोविड-19 वैक्सीन की मिक्सिंग क्या है? ICMR ने यह स्टडी कैसे की और इसके नतीजे कैसे आए?
आगे चलकर यह
वैक्सीनेशन प्रोग्राम को किस तरह प्रभावित कर सकती है?
क्या है कोविड-19 वैक्सीन की मिक्सिंग?
वैक्सीन की मिक्सिंग
एक स्टैंडर्ड प्रैक्टिस है। इबोला, रोटा वायरस के खिलाफ भी वैक्सीन की मिक्सिंग को आजमाया गया
था। अब तक जितने भी प्रयोग हुए, वह एक ही टेक्नोलॉजी से विकसित वैक्सीन के थे। कोविड-19 वैक्सीन को कम से कम 6 अलग-अलग टेक्नोलॉजी से बनाया गया है,
जैसे- इनएक्टिवेटेड, वायरस वेक्टर, mRNA, DNA आदि।
कोविड-19 वैक्सीन की मिक्सिंग पर ट्रायल्स पिछले साल ही शुरू हो गए
थे। असर बढ़ाने के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने एस्ट्राजेनेका की
वैक्सीन के साथ फाइजर की वैक्सीन की मिक्सिंग पर स्टडी की थी। इसके नतीजे अच्छे आए
थे। उसके बाद से कई देशों में अलग-अलग कॉम्बिनेशन पर स्टडी हुई है या चल रही है।
1. सप्लाई में कमी से निपटनाः भारत में सरकार की गाइडलाइन कहती है कि दोनों डोज एक ही
वैक्सीन के लेने होंगे। सप्लाई की कमी रही और दूसरे डोज के लिए वैक्सीन नहीं रही
तो क्या दूसरी वैक्सीन लगाई जा सकती है? इस सवाल का जवाब मिक्सिंग दे सकती है।
2. वैरिएंट्स के खिलाफ असरः भारत समेत 140 से अधिक देशों को कोविड-19 का डेल्टा वैरिएंट परेशान किए हुए है। डेल्टा और अन्य
वैरिएंट्स पर वैक्सीन का असर ओरिजिनल वायरस के मुकाबले कम है। ऐसे में वैक्सीन का
असर बढ़ाने का एक तरीका वैक्सीन की मिक्सिंग हो सकता है।
3. इम्यूनिटी बढ़ाना: इस समय जो वैक्सीन उपलब्ध हैं,
उनकी इफेक्टिवनेस 50% से 95% तक है। इनके ट्रायल्स अलग-अलग देशों में अलग-अलग
परिस्थितियों में हुए हैं। ऐसे में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए वैक्सीन की मिक्सिंग
एक विकल्प बनकर उभरा है।
4. एंटीबॉडी लेवल बढ़ानाः भारत समेत कई देशों में हुई स्टडी बताती है कि कोविड-19 वैक्सीन वायरस के खिलाफ अल्टिमेट प्रोटेक्शन नहीं है।
वैक्सीनेशन के बाद भी इन्फेक्शन हो सकता है। इस वजह से एंटीबॉडी लेवल बढ़ाने के
लिए अलग-अलग वैक्सीन के कॉम्बिनेशन आजमाए जा रहे हैं। मिडिल ईस्ट के कई देशों में
चीनी वैक्सीन के दोनों डोज देने के बाद बूस्टर डोज के तौर पर फाइजर की वैक्सीन का
इस्तेमाल हो रहा है।
दरअसल,
यह स्टडी एक गफलत से शुरू हुई थी। कोविड-19 वैक्सीनेशन के दौरान मई में यूपी में एक गड़बड़ हो गई थी। 20 लोगों को पहला डोज कोवीशील्ड का लगा था। दूसरा डोज
कोवैक्सिन का लग गया। इस गलती पर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR)
ने वैक्सीन की मिक्सिंग पर स्टडी की। वेल्लोर के क्रिश्चियन
मेडिकल कॉलेज में भी ऐसी ही स्टडी चल रही है।
ICMR ने
गफलत का शिकार हुए लोगों की हेल्थ पर नजर रखी। 20 में से 18 लोग ही स्टडी में शामिल हुए। इन्हें पहला डोज कोवीशील्ड का
लगा और दूसरा कोवैक्सिन का। स्टडी में कोवैक्सिन और कोवीशील्ड के दो-दो डोज लगवाने
वाले 40-40 लोगों के दो अलग-अलग ग्रुप बनाए गए। इस तरह 98 लोगों पर यह स्टडी की गई।
यह दुनियाभर में
एडिनोवायरस वेक्टर प्लेटफॉर्म के साथ इनएक्टिवेटेड वायरस वैक्सीन की मिक्सिंग पर
पहली स्टडी है। इससे पहले वायरस वेक्टर के साथ mRNA या वायरस वेक्टर के साथ वायरस वेक्टर की स्टडी हुई है।
ICMR की स्टडी के नतीजे क्या कहते हैं?
