क्योंकि जीना इसी का नाम है…
मजबूरी जो करवा दे वो कम है. मजबूरी में इंसान चाहे तो घर पर बैठ
जाये चाहे तो चौखट लाँघ कर अपने लिए जीना सीख जाये. इन्हीं सब बातों को तूल देते
गुजरात के राजकोट की पानसुरिया परिवार की देवरानी-जेठानी का जीवन संघर्ष महिला
सशक्तिकरण की अनूठी मिसाल बन गया है। दरअसल, 11 सदस्यीय इस परिवार के मुखिया बाबूभाई (70), पत्नी मंजुलाबेन (65), बेटे राजेश (51) और केतन (41) को
पिछले साल सितम्बर -अक्टूबर में कोरोना ने अपनी आग की चपेट में ले लिया। 22 दिनों
में बैक टू बैक घर के 4 सदस्यों की मौत ने घर को हिला कर रख दिया। जिसकी वजह से घर
की जिम्मेदारी बहुओं ने उठा ली.
जीवन को पटरी पर लाने की कोशिश
परिवार का ट्रांसपोर्ट का काम भी ठप हो गया और कोई कमाऊ नहीं बचा।
इसके पहले घर के चारों सदस्यों के कोरोना से पीड़ित होने पर उनके इलाज में बड़ी रकम
खर्च हो चुकी थी। अब जबकि गुजारे का संकट गहराया तो बहुओं ने घर की चारदीवारी से
पहली बार बाहर कदम रखा ताकि जीवन थमे नहीं। देवरानी सपना और जेठानी नयना कहती हैं-
‘जीवन के संघर्ष में विश्राम हो सकता है, विराम नहीं।
जीवन को पटरी पर लाने के लिए ही हम संघर्ष कर रही हैं। अब परिवार
की जिम्मेदारी मिलकर संभालेंगे। सपना (38) ने बताया कि परिवार
के सभी वरिष्ठों के एकाएक साथ छोड़ने से 15 वर्ष बाद घर की
देहरी कामकाज के लिए पार करने की नौबत आई। आवक बंद हो गई थी। बचत भी नहीं थी। बेटे
की आगे की पढ़ाई और उसका भविष्य बनाने के लिए डेयरी में हिसाब-किताब की नौकरी कर
ली। मेरी शिक्षा आज मेरे काम आई।
इधर, बड़ी बहू नयना घर का पूरा काम संभालती
हैं। उनके दो बेटे हैं। बड़ा शादीशुदा है और छोटा दिव्यांग। रोज का काम खत्म कर घर
पर इमिटेशन ज्वेलरी बनाती हैं। कहती हैं- जो हुआ उसे भुलाया नहीं जा सकता। अब किसी
का फोन भी आता है, तो दिल तेजी से धड़कने लगता है। ऐसा
लगता है कि अस्पताल से तो फोन नहीं है।
कोरोनाकाल के चार महीने हमने दिन-रात रो-रो कर काटे हैं। कोरोना से
पूरा परिवार बिखर गया..। अब रुक नहीं सकते। पुत्रवधू के साथ अब परिवार का बेटा बन
कर जिम्मेदारी निभाएंगे। संघर्ष को अंजाम तक पहुंचाने के लिए हमने कमर कस ली है।
हमेशा गरीबों की मदद करना
सपना बेन का 12
साल का बेटा मीत मां को रोता देख कहता
है- ‘मां तुम रोना मत। हम पापा, दादा-दादी की याद में जी लेंगे।’ तब सपना भी उसे ढाढस बंधाती है। मीत के पिता केतनभाई ने आखिरी बार
अस्पताल से मीत के जन्मदिन पर बातचीत की थी। कहा था- ‘हमेशा गरीबों की मदद करते रहना।’
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