हमारा DNA फिर चर्चा में है। जब भी कोई महत्वपूर्ण चुनाव आने वाला होता है, DNA कहीं न कहीं से चर्चा में आ ही जाता है। इस बार उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव से एक साल पहले यह मामला उठा है। हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के चीफ मोहन भागवत ने गाजियाबाद में कहा कि सभी भारतीयों का DNA एक है।
आइए जानते हैं कि चुनावों के दौरान या
उनसे पहले चर्चा में आने वाला यह DNA होता
क्या है? इससे पहले कब DNA चर्चा में
आया था? जो दावा भागवत ने किया है, उसमें
कितनी सच्चाई है?
गाजियाबाद में क्या कहा भागवत ने?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)
प्रमुख मोहन भागवत ने गाजियाबाद में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी
नरसिम्हा राव के सलाहकार रहे डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार की किताब 'वैचारिक
समन्वय-एक व्यावहारिक पहल' रिलीज की। यह किताब अयोध्या-बाबरी
विवाद पर आधारित है।
इस दौरान भागवत ने कहा- 'ये सिद्ध हो चुका है कि हम पिछले 40 हजार साल से एक पूर्वजों के वंशज हैं।
सभी भारतीयों का DNA एक है, भले ही वे
किसी भी धर्म के क्यों न हों। इसमें हिंदू-मुस्लिम के एकजुट होने जैसी कोई बात
नहीं है। सभी लोग पहले से ही साथ हैं।'
भागवत का यह बयान ऐसे वक्त आया है जब UP
से जबरन धर्मांतरण की खबरें आ रही हैं। उत्तरप्रदेश की योगी आदित्यनाथ
सरकार ने भी धर्मांतरण को लेकर सख्ती शुरू कर दी है।
क्या इससे पहले भी राजनीतिक बयानबाजी में DNA
का उल्लेख हुआ है?
हां। 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए
नरेंद्र मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया तो बिहार में नीतीश
कुमार ने NDA छोड़ दिया था। 2015 में जब विधानसभा
चुनाव हुए तो नीतीश ने लालू की राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ा।
मुजफ्फरपुर में 21 अगस्त 2015 को
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 'शायद
उनके (नीतीश के) DNA में ही गड़बड़ है।' इस पर नीतीश ने पलटवार में कहा- 'मोदी ने बिहार के DNA
पर उंगली उठाई है। जिनके पूर्वजों का देश की आजादी की लड़ाई में कोई
योगदान नहीं था वो हमारे DNA पर उंगली उठा रहे है।' इसके बाद पूरे बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) ने इस मसले पर खूब बवाल किया।
क्या कहता है कि DNA
का विज्ञान?
विज्ञान की बात करें तो DNA
यानी डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड। यह अणुओं का एक ग्रुप है, जो माता-पिता के वंशानुगत गुणों या जेनेटिक इंफॉर्मेशन को उनकी संतानों तक
ले जाता है। यह प्रोटीन का एक स्ट्रक्चर है, जो यूनीक है,
यानी पूरी दुनिया में आपके जैसा कोई दूसरा नहीं होगा। इसका कुछ
हिस्सा ही हमारे माता-पिता और भाई-बहन से मिलता है।
DNA हमारे शरीर में मौजूद सबसे
महत्वपूर्ण न्यूक्लिक एसिड है। इसमें किसी कोशिका की अलग-अलग प्रक्रिया से जुड़ी
सूचनाएं स्टोर होती हैं। इससे ही कोशिकाओं की अगली पीढ़ी तक जेनेटिक सूचनाएं
पहुंचती हैं। किसी भी बीमारी या जेनेटिक डिसऑर्डर के डायग्नोसिस, किसी अपराधी की पहचान के साथ ही जैविक मां-पिता या भाई-बहन से जुड़े
विवादों का निपटारा भी DNA टेस्ट से संभव है।
