साल के अंत तक कोरोना टीकाकरण पूरा करने का दावा कर रही केंद्र सरकार की उम्मीदें कम हुई हैं। फॉर्मा कंपनियों के बड़े-बड़े दावों पर भरोसा करते हुए सरकार ने दिसंबर 2021 तक 216 करोड़ खुराक उपलब्ध कराने की घोषणा की लेकिन फिलहाल कुछ ही दिन बाद सरकार को अपने इस लक्ष्य में 30 फीसदी खुराकें कम करनी पड़ गईं क्योंकि छह माह बाद भी स्वदेशी कोवाक्सिन की आपूर्ति में कोई सुधार नहीं है। हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक कंपनी कर्नाटक सहित चार अन्य फैक्ट्रियों में भी उत्पादन करने की घोषणा कर चुकी है लेकिन वहां भी यह शुरू नहीं हो पाया है। ठीक इसी तरह पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और रूस की स्पूतनिक वैक्सीन को लेकर भी जुलाई माह में बड़ा बदलाव नहीं है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के ही अनुसार
इस जुलाई में राज्यों को 12 करोड़ खुराक उपलब्ध होंगी।
इनमें से 10 करोड़ कोविशील्ड और दो करोड़ कोवाक्सिन की खुराक
शामिल हैं। जबकि स्पूतनिक को इस सूची से बाहर रखा गया है। 12
में से तीन करोड़ खुराक निजी केंद्रों को उपलब्ध होंगी। जबकि शेष नौ करोड़ खुराकें
सरकारी केंद्रों पर लगाई जाएंगी।
दावे और आपूर्ति में बड़ा अंतर
गौर करने वाली बात है कि फॉर्मा कंपनियों के
दावे और वर्तमान आपूर्ति के बीच बड़ा अंतर साफ दिखाई दे रहा है। भारत बायोटेक
कंपनी के एमडी डॉ. कृष्णन ईला ने कहा था कि साल 2021
की छमाही तक उनकी क्षमता सालाना 70 से 80 करोड़ खुराक तैयार करने की होगी जो अभी 24 करोड़ के
आसपास ही है। उन्होंने चार जनवरी को यहां तक दावा किया था कि उनके पास दो करोड़
खुराक पहले से उपलब्ध हैं। जबकि 12 जून तक कंपनी 2.8 करोड़ खुराक ही उपलब्ध करा पाई है।
इसी तरह सीरम के सीईओ अदार पूनावाला ने जुलाई तक इतनी खुराक होने का दावा किया था कि वे उसे बाजार में भी उतार सकें लेकिन अभी स्थिति यह है कि सीरम का उत्पादन प्रति माह छह से बढ़कर 10 करोड़ तक पहुंचने में पांच महीने लगे। इसीलिए अब केंद्र सरकार ने दिसंबर माह तक 216 करोड़ खुराक उपलब्ध होने का दावा वापस लेते हुए 135 करोड़ खुराक ही मिलने की उम्मीद जताई है। अगर दो खुराक के हिसाब से सामान्य गणित देखें तो यह 50 फीसदी आबादी को ही पूरा कर सकता है। जबकि 10 से 33 फीसदी तक खुराक बर्बादी होने की दर के अनुसार 40 फीसदी से कम आबादी का टीकाकरण पूरा हो पाएगा। कोवाक्सिन और कोविशील्ड की आपूर्ति में बड़ा बदलाव न होने
की वजह से सरकार को अपनी सूची में 25 करोड़ कोविशील्ड और 15 करोड़ कोवाक्सिन की खुराकें
कम करना पड़ीं।
नया तर्क : बुखार की वैक्सीन बनाने से पड़ा
असर
स्वास्थ्य मंत्रालय के ही एक वरिष्ठ अधिकारी
ने बताया कि वैक्सीन उत्पादन को लेकर जब कंपनियों से पूछा गया तो उन्होंने नया
तर्क सामने रखा है। सीरम और भारत बायोटेक कंपनी ने जानकारी दी है कि इस साल बुखार
की वैक्सीन का उत्पादन करने के चलते भी कोविड वैक्सीन पर असर पड़ा है। जनवरी से मई
