अमृतसर की सुरंगें जो भारत को जोड़ती हैं लाहौर से, छुपे हैं कई राज़...

गुरु नगरी अमृतसर में सुरंगें मिलना कोई नई बात नहीं है। कहा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में अमृतसर व लाहौर के बीच सुरंग के जरिए गुप्त संदेश पहुंचाए जाते थे। वहीं, शेरशाह सूरी के समय में सारा डाक सिस्टम सुरंगों के माध्यम से ही चलता था। अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की टीम इनके ऐतिहासिक महत्व की जांच करेगी।

कहते हैं इतिहास के किस्से हवाओं में तैरते रहते हैं और गाहे-बगाहे लोगों के कानों से होकर गुजर जाते हैं, लेकिन अमृतसर एक ऐसा शहर है, जहां ये किस्से जमीन में भी दफन हैं। शहर के भीतर सुरंगों का ऐसा जाल है, जिनमें कई रोमांचकारी कहानियां उलझी हुई हैं। जब कभी किसी निर्माण कार्य के दौरान ये सुरंगें सामने आती हैं तो इतिहास की नई परतें खुलने लगती हैं। ऐसी ही एक और सुरंग ने पुराने किस्सों को चर्चा में ला दिया है।

श्री अकाल तख्त साहिब के पास जोड़ा घर (जूता घर) व पार्किंग बनाने के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) यहां खोदाई करवा रही थी। अचानक जमीन का एक बड़ा टुकड़ा भरभराकर धंस गया और सामने आ गई एक और सुरंग। सुरंग के सामने आते ही काम रोक दिया गया। अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की टीम इसके ऐतिहासिक महत्व की जांच करेगी।

खोदाई में सामने आ रही विरासत

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि प्राचीन समय में श्री हरिमंदिर साहिब के आसपास बुंगे बनाए गए थे। बुंगे एक प्रकार का बुर्ज या वाच टावर होता था, जिसके ऊपर एक गुंबद और नीचे भूमिगत कमरानुमा बेसमेंट हुआ करती थी। हाल ही में मिली सुरंग इसी शैली की है। यह सुरंग नानकशाही ईंटों से बनी है। ये ईंटें पतली टाइल जैसी होती हैं। जाने-माने इतिहासकार सुरिंदर कोछड़ कहते हैं, ‘श्री अकाल तख्त साहिब के पास जो भूमिगत ढांचा मिला वह सुरंग नहीं, बल्कि बुंगे का है। श्री हरिमंदिर साहिब के आसपास 1949 में जब परिक्रमा को चौड़ा किया गया तो बुंगे तोड़कर जमीन में दबा दिए गए थे। इससे पहले भी बुंगे हटाए जाते रहे हैं। इनके अवशेष अब भी जमीन के अंदर मौजूद हैं, जो खोदाई के दौरान सामने आते रहते हैं।

लंगर हॉल के नीचे मिली सुरंग

वर्ष 2013 में श्री हरिमंदिर साहिब के लंगर हॉल के नीचे एक सुरंगनुमा ढांचा मिला था। तब एसजीपीसी ने इसकी जांच करवाने के बाद कहा था कि यह कुछ शताब्दी पहले बनाए गए ड्रेनेज सिस्टम का हिस्सा था, जबकि कुछ लोगों ने इसे महाराजा रणजीत सिंह के जमाने की सुरंग बताया था। उनका दावा था कि श्री हरमंदिर साहिब को शहर के अन्य गुरुद्वारों से जोड़ने के लिए इस सुरंग का निर्माण किया गया था। उस समय एसजीपीसी ने इसकी पुरातत्व विशेषज्ञों से जांच नहीं करवाई थी।

श्री हरिमंदिर साहिब के पूर्व हजूरी रागी भाई बलदेव सिंह वडाला मानते हैं कि इन सुरंगों के ऐतिहासिक महत्व का पता पुरातत्व विभाग की जांच के बाद ही चल सकता है। उनका दावा है कि जो सुरंग मिली है वह मिसल (शासन इकाई) काल के दौरान की है। यह बुंगे भी महाराजा रणजीत सिंह के शासन काल के दौरान बने थे, जो सुरंगनुमा ढांचा मिला है वह भी महाराजा रणजीत सिंह के समय की निर्माण कला से मेल खाता है। यहां पर बुंगा शुकरचक्कियां, बुंगा गेंदलवालिया, बुंगा सियालकोटिया, बुंगा गढ़दीवालिया, बुंगा रामगढ़िया, बुंगा रंगरेटाओं, घड़ियाली बुंगा, बुंगा ब्रह्मबूटा आदि बुंगे हुआ करते थे।

भाई बलदेव सिंह वडाला कहते हैं, ‘इतिहास में कई जगह जिक्र है कि शेरशाह सूरी के शासन काल में अमृतसर का संपर्क दिल्ली और लाहौर के साथ सुरंगों के माध्यम से भी था। महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में किला गोबिंदगढ़ से हरिमंदिर साहिब, राम बाग, पुल मोंरा और लाहौर तक आने-जाने के लिए सुरंगें हुआ करती थीं। महाराजा रणजीत सिंह ने श्री हरिमंदिर साहिब की रक्षा के लिए शहर के चारों ओर दीवार बनवाई थी। इस दीवार पर 12 गेट बनाए गए थे, जो आज भी मौजूद हैं। एक गेट से दूसरे गेट तक जाने के लिए सुरंगों का नेटवर्क भी उसी वक्त बनाया गया था। इसी दौरान गेटों से श्री हरिमंदिर साहिब तक सुरंगों का निर्माण हुआ था।

