अमेरिकन मेडिकल
एसोसिएशन की जर्नल में छपी रिसर्च में बच्चों को 5-11, 12-15 और 16-17 वर्ष के समूहों में बांटा गया था। 1
मार्च 2019 से 31 जनवरी 2021 तक कैसर परमानेंटे के 1.91 लाख सदस्यों के इलेक्ट्रॉनिक डेटा को एनालाइज किया गया।
इसमें पता चला कि एक साल में 5-11 साल के बच्चों का वजन 5.07 पाउंड (2.29 किलो), 12-15 साल के बच्चों का वजन 5.1 पाउंड (2.3 किलो) और 16-17 साल के बच्चों का वजन 2.26 पाउंड (1 किलो) बढ़ गया है। 5-11 वर्ष के बच्चों में से 9% ओवरवेट या मोटापे का शिकार हो गए। वहीं,
12-15 वर्ष के बच्चों में 5%
और 16-17 वर्ष के बच्चों में 3% ओवरवेट या मोटापे का शिकार हुए।
यह आंकड़े बताते हैं
कि कोविड-19
महामारी ने घर बैठे बच्चों को किस तरह प्रभावित किया है। इस संबंध में दैनिक
भास्कर ने मुंबई, जयपुर और अहमदाबाद के बच्चों के डॉक्टरों से बात की। हमने मुंबई के डॉ. जयदीप
एच पालेप (कंसल्टेंट बेरियाट्रिक और जीआई सर्जन, जसलोक हॉस्पिटल), जयपुर के डॉ. संजय चौधरी (सीनियर कंसल्टेंट,
पीडियाट्रिक्स, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल) और अहमदाबाद की डॉ. उर्वशी
राणा (कंसल्टेंट पीडियाट्रिशियन, नारायणा मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल) से पांच प्रश्न पूछे और
जाना कि बच्चों की सेहत को कोविड-19 महामारी ने किस तरह प्रभावित किया है।
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महामारी
की वजह से स्कूल बंद हुए और बच्चे घरों में कैद हो गए। इसने उनकी ओवरऑल हेल्थ को
बुरी तरह प्रभावित किया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि लॉकडाउन ने फैमिली बॉन्ड को
मजबूती दी है, पर
बच्चों में वजन बढ़ने और मानसिक सेहत से जुड़े डिसऑर्डर देखने को मिल रहे हैं।
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दुनियाभर
में रहने वाले अलग-अलग एथनिक ग्रुप्स के किशोरों में मोटापा 2%-15% की रफ्तार से बढ़ रहा है। बचपन में मोटापा एक ग्लोबल
एपिडेमिक बन चुका है। इस साल के अंत तक 5 से 19 साल तक के 16 करोड़ बच्चे इस समय ओवरवेट या मोटे हो चुके होंगे।
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महामारी
और उसे रोकने के लिए लगे लॉकडाउन ने बच्चों के सोशल इंटरैक्शन पर गहरा असर डाला
है। बढ़ती उम्र के बच्चों को सोशल स्किल्स सीखना बेहद जरूरी है। महामारी की वजह से
बाहरी लोगों से मेल-जोल नहीं हुआ, इसने बच्चों पर विपरीत असर डाला है।
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ऐसा
नहीं है कि सभी बच्चों पर विपरीत प्रभाव ही पड़ा है। कुछ परिवारों ने बच्चों को
घरों के कामों में लगाया। खासकर खाना बनाने और इससे जुड़ी सामग्री खरीदने में। इसी
तरह फैमिली में इंटरैक्शन भी बढ़ा है। न्यूजीलैंड ने तो इस दौरान प्ले,
एक्टिव रिक्रिएशन और स्पोर्ट को बढ़ावा दिया। ताकि बच्चे की
फिजिकल एक्टिविटी बने रहे।
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कम्युनिटी
ग्राउंड्स और स्कूल बंद होने से शारीरिक एक्टिविटी बंद हो गई। इससे बच्चों की
रोजाना निष्क्रिय रहने की अवधि भी बढ़ गई। भीड़भाड़ वाले शहरों और छोटे अपार्टमेंट
में रहने वाले बच्चों की एक्टिविटी के लिए जगह ही नहीं बची थी। इससे वे ओवरवेट हो
गए।
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हां।
कई केस आ रहे हैं, जहां बच्चों में एंग्जाइटी, डिप्रेशन, चिड़चिड़ापन, नींद से जुड़े डिसऑर्डर, गुस्से से जुड़े मामले और बर्ताव में बदलाव दिख रहा है।
बच्चों को अपने डर, एंग्जाइटी को दूर करने के लिए इमोशनल सपोर्ट की जरूरत होती है।
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साथ
ही कोविड-19
से जुड़े तनाव से छुटकारा पाने के लिए सही जानकारी भी उतनी ही जरूरी है। पेरेंट्स,
टीचर्स और देखभाल करने वालों को सतर्क रहने की जरूरत है
ताकि वे बच्चों के बर्ताव और स्कूलों के परफॉर्मेंस में बदलाव आने पर विशेषज्ञों
की मदद लें।
·
महामारी
की वजह से बच्चों को पढ़ाई और दोस्तों से बातचीत के लिए इंटरनेट का सहारा लेना
पड़ा। बच्चों के इंटरनेट इस्तेमाल पर सभी पेरेंट्स नजर नहीं रख सके और उनमें रिस्क
लेने के बर्ताव और खुद को नुकसान पहुंचाने (सेल्फ हार्म) की प्रवृत्ति बढ़ गई है।
क्या वजन बढ़ने से
बच्चों को और भी समस्याएं हो सकती हैं?