के बीच करीब 30 फीसदी बुखार की वैक्सीन का उत्पादन
हुआ। हालांकि अधिकारी ने भी कहा कि पिछले साल नवंबर और दिसंबर के दौरान इन दोनों
कंपनियों ने जल्द से जल्द उत्पादन क्षमता को बढ़ा लेने का दावा किया था।
चार कंपनियों से किया था करार
हैदराबाद, बुलंदशहर
और मुंबई की तीन कंपनियों के साथ करार करते हुए भारत बायोटेक ने कोवाक्सिन का
उत्पादन बढ़ाने का दावा किया था। इसी दौरान कर्नाटक की एक और कंपनी के साथ करार
हुआ था। यहां बीएसएल 3 स्तर की लैब तैयार करने के बाद
वैक्सीन उत्पादन होना था जो तीन महीने बाद भी अधूरा है। अब स्वास्थ्य मंत्रालय का
ही कहना है कि इन जगहों पर उत्पादन शुरू करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे
हैं। इसके लिए मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के साथ भारत बायोटेक कंपनी के
प्रतिनिधियों के बीच लगातार बातचीत चल रही है।
मई में दिया ऑर्डर,
आज तक आपूर्ति नहीं
मार्च में सरकार ने कोविशील्ड और कोवाक्सिन
की 12 करोड़ खुराक के लिए ऑर्डर दिया था जिसके तहत कोवाक्सिन की 18.36 लाख खुराक 12 जून तक उपलब्ध नहीं हुईं। ठीक इसी तरह
पांच मई को कंपनी ने फिल 16 करोड़ खुराक का ऑर्डर दिया था
जिसके तहत 7.53 करोड़ से अधिक खुराक भारत बायोटेक पर बकाया
हैं। इनमें से एक भी खुराक अब तक नहीं मिली है।
कंपनी के पास क्षमता नहीं, सरकार दे रही ऑर्डर पर ऑर्डर
ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की सह संयोजक
मालिनी ऐसोला का कहना है कि वैक्सीन उत्पादन क्षमता को लेकर फॉर्मा कंपनियों के
दावे शुरुआत से ही सवालों के घेरे में है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने जो रिपोर्ट
सौंपी है उसके आधार पर साफ पता चलता है कि भारत बायोटेक के पास पर्याप्त क्षमता
नहीं है। फिर भी सरकार करोड़ों खुराक के ऑर्डर
ही ऑर्डर दिए जा रही है। इनकी मासिक उत्पादन
क्षमता 50 लाख ही दिखाई दे रही है। जबकि दावे कुछ और ही हैं।
अनुमति मिलने के बाद भी देरी से मिल सकेगी
जायकोव-डी वैक्सीन
देश में पांचवीं वैक्सीन जायकोव-डी के रुप
में अगर फॉर्मा कंपनी जायडस कैडिला को सरकार अनुमति प्रदान करती है तो भी इस डीएनए
तकनीक पर आधारित वैक्सीन को उपलब्ध होने में देरी होगी। क्योंकि कंपनी ने पहले से
वैक्सीन की एक भी खुराक तैयार नहीं की है। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया के एक
वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कंपनी ने तीसरे चरण का परीक्षण परिणाम साझा करते हुए
आवेदन किया है लेकिन उस पर अभी समीक्षा चल रही है। विशेषज्ञ कार्य समिति (एसईसी)
की सिफारिशों के आधार पर ही आगे का फैसला लिया जाएगा। उन्होंने बताया कि कोविशील्ड,
कोवाक्सिन और स्पूतनिक की तरह जाइडस की यह वैक्सीन भी एक साथ उपलब्ध
नहीं हो पाएगी। उन्होंने यहां तक अनुमान जताया है कि पहली खेप में कंपनी को
कम से कम एक से दो महीने का वक्त लग सकता है।
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