रुमेटाइड अर्थराइटिस एक ऑटोइम्यून डिज़ीज़ है। इसके और
भी प्रकार हैं, जिनके लक्षण ऐसे
हो सकते हैं - सुबह उठने के बाद शरीर के कई जोड़ों में दर्द, जो कुछ देर
चलने-फिरने या थोड़ा व्यायाम करने से कम हो जाता हो, ऐसा आपने अनुभव किया है? क्या जोड़ों की
अकड़न-जकड़न और सुजन, बार-बार में मुंह में छाले होना, त्वचा पर लाल
चकत्ते उभरना, बालों का लगातार
झड़ना, बार-बार बुख़ार
आना, ठंड में उंगलियां
नीली पड़ना, मुंह-आंखों-चमड़ी
का सूखापन, मांसपेशियों में
कमज़ोरी जैसे लक्षणों को ख़ुद में उभरते देखा है, वो भी 6-8 हफ्तों तक- तो आपको
रुमेटोलॉजिस्ट व क्लीनिकल इम्यूनोलॉजिस्ट से अपनी जांच ज़रूर करवा लेनी चाहिए। ये
सुपर स्पेशलिस्ट चिकित्सक ऑटोइम्यून रोगों के विशेषज्ञ होते हैं, जो इन लक्षणों को
समझ कर बता सकते हैं कि आपको कौन-सा ऑटोइम्यून रोग है। ऑटोइम्यून रोगों के अन्य
प्रकारों में ल्यूपस, सोरोइटिक अर्थराइटिस, शोग्रेंस सिंड्रोम, रीएक्टिव
अर्थराइटिस, वैस्क्यूलाटिस
एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस, जैसे मस्क्यूलोस्केलेटल (मांसपेशियों व हडि्डयों के)
रोग शामिल हैं। 70-80 फीसदी तक मामलों में विशेषज्ञ महज़ लक्षणों से ही रोग की
पहचान कर लेते हैं, लेकिन इनकी चंद जांचें भी हैं, जिनका मार्गदर्शन
विशिष्ट निदान तैयार करने में विशेषज्ञों की मदद करता है।
अर्थराइटिस और रुमेटाइड अर्थराइटिस
अर्थराइटिस जोड़ों के दर्द को कहा जाता है। यूं तो
अर्थराइटिस के 100 प्रकार हैं, जिनके अलग-अलग जोखिम और लक्षण हैं, लेकिन इसके सबसे
ज़्यादा आम हैं, डीजेनेरेटिव
ऑस्टियोअर्थराइटिस यानी जोड़ों के क्षय और दूसरा प्रकार इन्फ्लेमेट्री अर्थराइटिस
(जिसका सबसे आम प्रकार रुमेटेडाइड अर्थराइटिस)। इससे पीड़ित होने और पीड़ा दोनों ही
महिलाओं के हिस्से में अधिक आते हैं। हर चार में से एक महिला को अर्थराइटिस होती
है। ऑस्टियो अर्थराइटिस महिलाओं को ज़्यादा उम्र में पकड़ती है, लेकिन उनकी पीड़ा
बहुत अधिक होती है, वहीं रुमेटाइड अर्थराइटिस पुरुषों की तुलना में
महिलाओं की तीन गुना अधिक संख्या में रोगी बनाता है।
जहां पुरुषों को कूल्हों के जोड़ों में दर्द सताता है, वहीं महिलाओं को
घुटनों और हाथों के जोड़ों में अधिक तकलीफ़ होती है, जो ज़ाहिर है उनके दैनिक
क्रियाकलापों को बहुत हद तक बाधित करती है।
महिलाओं को अधिक सावधान और सुरक्षित रहने की ज़रूरत
है। जहां उनके हॉर्मोन के उतार-चढ़ाव से उनके लिए ख़तरा बढ़ता है, वहीं वज़न में
तेज़ी से बढ़ोतरी भी मुश्किलें बढ़ाती है। शरीर में एक किलो वज़न की बढ़ोतरी घुटनों पर
पांच गुना ज़्यादा दबाव का कारण बनती है।
हमारे जोड़ों की हड्डियों के ऊपर ऊतकों की एक लचीली
परत होती है, जिसे कार्टिलेज
कहते हैं। यह हमारे जोड़ों को गतिविधियों के दौरान होने वाले झटकों से बचाती है। जब
इस परत को क्षति पहुंचती है, तो यह कमज़ोर होती जाती है और जोड़ कम लचीले होते हैं, जिससे उनकी गति
उतनी सहज नहीं रह पाती और दर्द होता है। बढ़ता वज़न कार्टिलेज की क्षति का एक कारण
है और दूसरा है व्यायाम विहीन, निष्क्रिय जीवनशैली। किसी इंफेक्शन के कारण या कार्टिलेज
को पहुंची क्षति से ऑस्टियो अर्थराइटिस होता है। रुमेटाइइड अर्थराइटिस होने के
कारणों में इम्यून सिस्टम के रीएक्टिव होने के कारण कोशिकाएं और ऊतक ही अंगों पर
हमला कर देते हैं। यह रक्त से जुड़ा रोग है और किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है, यहां तक कि इसके कारण
30 प्रतिशत फेफेड़े क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। ऑटोइम्यून रोगों (जिसमें रुमेटाइड
अर्थराइटिस भी शामिल है) की पहचान जल्दी कर लेना ज़रूरी है। देरी होने पर अंगों में
विकृति, स्थायी ख़राबी, जोड़ों का स्थायी
रूप से जकड़ जाने के अलावा कभी-कभी तो जान भी जोखिम में पड़ सकती है।
निदान रुमेटाइड अर्थराइटिस के इलाज में दवाओं (DMARDS) और व्यायाम (शारीरिक गतिविधि) की बड़ी भूमिका होती है। दवाएं नियमित रूप से ली जाएं, संतुलित आहार का साथ हो और व्यायाम किया जाए, तो धीरे-धीरे रोग नियंत्रित कर लिया जाता है। चंद ऑटोइम्यून रोगों की दवाएं भी बंद कर दी जाती हैं, तो कुछ में धीरे-धीरे कमी लाकर रोग पर नियंत्रण रखा जा सकता है।
आवश्यक कदम
- रोगी या स्वस्थ हर व्यक्ति को हर रोज़ कम से कम
चालीस मिनट व्यायाम करना चाहिए। कोई शारीरिक गतिविधि वाला खेल जैसे बैंडमिंटन या
टेबल टेनिस रोज़ खेल सकें, तो और बेहतर। खेल इंसान में जूझने, जीतने और खेल में
बने रहने की सकारात्मकता बनाए रखते हैं।
- टहलना, योग आदि भी कर सकते हैं।
व्यायाम जहां रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं, वहीं दवाओं के प्रभाव को भी
बढ़ाते हैं।
- घर का बना संतुलित भोजन ग्रहण करना, ठंडे, बासी, पुराने और
प्रिज़्वर्ड खाद्यों से दूरी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है।
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