कहानी: अपनों की चिंता


कहानी: अपनों की चिंता

लीजिये आज हम फिर से हाज़िर हैं एक नए और रोचक कहानी के साथ. जिसको लिखा है दीपान्विता राय बैनर्जी जी ने. तो चलिए बिना देर किये पढ़ते हैं कहानी- ‘अपनों की चिंता’

चालीस साल की राधिका अपने फोन में कॉन्टैक्ट स्क्रॉल कर रही थी। इलेक्ट्रिकलिख कर सर्च किया। तीन नंबर दिखे। पहला नाम इलेक्ट्रिक रतन। छप्पन साल के बंगाली दादा। सीधे सादे हंसमुख गपोड़ इंसान! पश्चिम बंगाल के सुदूर रानाघाट जिले के किसी अनाम गांव से रायपुर आकर इलेक्ट्रिक मिस्त्री का काम करते थे। अक्सर अपने गांव से बड़ी पापड़ लाकर राधिका को थमाते। न लेने की बात तो जैसे उनके दिमाग़ में आती ही नहीं थी। ज़्यादा मना करने पर अच्छी तरह समझा देते कि उनकी बीवी ने बहुत साफ़-सफ़ाई से बनाया है, और रख कर चल देते। उनकी दोनों बेटियों के ब्याह और अपने दामादों को लेकर वे बहुत संतुष्ट और प्रसन्न थे। जब भी राधिका के घर बिजली के किसी रिपेयर काम के लिए वह बुलाए जाते, तो वह अपनी कहानियों में खोए से रहते। दामाद किस तरह उनका ख़्याल रखते हैं, दामादों का व्यवसाय कितना बड़ा है, बेटियों के कैसे ठाठ हैं, अपना काम जारी रखते हुए सारी बातें वे बड़ी ख़ुशी से राधिका को सुनाते रहते। राधिका हां हां करती हुई उनके काम पर ग़ौर करती। कहीं इतनी बातों के बीच उनका ध्यान बंटे और कुछ चूक रह जाए! तब भी जब राधिका को इलेक्ट्रिक के काम के लिए मिस्त्री की ज़रूरत होती, वह सबसे पहले रतन को ही बुलाती। एक तो काम उनका पक्का था, बुलाने के एक डेढ़ घंटे में पहुंच जाते और सर्वोपरि, राधिका उनके मेहनताने को लेकर संतुष्ट थी।

रतन के अलावा राधिका के पति विमल ने दो और इलेक्ट्रिक मिस्त्रियों के नंबर उसे दे रखे थे, लेकिन यह उन्हें तब देखती जब रतन मिस्त्री अपने गांव गए होते। दूसरा मिस्त्री सुरेश नजदीक के इलेक्ट्रिक के दुकान से जुड़ा था और उससे संपर्क करना आसान था, लेकिन उसकी दिक़्क़त यह थी कि वह बड़ा आलसी था। दिन में तेरह बार भी उसे फोन करके बुला लो, वह आएगा तो चार दिन बाद ही! काम में इतनी देरी राधिका को पसंद नहीं थी।

तीसरे विकल्प यादव जी। काम अच्छा था, पहुंच भी उस दिन जाते जिस दिन बुलावा आता, लेकिन परेशानी उनके रेट को लेकर थी। काम का दाम दुगुना लगाते। एक तो लॉकडाउन, रायपुर की सूखी झुलसाती गर्मी, ऊपर से राधिका के बिटिया के कमरे का पंखा, एसी एक साथ ख़राब! कोरोना की मार ने ऐसे भी बच्चों को उनके कमरे में बंद कर दिया है, तिस पर पढ़ाकू बेटी गर्मी से बेहाल!

कोरोना की दूसरी लहर ने अड़ोस-पड़ोस, जान-पहचान, रिश्तेदार, नज़दीकी दोस्त किसी को भी नहीं छोड़ा। इस वक़्त चारों ओर बस त्राहिमाम मचा था और लोगों के दिलों में अंधड़! कौन कब किसके बारे में क्या बता जाए, जो आज है कल न रहे! जिससे मिलने की चाह थी, वो चाह धरी ही रह जाए और चाहना को बवंडर उड़ा ले जाए!

