बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में नाबालिग दुष्कर्म पीड़ित को 29 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को
टर्मिनेट करने की इजाजत दे दी है। हाईकोर्ट ने मेडिकल एक्सपर्ट्स का पैनल बनाया
था। पैनल ने 9 सितंबर को हाईकोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी,
जिसमें पैनल ने कहा कि प्रेग्नेंसी से नाबालिग बहुत घबरा गई है। अगर
प्रेग्नेंसी को कंटीन्यू रखा गया तो इसका नाबालिग की मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़
सकता है।
छह महीने पहले तक देश में 24 हफ्ते से अधिक की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करना
गैरकानूनी था। नए कानून के बाद यह संभवतः पहला मौका है, जब 29
हफ्ते की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की मंजूरी दी गई है। आइए
जानते हैं कि यह मामला क्या है? इस संबंध में नया कानून क्या
कहता है? नए प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन कानून ने महिलाओं को किस
तरह सुरक्षित एबॉर्शन के विकल्प दिए हैं?
क्या है यह नया मामला?
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यह केस पालघर का है। नाबालिग दुष्कर्म पीड़ित ने एडवोकेट एश्ले
कुशर के माध्यम से एबॉर्शन को मंजूरी मांगी थी। बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस उज्ज्वल
भुयान और जस्टिस माधव जामदार की डिविजन बैंच ने इस मामले में 7 सितंबर को सर जेजे हॉस्पिटल के
डीन के नेतृत्व में मेडिकल बोर्ड बनाया था। पैनल ने 9 सितंबर
को अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट को सौंपी।
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मेडिकल पैनल की रिपोर्ट में कहा गया कि भ्रूण में कोई विकार नहीं हैं, पर नाबालिग बहुत ज्यादा डरी हुई
हैं। अगर प्रेग्नेंसी को जारी रखा गया तो नाबालिग की मानसिक सेहत खराब हो सकती है।
इस आधार पर बोर्ड ने प्रेग्नेंसी के मेडिकल टर्मिनेशन यानी एबॉर्शन की सिफारिश की
थी।
· हाईकोर्ट ने 10 सितंबर को इस मामले में सुनवाई की और याचिकाकर्ता की बेटी को जेजे हॉस्पिटल में एबॉर्शन की इजाजत दे दी। हाईकोर्ट ने भ्रूण के खून के और DNA सैम्पल्स लेने के आदेश दिए हैं ताकि जांच एजेंसी आरोपियों के खिलाफ केस को मजबूत बना सके।
क्या कहता है भारत का
एबॉर्शन कानून?
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संसद से पारित होने के बाद 25 मार्च 2021 से नया एबॉर्शन
कानून लागू हुआ है। नए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) एक्ट 2021
ने 1971 के मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MPT)
एक्ट की जगह ली है। WHO के अनुसार भारत का नया
एबॉर्शन कानून सभी को समग्र एबॉर्शन केयर देने के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (SDGs)
को पूरा करता है।
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अगर गर्भ 24 हफ्ते
से ज्यादा का है तो 1971 के कानून में एबॉर्शन की अनुमति
नहीं थी, पर नए कानून के तहत मेडिकल बोर्ड की रजामंदी पर ऐसा
किया जा सकता है। नया कानून महिलाओं को 20 हफ्ते के गर्भ को
एक डॉक्टर की सलाह पर खत्म करने की इजाजत देता है। विशेष कैटेगरी वाली महिलाओं के
लिए दो डॉक्टरों की सलाह पर पहले 20 हफ्ते तक एबॉर्शन की
अनुमति थी, जिसे बढ़ाकर अब 24 हफ्ते
किया गया है।
महिलाओं की प्राइवेसी
को लेकर नया कानून क्या कहता है?
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सुप्रीम कोर्ट के वकील आशुतोष शेखर पारचा का कहना है कि कानून में
महिलाओं की प्राइवेसी की बात की गई है। सरकार ने अविवाहित महिलाओं को भी कानूनी
तौर पर एबॉर्शन की इजाजत दी है। वरना, असुरक्षित तरीके से एबॉर्शन होता था और महिलाओं की
जिंदगी खतरे में पड़ जाती थी।
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मुंबई में जसलोक हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में ऑब्स्टेट्रिक्स और
गायनेकोलॉजी विभाग में कंसल्टेंट डॉ. सुदेशना रे कहती हैं कि कानूनन एबॉर्शन
महिलाओं की प्राइवेसी का ध्यान रखेगा। 18 साल से ज्यादा उम्र की महिलाएं अगर चाहें तो अपने
माता-पिता या गार्जियन और पार्टनर को भी बिना बताए एबॉर्शन करा सकेंगी। नाबालिग के
केस में माता-पिता या कानूनी गार्जियन को प्रक्रिया में शामिल करना होगा। बिल में ‘विवाहित महिला या उसके पति’ के स्थान पर ‘महिला या उसका पार्टनर’ लिखा गया है।
गर्भ अगर 20 हफ्ते से अधिक का हो तो क्या
होगा?
