लीजिये आज हम फिर से हाज़िर हैं एक नए और रोचक कहानी के साथ.
जिसको लिखा है नम्रता चौधरी जी ने. तो चलिए बिना देर किये पढ़ते हैं उनकी
लिखी कहानी- 'छोटा सा अमराई'
गर्मियों के दिन लू से झगड़ते-से, पीले-मुरझाए-धूसर
आसमान के, मोगरे, जूही, रातरानी की ख़ुशबू से महमहाई रातों के और आम, तरबूज़, ख़रबूज़
के। आम बचपन से मेरा सबसे पसंदीदा फल रहा। खाता तो आज भी हूं, पर अब
खट्टा-कसैला-सा लगता है। कल से माधव के लगातार आ रहे फोन को मैंने ब्लॉक कर दिया।
पत्नी कुछ कहने आई,
तो आंखें दिखाकर चुप कर दिया। मगर जब अंतर्मन में लगातार
शोर हो रहा हो तो उसे कैसे चुप कराया जाए?
वह ना आंख दिखाने से डरता है, ना ही ब्लॉक होता है। माधव, मेरा
छोटा भाई। हमेशा से वह मेरे लिए छोटू और मैं उसका भैया।
जब पता चला कि मेरा छोटा भाई या बहन आने वाला है, तब
रोज़ स्कूल की प्रार्थना सभा में मैं कसकर,
आंखें मूंदे छोटा भाई मांगता रहा। जब वह हुआ तब पूरे
मोहल्ले में, गर्व से छोटी-सी साइकिल पर बैठकर,
घंटी बजाता हुआ,
हर घर घोषणा कर आया कि मेरे छोटा भाई आया है। एक बार एक
मास्टर जी ने उसको बिना बात थप्पड़ मार दिया। मैं दनदनाता हुआ उनसे कारण पूछने
पहुंच गया था जबकि मैं उम्र में कोई ख़ास बड़ा नहीं था। हम दोनों भाई साथ, एक ही
थाली में खाना खाते। कुछ भी लाना हो,
छोटू ही लेने के लिए उठता। एक बार उसके दोस्त ने मुझे भैया
बोलने से इंकार कर दिया और तू-कारे से मेरे बारे में बात की, तो
उसने बस दोस्ती ही तोड़ दी थी।
जब तक छोटू स्कूल की एक-एक बात मुझे ना सुना देता तब तक चुप
ना होता। हमारी आम के पेड़ों की छोटी-सी बगीची थी, अमराई। वहां रोज़ कुछ समय
बिताना जैसे हमारा नियम था। मेरा हमेशा से पढ़ने में रुझान बहुत ज़्यादा था और उसका
खेलकूद पेड़-पौधों आदि में,
हालांकि पढ़ने में भी अच्छा था। जब आम का मौसम आता, वह
अच्छे-अच्छे केसर आम छांट लाता क्योंकि यह मेरे पसंदीदा थे। हम आम खाते तो वह खाता
कम और शबरी की तरह खिलाता ज़्यादा। कहता जाता,
‘भैया यह वाला खाओ,
यह ज़्यादा मीठा है। यह खाओ इसकी ख़ुशबू कितनी अच्छी है।’ मैं
कहता तू ही खाले तो कहता,
‘आप इतना रम कर आम खाते हो कि आपको देखने में ही मज़ा आ जाता
है।’ आह, कितनी सारी यादें और उतनी ही तकलीफ़ें भी। तकलीफ़ का कारण भी अमराई ही बनी।
आज भी आपके लिए
छांट-छांट कर केसर लाया हूं।’
अपनी ख़ुद की दुष्टता जब अपनी ही आंखों से दिखती है तब स्वयं
का ह्रदय छलनी हो उठता है। मैंने बड़ी ही क्रूरता से कहा, ‘मां ने
तो संभालने को कहा था,
तूने हड़प ही लिया।’
वह रोता हुआ बिना बोले चला गया। कभी सामाजिक कार्यक्रम में
भी हम दोनों भाई मिले होंगे तो मैंने मुंह फेर लिया। समझाने वाले समझाते, भड़काने
वाले भड़काते। हर साल आम की पेटियां गांव से आती रहीं और मैं वापस भिजवाता रहा। आज
तटस्थ होकर सोच रहा हूं तो सच कोड़े की तरह चोट कर रहा है।
पता नहीं इंसान ऐसा
क्यों है कि दुनिया में दिखावे के लिए दान देगा, ख़र्चा करेगा मगर अपना सगा
भाई आधा मीटर ज़मीन भी ज़्यादा ले ले,
तो केस कर देगा। मेरा सच यह था कि मेरे अहम को चोट पहुंची
थी कि छोटे को मां ने ज़्यादा प्यार किया था,
उसे ज़्यादा काबिल समझा था। मैं भूल गया था कि मां ने मेरे
लिए आम और आराम दोनों की व्यवस्था की थी। आज मन में घुमड़ते बवंडरों की धूल आंखों
को भी जला रही थी। आंखें पोंछकर सिर ऊंचा किया तो छोटू सामने खड़ा था। मैं लपक कर
गले लग गया। वह हड़बड़ा गया। फिर बोला,
‘भैया अमराई के काग़ज़ात लाया हूं, आप रख
लो। मुझे मेरा छोटे भाई का अधिकार और प्यार वापस दे दो। मैं यह पछतावा लेकर दुनिया
से नहीं जाना चाहता हूं कि मेरा बड़ा भाई उम्र भर मुझसे नाराज़ रहा।’ मैंने
हल्की-सी चपत उसके गाल पर रखते हुए कहा,
‘पहले मैं मरूंगा,
बड़ा मैं हूं।’
हमारी ज़िंदगी की अमराई ख़ुशी से झूम उठी थी।
तो ये था हमारी आज की कहानी. ऐसी ही रोचक कहानी पढ़ने के लिए जुड़ें हमारे साथ और अपनी कहानी/कविता/खत/संस्मरण पोस्ट करवाने के लिए हमें मेल कीजिये @jmdnewsconnect@gmail.com पर और हमारे साइट को दूसरे प्लैटफॉर्म्स पर फॉलो करने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
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