कौन जाने मुलाक़ातों के सिलसिले यादों के अंगोछे में बंधे बंधे अलगनी से टंगे ही रह जाएं और वक़्त अपनी पीठ पर घाव के निशान लिए आगे बढ़ जाए! आज ऐसे तो हालात थे कि जैसे सोना और खाना ही बचा रह गया था राधिका के जैसे परिवारों के लिए! दैनिक ज़रूरतों की कब तक फिर भी अनदेखी हो! राधिका ने कई बार इलेक्ट्रिक रतनमें कॉल किया। हर बार फोन स्विच ऑफ। राधिका को अभी रतन दादा की बड़ी ज़रूरत थी।

राधिका ने मन मारकर सुरेश को कॉल किया। सोचा चार दिन तो पक्का लग जाएंगे उसे। फिर भी चार दिन यूं ही गुज़ारने से अच्छा है इंतजार में गुजरें! मगर सुरेश का तो इनकमिंग कॉल ही बंद है। रीचार्ज नहीं किया गया है उसके फोन को! यादव जी को कॉल किया। कई बार! और कई कई बार! यहां भी निराशा। और फिर से अब उसने तीनों लोगों को दोबारा कॉल किया। कोई उत्तर नहीं! राधिका चिंतित थी।

घर में रहने की आदत में थोड़ा परिवर्तन करके बेटी की दिक़्क़त को दो चार दिन के लिए सही किया जाना तय हुआ। लेकिन राधिका चिंतित थी। पति विमल ने कहा -क्या हरदम मुंह लटकाए घूमती हो! जाने दो न! हमारे कमरे में एसी पंखा सबकुछ तो है! पलंग भी काफ़ी बड़ा है! चौदह साल की बेटी हमारी दो चार दिन के लिए क्या एडजस्ट नहीं होगी? और फिर भी दिक़्क़त हुई तो हॉल है न! यहां भी पंखा, कूलर, बेड सब कुछ तो है!, मैं आ जाऊंगा इधर! दो चार दिन ऐसे ही सही, जब तक लॉकडाउन है! दुकानें खुलेंगी तो मिस्त्री बुला लाऊंगा!

राधिका ने कहा -रतन दादा कितने हंसमुंख हैं! अपने घर-परिवार की कितनी बातें बताते हैं मुझे, मैं ही कभी-कभी मन ही मन झल्लाती थी! बड़ी, पापड़ दे जाते तो मन ही मन उनकी ज़बरदस्ती पर खीझ भी जाती थी! सुरेश के आलसीपन पर कितना ही उसे कोस लूं, बेचारे पर अपने परिवार के अलावा उसके दो छोटे भाई बहनों की भी जि़म्मेदारी है! मन लगाकर काम कर देता है बेचारा। और अपने यादव जी! बेचारे की कोई संतान नहीं! वरना पैंसठ की आयु में घर-घर जाकर मिस्त्री काम करें! रेट थोड़ा ज़्यादा हुआ तो क्या! उनकी दिक़्क़तें भी तो कम नहीं!’ ‘अरे ये कौन-सी रामकथा बांचने लगीं तुम? ठीक हो जाएगा पंखा!विमल ने समझाने की कोशिश की। वो तो ठीक हो ही जाएगा!’ ‘फिर?’ विमल अब वाकई अवाक थे।

कोरोना की दूसरी लहर बड़ी मारक है। आज सुबह कॉलोनी में नल चालू करने वाले कांता भाई का कोरोना से देहांत हो गया। कॉलोनी के ग्रुप पर आज पांच लोगों की मौत की ख़बर है।’ ‘तो कर ही क्या सकते हैं?' विमल अब भी पत्नी को समझने की कोशिश करते रहे। इन तीन लोगों की ख़ैरियत कैसे पता करूं? फोन ही नहीं उठा रहा कोई। और कुछ हो गया हो तो? कौन बताएगा!’ ‘तुम भी हद पागल हो! उन्हें लगातार फोन करती ही जा रही हो?’ और पांच दिन बाद एक एक कर तीनों से राधिका की बात हो गई। लॉकडाउन की वजह से इनका काम बंद था तो फोन भी बंद था। राधिका दौड़ती हुई बेटी के पास गई। बेटी से कहा-तीनों इलेक्ट्रिक मिस्त्री से बात हो गई।’ ‘तीन से क्यों? कोई एक ही ठीक करेगा न पंखा और एसी!बेटी ममा को ताक रही थी। ठीक तो कोई एक करेगा! लेकिन ठीक होना तीनों का ज़रूरी था न बेटा!राधिका के चेहरे पर सुबह की ओस-सी ठंडक और प्रशांति थी।

Post a Comment

0 Comments