इन नतीजों को हम
पांच हिस्सों में बांट सकते हैं-
1. सेफ्टीः
कोवीशील्ड के साथ कोवैक्सिन की मिक्सिंग सेफ है। स्टडी में शामिल किसी भी व्यक्ति
में डोज देने के 30 मिनट में कोई गंभीर लक्षण नहीं दिखे हैं।
2. इम्यूनिटीः
कोवीशील्ड और कोवैक्सिन की मिक्सिंग से SARS-CoV-2 वायरस के खिलाफ मजबूत इम्यून रिस्पॉन्स देखने को मिला है।
यह रिस्पॉन्स कोवीशील्ड या कोवैक्सिन के दोनों डोज से भी अधिक है।
3. वैरिएंट्सः
कोरोना वायरस के अल्फा, बीटा और डेल्टा वैरिएंट्स के खिलाफ मिक्सिंग ने बेहतर नतीजे दिए हैं।
इम्यूनोजेसिटी की स्टडी में यह बात सामने आई है।
4. एंटीबॉडीः
वैक्सीन की मिक्सिंग करने पर एंटीबॉडी ज्यादा बनती है और ज्यादा समय तक टिकती है।
5. साइड इफेक्ट्सः वैक्सीन की मिक्सिंग और एक ही वैक्सीन के दोनों डोज लगाने पर माइल्ड साइड
इफेक्ट्स देखने को मिले। सूजन, दर्द जैसे लक्षण ही दिखे।
भारत के लिए
मिक्स-एंड-मैच स्ट्रैटजी क्यों जरूरी है?
इस समय भारत में 5 वैक्सीन को इमरजेंसी अप्रूवल मिला हुआ है। तीन वैक्सीन
उपलब्ध हैं। आने वाले महीनों में सात से आठ कोविड वैक्सीन और उपलब्ध होंगी। इनमें
वायरल वेक्टर, mRNA, डीएनए
और रीकॉम्बिनेंट प्रोटीन प्लेटफॉर्म पर बनी वैक्सीन शामिल होंगी।
जब वैक्सीन के
विकल्प बढ़ जाएंगे तब एक ही वैक्सीन के दोनों डोज लगवाना बड़ी चुनौती होगी। हमारे
ग्रामीण इलाकों में आज भी बड़ी संख्या में आबादी निरक्षर है। उनके लिए वैक्सीन के
नाम याद रखना आसान नहीं रहने वाला।
भारत को कई ऐसे
कॉम्बिनेशन आजमाने का मौका मिलेगा, जैसा दुनिया के किसी देश में नहीं है। कुछ वैक्सीन बहुत
सस्ती हैं और उन्हें बड़े पैमाने पर बनाया जा सकता है। अगर ये कॉम्बिनेशन सफल रहे
तो गरीब और मध्यम आय वाले देशों के लिए यह बेहद कारगर साबित हो सकते हैं। उन्हें
सप्लाई बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
अब तक इन देशों ने
दी मिक्स-एंड-मैच की इजाजत
अमेरिकाः 1 जून को घोषणा की कि पूरी तरह से वैक्सीनेट हो चुके वयस्कों को वैक्सीन की
मिक्सिंग के बूस्टर शॉट देंगे। स्टडी के नतीजे सितंबर तक आएंगे।
कनाडाः 1 जून को तय किया कि जिन्हें एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन का पहला डोज लगा है,
वे फाइजर या मॉडर्ना की वैक्सीन को दूसरे डोज के तौर पर ले
सकते हैं।
यूकेः जनवरी में तय किया गया कि अगर किसी को नहीं पता कि पहला
डोज किस वैक्सीन का था या उसी वैक्सीन का दूसरा डोज उपलब्ध नहीं है तो उपलब्ध
वैक्सीन लगवा सकते हैं। फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन को भी एक-दूसरे की जगह
इस्तेमाल करने की इजाजत दी गई है।
फ्रांसः अप्रैल में 55 वर्ष से कम उम्र वालों को एस्ट्राजेनेका के पहले डोज के
बाद फाइजर या मॉडर्ना की वैक्सीन के दूसरे डोज की इजाजत दी।
दक्षिण कोरियाः 20 मई को कहा कि वह एस्ट्राजेनेका के डोज के साथ फाइजर या किसी अन्य वैक्सीन के
साथ मिक्स करने पर ट्रायल्स करेगा।
स्पेनः 19 मई को 60
वर्ष से कम उम्र वालों को एस्ट्राजेनेका के पहले डोज के बाद फाइजर के दूसरे डोज की
इजाजत दी। कार्लोस III हेल्थ इंस्टीट्यूट में शुरुआती स्टडी के बाद यह फैसला लिया
गया।
स्वीडनः 20 अप्रैल को 65 वर्ष से कम उम्र वालों को एस्ट्राजेनेका के पहले डोज के साथ किसी और वैक्सीन
के दूसरे डोज की इजाजत दी।
चीनः अप्रैल में कैनसिनो बायोलॉजिक्स और चोंगकिंग जिफई
बायोलॉजिकल प्रोडक्ट्स की वैक्सीन की मिक्सिंग के ट्रायल्स शुरू किए।
रूसः जून में अरब देशों में चीनी वैक्सीन के साथ स्पुतनिक वी
वैक्सीन की मिक्सिंग के ट्रायल्स शुरू करने की बात कही थी।
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