महिलाएं अब एक डॉक्टर की सलाह से 20 हफ्ते के गर्भ को टर्मिनेट करा सकेंगी। विशेष
कैटेगरी वाली महिलाओं के लिए कानूनी रूप से गर्भपात के लिए गर्भ की उम्र को 20
से बढ़ाकर 24 हफ्ते किया गया है।
नए बिल के अनुसार अगर गर्भ 20 हफ्ते से ज्यादा का है तो एबॉर्शन हो सकेगा। पर
इसकी शर्तें हैं- गर्भवती महिला के जीवन को खतरा हो या उसके शारीरिक या मानसिक
स्वास्थ्य को गहरा आघात लगने का डर हो, या जन्म लेने वाले
बच्चे को गंभीर शारीरिक या मानसिक विकलांगता का डर हो। इस कैटेगरी में यह
परिस्थितियां महत्वपूर्ण होंगी- 1. अगर अनचाहा गर्भ ठहरा हो। महिला या उसके पार्टनर
ने गर्भावस्था से बचने के लिए जिन उपायों को आजमाया हो, वह
फेल हो जाए। 2. अगर महिला आरोप लगाए कि दुष्कर्म की वजह से
गर्भ ठहरा है। इस तरह की प्रेग्नेंसी उस महिला के लिए मानसिक रूप से अच्छी नहीं
होगी। हाईकोर्ट का आदेश इसी के आधार पर है। 3. जहां भ्रूण
में विकृति हो और इसका पता 24 हफ्ते बाद चले तो मेडिकल बोर्ड
की सलाह के बाद गर्भपात किया जा सकेगा।
अगर अजन्मे बच्चे में
किसी तरह के दोष दिखते हैं तो क्या होगा?
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भारत में महिलाओं को सुरक्षित एबॉर्शन उपलब्ध कराने के लिए
प्रयासरत नेटवर्क- प्रतिज्ञा कैम्पेन फॉर जेंडर इक्वलिटी एंड सेफ एबॉर्शन की एक
रिपोर्ट कहती है कि 2016 से 2019
के बीच 194 याचिकाएं हाईकोर्टों और सुप्रीम
कोर्ट में दाखिल हुई। महिलाओं ने अलग-अलग कारणों से एबॉर्शन की इजाजत मांगी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने भी टेक्नोलॉजी में हुई प्रगति को देखते हुए एबॉर्शन नियमों में
बदलाव की पैरवी की थी।
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इस मामले में कानून स्पष्ट है। विकृति होने पर एबॉर्शन के लिए
भ्रूण की उम्र सीमा तय नहीं की गई है। पर हर राज्य में बना मेडिकल बोर्ड ही तय
करेगा कि भ्रूण में विकृति की वजह से एबॉर्शन उचित होगा या नहीं।
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आम तौर पर गर्भावस्था के कई चरणों में भ्रूण में विकृति का पता
लगाया जा सकता है। ज्यादातर विकृतियां 4 महीने में सामने आ जाती हैं। कुछ जेनेटिक
विकृतियां साढ़े 4 महीने बाद सामने आती हैं। इसके लिए
जेनेटिक टेस्टिंग जैसे टेस्ट बढ़ाने होंगे। अक्सर जब तक इस तरह के टेस्ट के रिजल्ट
आते हैं, भ्रूण की उम्र 20 हफ्ते से
अधिक हो चुकी होती है।
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डॉ. रे के मुताबिक कार्डियक और फेशियल डिफेक्ट्स अक्सर 20 हफ्ते या उसके बाद होने वाले
अल्ट्रासाउंड (USG) में पता चलती है। MTP बिल में यह बदलाव विकृति का पता चलने के बाद माता-पिता को एबॉर्शन की
इजाजत देता है। अब तक तो ऐसे बच्चों को जन्म देने के सिवा कोई विकल्प नहीं था।
अक्सर फुल टर्म में पैदा होते ही ऐसे बच्चे दम तोड़ देते हैं।
नए कानून को लेकर विवाद
क्या है?
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पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 में स्वेच्छा से गर्भपात
कराना अपराध है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी एक्ट 1971 कुछ शर्तों पर मेडिकल डॉक्टरों से एबॉर्शन की इजाजत देता है। नए बिल में
कहा गया है कि एबॉर्शन सिर्फ गायनेकोलॉजी या ऑब्स्टेट्रिक्स में विशेषज्ञता वाले
डॉक्टर ही कर सकेंगे। पर ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे डॉक्टरों की 75% कमी है। ऐसे में सुरक्षित गर्भपात के लिए स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचने
में ग्रामीण महिलाओं को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
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डॉ. रे के मुताबिक स्पेशल कैटेगरी की महिलाओं में किसे शामिल किया
जाएगा, इस
बारे में कानून में कुछ नहीं है। पर रेप विक्टिम, दिव्यांग
महिलाएं और नाबालिगों को इसमें जरूर शामिल किया जाएगा। अक्सर ऐसे मामलों में
इन्हें शरीर में होने वाले बदलाव समझ नहीं आते और डर, शर्म
या दोषी होने की वजह से गार्जियन को बताने से बचती हैं। वैसे, 20 से 24 हफ्ते के बीच एबॉर्शन के लिए दो रजिस्टर्ड
मेडिकल प्रैक्टिशनर्स की सहमति की जरूरत होगी।
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