ओटीटी ने फिल्मों में बोल्डनेस की परिभाषा बदल दी है। लगभग हर वेब सीरीज में कुछ इंटिमेट सीन और गालियां होना आम बात है, लेकिन ऐसे सीन फिल्माना आसान नहीं होता। न ही ये उस तरीके से फिल्माए जाते हैं, जैसे वास्तव में स्क्रीन पर नजर आते हैं।
वेब सीरीज और
फिल्मों में इतने इंटिमेट और बोल्ड सीन्स फिल्माए जा रहे हैं कि इसके लिए आज कल
बाकायदा एक इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर रखा जाता है, जो यह तय करता है कि किसी इंटिमेट या बोल्ड सीन को कैसे
फिल्माया जाए ताकि सीन अश्लील न लगे, आर्टिस्ट्स को दिक्कत न हो और सब कुछ सरल-सुरक्षित तरीके से
हो जाए।
भारत की सबसे पहली
सर्टिफाइड इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर आस्था खन्ना ने इसके लिए खास गाइडलाइन भी बनाई है।
दैनिक भास्कर ने ऐसे ही सीन्स के पीछे की सच्चाई और ओटीटी व फिल्मों के इस नए
ट्रेंड को लेकर आस्था से बात की।
इंटिमेसी और
न्यूडिटी दिखाने की तकनीक
इंटिमेट सीन और
न्यूडिटी फिल्माने के लिए कुछ कैमरा तकनीक और कुछ एडिटिंग का सहारा लिया जाता है।
आर्टिस्ट के एक्सप्रेशन के साथ लाइटिंग और साउंड से मनचाहा सीन आसानी से फिल्माया
जा सकता है।
ज्यादातर ऐसे सीन में मोटांज टेक्निक का इस्तेमाल होता है। इसमें आर्टिस्ट के फेस एक्सप्रेशन और बॉडी मूवमेंट के ढेर सारे क्लोज-अप लिए जाते हैं। जरूरत के अनुसार आर्टिस्ट के लो-एंगल शॉट लिए जाते हैं। आर्टिस्ट पहले से बताई गई रिदम को फॉलो करते हुए गति और एक्सप्रेशन के शॉट देते हैं। एडिटिंग में सारे क्लोज अप साउंड इफेक्ट के साथ तेजी से एक साथ चलाए जाते हैं।
शारीरिक दूरी के लिए
प्रॉप का इस्तेमाल
इंटिमेट सीन करते
वक्त दूसरे आर्टिस्ट से कितनी शारीरिक दूरी रखनी है, यह उनकी अपनी चॉइस होती है। इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर आर्टिस्ट
की पसंद का सम्मान हो, इसलिए कुछ प्रॉप्स का उपयोग करते हैं। प्रॉप में सॉफ्ट पिलो,
क्रौच गार्ड, मोडेस्टी गारमेंट जैसी कुछ चीजें शामिल हो सकती हैं।
पुरुष एक्टर्स भी
होते हैं असहज
कई बार कुछ मेल
आर्टिस्ट भी ऐसे इंटिमेट सीन करने में सहज नहीं होते,
लेकिन मर्दानगी के बारे में जो सामाजिक विचार बने हुए हैं,
उसकी वजह से पुरुष आर्टिस्ट अपनी असहजता छुपाते भी हैं।
नाबालिग आर्टिस्ट के
साथ बोल्ड सीन
कई सारी सीरीज में
टीनएजर्स को सेक्शुअली एक्टिव बताया जाता है। कुछ में नाबालिग के साथ जबरदस्ती या
एब्यूजिव वर्ड्स के सीन होते हैं। आस्था बताती हैं कि ऐसे में किसी बालिग एक्टर का
बॉडी डबल के तौर पर उपयोग हो सकता है। गाइडलाइन में मैं स्पष्ट कहती हूं कि किसी
नाबालिग को लेकर इंटिमेट सीन होने ही नहीं चाहिए।
कोई मॉरल या सेक्शुअल पुलिसिंग नहीं
आस्था बताती हैं कि
उनका काम कोई मॉरल या सेक्शुअल पुलिसिंग का नहीं है। उनका काम सिर्फ एक सेफ स्पेस
क्रिएट करना है। वे किसी एक्टर या प्रोड्यूसर की ओर से नहीं,
खुद अपनी ओर से ही काम करती हैं। जब उनको कहा जाता है,
तभी वह अपनी राय देती हैं।
फिल्म बनाना एक क्रिएटिव
काम है। इसमें कई सारे क्रिएटिव लोग एक साथ एक अच्छा रिजल्ट पाने के लिए काम करते
हैं। यह सहयोग अपनी मर्जी से होता है, यह किसी पर जबरदस्ती थोपा नहीं जाता।
यह इंडस्ट्री सेफ है,
यह साबित करना था
आस्था जब असिस्टेंट
डायरेक्टर थीं, तब
मी टू मूवमेंट के दौरान लड़कियों को यह स्पष्टीकरण बार-बार देना पड़ता था कि वह एक
सुरक्षित इंडस्ट्री में काम कर रही हैं। उस वक्त आस्था को इंटिमेसी प्रोफेशनल्स के
बारे में पता चला। उन्होंने लॉस एंजिलिस के इंटिमेसी प्रोफेशनल्स एसोसिएशन से इसकी
बाकायदा ट्रेनिंग ली और भारत की पहली सर्टिफाइड कोऑर्डिनेटर बनीं।
अब आस्था देश में
इंटिमेसी प्रोफेशनल्स का नेटवर्क ‘दी इंटिमेसी कलेक्टिव’ की स्थापना भी कर चुकी हैं। वह बॉलीवुड के संगठन और दूसरे
लोगों से मिलकर इंटिमेट सीन्स की गाइडलाइन के लिए बात कर रही हैं।
सबका तालमेल हो तो
इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर की जरूरत नहीं
वेब सीरीज ‘शी’ के डायरेक्टर अविनाश दास ने बताया कि ‘शी‘ और ‘अनारकली ऑफ आरा’ के वक्त हमने आर्टिस्ट से पहले से क्लियर कर लिया था कि यह
सीन किस तरह से करना है, इसमें क्या-क्या बातें शामिल होंगी। इसमें मिसकम्युनिकेशन के लिए कोई जगह ही
नहीं छोड़ी थी।
वैसे सेट पर भारी भीड़ होती है, मगर इंटिमेट सीन में डायरेक्टर, डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी और फॉक्स पुलर सिर्फ इतने ही लोग इस सीन को हैंडल करते हैं। इस वक्त हम किसी असिस्टेंट डायरेक्टर को भी मौजूद नहीं रहने देते। यहां तक कि हमने सीन मॉनिटर भी हटा दिया था।
‘शी’
की थीम ही यह थी कि एक महिला पुलिसकर्मी अपनी सेक्शुलिटी को
कैसे समझती है।
‘अनारकली
ऑफ आरा’
में एक सिंगर अपने आत्मसम्मान को कैसे बचाए रखती है,
यह कहानी थी। सबके आपसी तालमेल की वजह से हमें कभी
कोऑर्डिनेटर की जरूरत महसूस नहीं हुई।
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