आज हम उस ज़स्बात को बया करेंगे जी हा अगर हम है
तोह हिंदुस्तान है, हिंदुस्तान है तो हिंदी है जिस हिन्दी को आज हम
बोलते-सुनते-पढ़ते हैं, वो 3400
साल में बनी है। 1500 ईसा पूर्व में हिन्दी की
मां कही जाने वाली संस्कृत की शुरुआत हुई थी। 1900 ईसवी में
हिन्दी खड़ी बोली में लिखना-पढ़ना शुरू किया गया।
दरअसल, इंसान कम प्रयास से अधिक फायदा पाना चाहता है। हिन्दी दिवस के मौके पर हम इसी हिन्दी भाषा का पूरा इतिहास लेकर आए हैं। इसमें पैदा होने से लेकर बड़े होने तक की पूरी कहानी है।
हिन्दी दिवस औपचारिकता बनकर रह गया है:
हिन्दी को संविधान में राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिला है:
हिन्दी के प्रचार-प्रसार की बात करते हैं लेकिन हिन्दी बोलने और हिन्दी में अपनी बात रखने पर दूसरे को नीची निगाह से देखाते हैं। प्रशासनिक सेवाओं में हिन्दी माध्यम से परीक्षा देने वाले विद्धार्थी जानते हैं कि उनका चयन हिन्दी भाषा से मुश्किल से होगा, इसलिए वो दिन-रात अंग्रेजी को समझने और पढ़ने में लगाते हैं। हिन्दी भाषा पर एक सीमा तर गर्व किया जा सकता है क्योंकि उसे देश में ही दर्जा नहीं दिया जा रहा। आज़ादी के दौर में गांधी जी ने हिन्दी को राष्ट्र भाषा का दर्जा दे दिया था लेकिन उनके बाद परिस्थितियां काफी बदल गई। उस समय हिन्दी को राष्ट्रीय एकता के रूप में देखा जाता था, लेकिन आज हिन्दी से रूतबे को दिक्कत होती है।
भाषाओं को विकसित करना भी
जरूरी:
प्रोफेसर राजेंद्र ने बताया कि इस समय हिन्दी के साथ ही अन्य
प्रांतीय भाषाओं को भी विकसित करने की जरूरत है। कुछ जगहों पर हिन्दी ने अपना
मुकाम बनाया है। कामकाज को बढ़ाने के लिए अरूणाचल प्रदेश और अंडोमान निकोबार में
हिन्दी भाषा का चलन बड़ा है। तामिल आज भी हिन्दी का विरोध करते हैं।
हिन्दी भाषा को अंग्रेजी
शब्दों के इस्तेमाल से बिगाड़ा जा रहा है:
हिन्दी के साथ चार अंग्रेजी के शब्दों को जोड़ कर
हिन्दी के स्वरूप को बिगाड़ा जा रहा है। जब हमारे पास हिन्दी में प्रचालित शब्द
मौजूद है तो उसके साथ पुस्तक की जगह बुक का इस्तेमाल करके हिन्दी को खराब किया जा
रहा है। हिन्दी में उपलब्ध शब्दों को छोड़कर अंग्रेजी के शब्दों का चलन गलत है
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