फ्रेडरिक मेस्चर ने 1869 में न्यूक्लियस
में मिलने वाले एसिड के तौर पर DNA को खोजा था। इसके
बाद 1953 में जेम्स वॉट्सन और फ्रांसिस क्रीक ने DNA के डबल
हेलिक्स के स्ट्रक्चर का नमूना पेश किया। यह डीऑक्सीराइबोज शुगर, नाइट्रोजनस शुगर और एक फॉस्फेट ग्रुप से बना होता है।
DNA के न्यूक्लियोटाइड्स में इन चार में
से एक बेस मिलता है- एडेनीन, थाइमीन, ग्वानीन
और साइटोसिन। हजारों की संख्या में यह न्यूक्लियोटाइट्स फॉस्फोडाइस्टर बॉन्ड से दो
पॉलीन्यूक्लियोटाइड चेन से बंधे होते हैं। यह धागे जैसी कुंडलीनुमा संरचना ही DNA
होती है।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री
नारायणदत्त तिवारी का मामला तो याद ही होगा। रोहित शेखर का दावा था कि तिवारी उनके
जैविक पिता हैं। 7 साल केस चला। DNA टेस्ट से ही रोहित का दावा सही साबित हुआ। 2014 में
तिवारी ने रोहित को बेटा माना। साफ है कि DNA टेस्ट से
माता-पिता और उनके बच्चों के आपसी संबंधों की पुष्टि होती है।
पर इसके अलावा अपराधों में भी DNA
टेस्टिंग होने लगी है। दुष्कर्म से लेकर हत्या तक के केस में
घटनास्थल से मिले सुरागों की DNA टेस्टिंग कर आरोपी का पता
लगाया जा रहा है। इसके लिए वारदात की जगह से मिले बाल, नाखून,
थूक, खून आदि से पता चलता है कि आरोपी उस जगह
था या नहीं।
इलाज में भी DNA
टेस्टिंग की अहम भूमिका है। माता-पिता में से किसी को कोई आनुवांशिक
बीमारी है तो DNA टेस्टिंग के जरिए यह पता चलता है कि बच्चे
में वह पहुंची है या नहीं। पिछले कुछ समय से कई देशों में वैज्ञानिक DNA में बदलाव के तरीके तलाश रहे हैं ताकि आनुवांशिक बीमारियों से बचाया जा
सके।
तो भागवत ने किस आधार पर कहा कि हमारा डीएनए एक है?
दो साल पहले अयोध्या मामले की सुप्रीम
कोर्ट में सुनवाई में भी यह मामला सामने आया था। हिंदू पक्षकार के वकील के.
पाराशरण ने कहा था कि आर्य भारत के मूल निवासी हैं। रामायण में सीता श्रीराम को
आर्य कहती हैं, ऐसे में वे बाहरी कैसे हो सकते हैं।
दरअसल, इसका
आधार 2019 में डेक्कन कॉलेज पुणे के इतिहासकारों की स्टडी
है। रिसर्च जर्नल सेल में प्रकाशित स्टडी में हरियाणा के राखीगढ़ी में खुदाई से
निकले कंकालों का DNA एनालिसिस किया गया था। यह स्टडी कहती
है कि आर्य बाहर से नहीं आए, बल्कि 12
हजार साल से यहीं थे।
यह कंकाल हड़प्पा संस्कृति के लोगों के
हैं। स्टडी का नेतृत्व डेक्कन कॉलेज पुणे के पूर्व प्रमुख डॉ. वसंत शिंदे ने किया
था। उनके साथ देश-विदेश के 30 रिसर्चर इसमें
शामिल थे। इसमें दावा किया गया है कि दक्षिण एशियाई लोगों का DNA एक है। हड़प्पा सभ्यता यहीं पनपी। आर्यों ने ही वेद-उपनिषद रचे। यही लोग
बाद में मध्य एशिया की ओर गए।
शोध का दावा है कि अफगानिस्तान से लेकर
बंगाल और कश्मीर से लेकर अंडमान तक के लोगों के जीन एक ही वंश के थे। ‘एन इनोसेंट हड़प्पन जीनोम लैक्स एनसेस्ट्री फ्रॉम स्टेपे पेस्टोरेलिस्ट और
ईरानी फार्मर्स' शीर्षक से प्रकाशित इस रिसर्च के प्रमुख
शिंदे का दावा है कि ‘2015-16 में निकाले गए यह कंकाल ईसा
पूर्व 2500 के आसपास के हैं। हमने कंकाल के DNA से मिले जीन की तुलना उस काल के अन्य जगहों से मिले कंकालों से की तो
दोनों अलग निकले।
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