आखिर यह मसला
क्या है?
पिछले बुधवार को यानी 7 अप्रैल को जब क्लाइमेट मामलों के अमेरिकी राजदूत जॉन कैरी भारत आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने वाले थे, तब अमेरिकी नेवी का युद्धपोत USS जॉन पॉल जोन्स (DDG 53) यानी डिस्ट्रॉयर बिना अनुमति भारत की सीमा में घुस आया। भारत को चुनौती दी और फिर धमकी भी कि आगे भी वह ऐसा ही करेगा।
दरअसल, UN के समुद्री कानून के मुताबिक समुद्र तट से 200 नॉटिकल मील (370 किमी) तक EEZ यानी एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन होता है। ऐसे में भारत के EEZ में प्रवेश से पहले US के जहाज को अनुमति लेनी थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। अमेरिकी जहाज 130 नॉटिकल मील (240 किमी) तक घुस आया। यह दावा खुद अमेरिकी नौसेना के 7वें बेड़े ने किया।
यह FONOP क्या है और भारत में क्यों किया?अमेरिकी नौसेना
का कहना है कि उसका यह ऑपरेशन फ्रीडम ऑफ नेविगेशन ऑपरेशन था यानी FONOP
और वह इस तरह के ऑपरेशन से उन देशों की समुद्री सीमा में
घुसकर चुनौती देता है, जो अपनी समुद्री सीमा को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं। यह किसी
एक देश के खिलाफ नहीं है और न ही यह किसी तरह का कोई पॉलिटिकल स्टेटमेंट है।
अमेरिकी
नौसेना इस तरह के ऑपरेशन 1979 से करती रही है। अमेरिकी सेनाएं हिंद-प्रशांत क्षेत्र में
डेली बेसिस पर ऑपरेट करती हैं। सभी ऑपरेशन अंतरराष्ट्रीय कानून में डिजाइन
होते हैं। यह
अभियान दिखाते हैं कि US अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत उड़ान भरेगा,
तैरेगा और ऑपरेट करता रहेगा। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के
मुताबिक FONOPs
हर साल सोच-समझकर प्लान किए जाते हैं।
भारत के विदेश
मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि भारतीय सुरक्षा बलों ने जहाज के गुजरने तक उसकी
सतत निगरानी की। डिप्लोमेटिक चैनल्स से भारत ने EEZ में घुसपैठ से संबंधित चिंताओं से अमेरिका को वाकिफ करा
दिया है। पर अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि उसका ऑपरेशन
अंतरराष्ट्रीय कानून के दायरे में था। साथ ही उसने आरोप भी लगा दिया कि भारत अपनी
सीमा को बढ़ाकर बता रहा है।
1 अक्टूबर 2019 से 30
सितंबर 2020 तक अमेरिका ने 19 देशों को चुनौती देते हुए FONOPs को अंजाम दिया। इसमें कुछ देशों को कई बार चुनौतियां दी
गईं। इन देशों में चीन और पाकिस्तान के साथ-साथ उसका दोस्त जापान भी शामिल रहा है।
...जो भारत के लिए कानून है,
वह अमेरिका के
लिए क्यों नहीं?
1995 में UN में समुद्री सीमा संबंधी कानून बना। इस पर भारत ने हस्ताक्षर किए हैं। इसके
अनुसार किसी देश के समुद्री तट से 200 नॉटिकल मील यानी 370 किमी तक उस देश का EEZ यानी एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन होगा। पर अमेरिका ने अब तक
इस कानून पर साइन नहीं किए हैं। यानी उसके लिए यह कानून बाध्यकारी नहीं है।
हकीकत यह भी
है कि समुद्र में तट से 12 नॉटिकल मील यानी करीब 22 किमी तक ही सीमा मानी जाती है। मुख्य भूमि से 200 नॉटिकल मील तक EEZ को माना जाता है। इस लिहाज से देखें तो अमेरिका ने कोई
अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं तोड़ा है। यूएस नेवी की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका भारतीय समुद्री सीमा में 1985 से ही इस तरह के ऑपरेशन कर रहा है।
भारतीय
विशषज्ञों का क्या कहना है?
पूर्व नेवी
प्रमुख अरुण प्रकाश का कहना है कि भारतीय EEZ में अमेरिका के 7वें बेड़े ने घरेलू कानून तोड़ा है। दक्षिण चीन-सागर में
अमेरिकी जहाजों के इस तरह के मिशन समझ में आते हैं, पर भारत में ऐसे ऑपरेशन से क्या संदेश देने की कोशिश की जा
रही है?
वहीं,
रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर और डिफेंस एनालिस्ट ब्रिगेडियर वी
महालिंगम ने भी इस घटना की पुष्टि की और सोशल मीडिया पर कहा कि अमेरिका अपना असली
रंग दिखा रहा है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर को सावधान हो जाना चाहिए!
लगता तो नहीं
है। पिछले हफ्ते ही जॉन कैरी भारत आए थे और भारतीय नेताओं के साथ फोटो खिंचवाए थे।
वहीं,
दोनों देशों की नेवी टीमें क्वाड-प्लस फ्रांस की नैवल
एक्सरसाइज में भी शामिल हुई थी, जो बुधवार तक चली थी। फिर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के
खिलाफ भागीदारी बढ़ाने के लिए अमेरिका ने भारत की मदद भी मांगी है। ऐसे में पूर्व
नौसेना प्रमुख का सवाल लाजमी है कि अमेरिकी नौसेना आखिर भारत को क्या संदेश देना
चाहती है?
पेंटागन के
प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा कि अमेरिकी नौसेना का ऑपरेशन अंतरराष्ट्रीय कानून के
अनुरूप है। हम अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक उड़ान भरने,
समुद्र में ऑपरेट करने और ऑपरेशंस के अपने अधिकार और
जिम्मेदारी को बनाए रखेंगे।
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