बच्चों में शारीरिक
सक्रियता की कमी और स्क्रीन टाइम बढ़ने से वजन बढ़ रहा है। यह हाई ब्लड प्रेशर,
डाइबिटीज, जोड़ों की समस्याओं आदि का कारण बन सकता है। आत्मविश्वास
में कमी और खुद के शरीर से अंसतोष की शिकायतें भी सामने आई हैं।
मोटापा बच्चों में
अस्थमा,
नींद से जुड़े विकार और दिल की बीमारियों आदि का खतरा भी
बढ़ाता है। मॉर्बिड ओबेसिटी की वजह से शरीर के सेल्स में क्रॉनिक इनफ्लेमेटरी
प्रक्रियाएं बढ़ जाती हैं। स्ट्रेस बढ़ता है और हमारे शरीर का इम्यून रिस्पॉन्स
कमजोर होता है। बच्चों में सामान्य वजन वाले बच्चों के मुकाबले इन्फेक्शियस
बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
डिसोसिएटिव डिसऑर्डर,
एंगर मैनेजमेंट, सोशल फंक्शन आदि समस्याएं भी मोटापे की वजह से देखने को मिल
रही हैं। इम्यून रिस्पॉन्स कमजोर होने से बच्चों को फ्लू,
वायरल बुखार, गले में खराश जैसी समस्याएं होने का खतरा कई गुना बढ़ गया
है।
बड़े बच्चों के
स्कूल दोबारा खुल रहे हैं, क्या छोटे बच्चों के स्कूल भी खुलने चाहिए?
हां। कोविड-19 के नए केसेस आने कम हो गए हैं। ज्यादातर वयस्क वैक्सीनेट
हो चुके हैं। इतना ही नहीं, यह भी साबित हो गया है कि बच्चों के कोविड-19 का खतरा बहुत ज्यादा नहीं है। फिजिकल एक्टिविटी बढ़ाने के
लिए स्कूल खोलना जरूरी हो गया है। इससे उनकी साइकोलॉजिकल सेहत पर भी सकारात्मक असर
होगा।
ऑनलाइन क्लासेस ने
लॉकडाउन के दौरान भी पढ़ाई को जारी रखने में मदद की, पर यह पारंपरिक स्कूलों में होने वाले इमोशनल और एकेडेमिक
डेवलपमेंट की जगह नहीं ले सकता। उन बच्चों को ज्यादा परेशानी आएगी,
जिन्होंने दो साल में पढ़ाई शुरू ही की है।
छोटे बच्चों के लिए
विशेष इंतजाम कर स्कूल खोले जा सकते हैं। इसके लिए टीचर्स,
पेरेंट्स और हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स को साथ आना होगा। बच्चों
को सोशल डिस्टेंसिंग के माहौल के लिए तैयार करना होगा। अब तो कई जगह छोटे बच्चे भी
स्कूल जाने लगे हैं।
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घर
पर बना पोषक आहार बच्चों को देकर हम उन्हें मोटापे से बचा सकते हैं। इसके लिए उनके
आहार में फलों और सब्जियों को बढ़ाना होगा। जंक फूड कम करना होगा। स्क्रीन टाइम को
सीमित रखना होगा। खाना खाते समय टीवी बंद रखना होगा।
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खाना
खाने का समय भी फिक्स करना होगा। कसरत, योग, ध्यान जैसी गतिविधियों में बच्चों को शामिल होने के लिए प्रेरित करना चाहिए,
जिससे बच्चों में हेल्दी लाइफस्टाइल डेवलप होती है।
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