सुरक्षा के लिए होता था निर्माण

17वीं सदी में अमृतसर वार जोन बन गया था। मुस्लिम हमलावर अमृतसर पर अक्सर हमला करते थे। तब अमृतसर और लाहौर व्यापारिक केंद्र हुआ करते थे। उस वक्त भी हमलावरों से बचाव के लिए संपन्न लोग घरों के नीचे सुरंगें और तहखाने बनाया करते थे। सुरिंदर कोछड़ की लिखी किताब तवारीख लाहौर अमृतसरमें दर्ज है कि अमृतसर में किला लौहगढ़, कटड़ा बगियां, कटड़ा आहलूवालिया आदि इलाकों में दो दर्जन के करीब सुरंगें थीं। यह श्री हरिमंदिर साहिब के आसपास का क्षेत्र है।

पुस्तक के अनुसार, गुरु श्री हरिगोबिंद साहिब जी ने श्री हरिमंदिर साहिब की मुगलों से रक्षा के लिए श्री हरिमंदिर साहिब से करीब एक किलोमीटर दूर लौहगढ़ किला की स्थापना की थी। इस किले को एक सुरंग के माध्यम से श्री हरिमंदिर साहिब से जोड़ा गया था। यह भी बताया जाता है कि गुरुद्वारा गुरु का महल से भी एक सुरंग लौहगढ़ किले तक हुआ करती थी।

वहीं, इतिहासकार आशीष कोछड़ के अनुसार, ‘पुराने शहर के कई इलाकों में सुरंगें मौजूद थीं, जो धीरे-धीरे नष्ट हो गईं। व्यापारिक केंद्र कटड़ा बगियां व कटड़ा आहलूवालिया में व्यापारियों से कर इकट्ठा किया जाता था। इकट्ठा हुए कर की राशि को सरकारी खजाने तक पहुंचाने के लिए सुरंगों का उपयोग होता था। महाराजा दयाल सिंह के नाम पर एक इलाका कूचा दयाल सिंह भी था, जो कटड़ा बगियां के पास था। इन दोनों को आपस में जोड़ने के लिए भी सुरंग का इस्तेमाल होता था। वक्त के साथ-साथ ये सुरंगें जमींदोज हो गईं।

ऐतिहासिक महत्व है बड़ा

जब श्री हरिमंदिर साहिब के बाहर गोल्डन प्लाजा का निर्माण हो रहा था तब यहां भी एक सुरंग मिलने की बात सामने आई थी। गोल्डन प्लाजा का काम एक निजी कंपनी के पास था, लिहाजा यह बात जल्दी ही दब गई। इससे पहले लौहगढ़ किले को पर्यटकों के लिए खोलने के समय मरम्मत का काम चल रहा था तब वहां भी एक सुरंग निकली थी। 2006 में कटड़ा आहलूवालिया में 200 वर्ष पुरानी हवेली के नीचे सुरंग मिली थी। यह साढ़े पांच फीट चौड़ी थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की जांच से पहले ही इसे सीमेंट से भर दिया गया था।

वर्ष 2011 में नगर निगम की ओर से सीवरेज पाइप लाइन बिछाते समय भी एक सुरंग मिली थी। यह सुरंग गुरुद्वारा लौहगढ़ के पास थी। लौहगढ़ किले का निर्माण छठे गुरु श्री हरगोबिंद सिंह जी ने करवाया था। इसे भी पुरानी पाइपलाइन कहकर बंद करवा दिया गया था। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व सचिव दलजीत सिंह बेदी के अनुसार, ‘वर्ष 2010 में पुरानी वाल्ड सिटी (दीवारों के अंदर का शहर) में जब गुरुद्वारा लौहगढ़ के पास सुरंग मिली थी, तब यह पक्ष रखा गया था कि यह सुरंग लौहगढ़ किले और गोबिंदगढ़ किले के बीच का गुप्त मार्ग है।

पुराने समय में बहुत सारे रास्ते श्री हरिमंदिर साहिब के साथ जुड़ते थे। आज जहां एसजीपीसी का प्रबंधकीय ब्लॉक है, वहां पर किसी समय महाराजा रणजीत सिंह की बारादरी थी, जिसे खत्म कर दिया गया। इसके पास ही महाराजा रणजीत सिंह के घोड़े बांधने की हवेली थी। यह भी खत्म हो गई। एएसआइ की ओर से सुरंगों के ऐतिहासिक महत्व की पुष्टि के बाद एसजीपीसी को इसकी देखरेख करनी चाहिए।

बचाए जाएं वो 84 बुंगे

दमदमी टकसाल के प्रवक्ता प्रो. सरचांद सिंह कहते हैं, ‘श्री हरिमंदिर साहिब के आसपास करीब 84 बुंगे थे। यह बुंगे समय के चलते सुंदरीकरण के प्रोजेक्ट के दौरान बंद कर दिए गए। कुछ बुंगों के प्रबंधकों को अन्य स्थानों पर जगह दे दी गई और कुछ को मुआवजा देकर बंद कर दिया गया, जो ढांचा सामने आया है वह बुंगों के ही छोटे कमरे हैं। इनको बचाया जाना चाहिए और इसकी जांच एएसआइ से करवानी चाहिए।

 

 

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