चिन चिन करती आई चिड़िया.... | विश्व गौरैय्या दिवस पर ख़ास

चिन चिन करती आई चिड़िया.... | विश्व गौरैय्या दिवस पर ख़ास  

पक्षियों की दुनिया जितनी बड़ी है उतनी ही सुन्दर भी है. इनकी दुनिया में गौरैया आकर्षण का केंद्र हमेशा बनी रहती है. कोरोना काल में तो जैसे ये पक्षी लुप्त ही गयी थी लेकिन बदलते वक़्त के साथ इन्होने भी जीना चहचहाना सीख लिया है. हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है. इसकी शुरुआत 20 मार्च 2010 को हुई थी. यह नन्ही सी, प्यारी सी, छोटी सी पक्षी इंसानों के आसपास या उनके घरों में ही घोंसला बनाकर रहती है। आईये जानते हैं इस पक्षी से सम्बंधित कुछ रोचक बातें:

गौरैया का वैज्ञानिक नाम पासर डोमेस्टिकस और सामान्य नाम हाउस स्पैरो है. इसकी ऊंचाई 16 सेंटीमीटर और विंगस्पैन 21 सेंटीमीटर होते हैं. गौरैया का वजन 25 से 40 ग्राम होता है. गौरैया अनाज और कीड़े खाकर जीवनयापन करती है. शहरों की तुलना में गांवों में रहना इसे ज्यादा पसंद है.

 







ऐसे बचेगी प्‍यारी गौरैया:

 

प्रकृति ने जो कुछ रचा, वह सब हमारे अस्तित्‍व का हिस्‍सा है. अगर हमारी जीवन शैली के कारण गौरैया के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है, तो हमें इस बारे में सोचने की जरूरत है. गौरैया को बचाना दरअसल खुद को बचाना है. क्‍योंकि तेजी से विलुप्‍त होती गौरैया इस बात का संकेत है कि हमारे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है. ऐसे में हमें इसके संरक्षण को आगे आना ही होगा. वहीं गौरेया हमारी फसलों को भी कीड़ों से बचाती है. यह उन कीड़ों का सफाया करती है, जो फसलों को नुकसान पहुंचाते है. आइए जानें कैसे हम अपनी गौरैया को बचा सकते हैं, ताकि हमारी आने वाली पीढ़िया गौरैया की चहचहाहट सुन पाएं.

 

इसलिए मनाया जाता है यह दिवस

 

एक समय था जब हमारे घरों के आंगन में इन पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देती थी, लेकिन ये अब नजर नहीं आते. हमने बचपन में अक्‍सर अपने घर के आंगन में गौरैया को फुदकते देखा है. मगर अब यह जैसे गायब ही हो गई है. कुछ अध्ययन बताते हैं कि गौरैया की संख्या में करीब 60 फीसदी तक की कमी दर्ज की गई है. ऐसे में गौरेया की घटती संख्या को देखते हुए और इसके संरक्षण के लिए ही 'विश्व गौरैया दिवस' मनाया जाने लगा.





कोरोना संकट के दौरान बदला प्राकृतिक वातावरण

 

कोरोना संक्रमणकाल में प्राकृतिक वातावरण में भी व्यापक सुधार आया और अब एक बार फिर से घर के बाहर पेड़ों पर गौरैया के चहचाहने की आवाज सुनाई देने लगी है। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी यह अच्छी बात है कि कुछ पक्षी प्रेमी आगे आए हैं। वे गौरैया और अन्य पक्षियों के संरक्षण के लिए अपने लगातार प्रयास से पक्षियों के संरक्षण की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट कर रहे हैं। पर्यावरणविदों और पशु-पक्षी प्रेमियों के प्रयास से अब एक बार फिर से कई घरों में गौरैया की चहचहाट सुनाई पड़ने लगी हैं। घर के नजदीक पेड़ और अन्य स्थानों पर बने घोसले में सुबह-शाम गौरैया की चहचहाट लोगों के जीवन में खुशियां भर देती है।



विश्व गौरैया दिवस का इतिहास

 

विश्व गौरैया दिवस, नेचर फॉरएवर सोसाइटी ऑफ इंडिया के साथ-साथ फ्रांस की इकोसेज एक्शन फाउंडेशन की शुरू की गई एक पहल है. सोसाइटी की शुरुआत फेमस पर्यावरणविद् मोहम्मद दिलावर ने की थी. उन्हें 2008 में टाइम मैगजीन ने "हीरोज ऑफ एनवायरमेंट" में शामिल किया गया था. साल 2010 में पहली बार 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया गया. इसके बाद हर साल 20 मार्च को यह दिवस मनाया जाता है. इस दिवस पर गौरैया के संरक्षण के लिए काम करने वाले लोगों को गौरैया पुरस्कार से सम्मानित भी किया जाता है.

 

 


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