जब लड़के ने बचाई बच्ची की जान....

लीजिये आज हम फिर से हाज़िर हैं एक नए और रोचक कहानी के साथ. जिसको लिखा है अर्चना त्यागी ने. तो चलिए बिना देर किये पढ़ते हैं कहानी- जब लड़के ने बचाई बच्ची की जान. तो चलिए शुरू करते हैं आज की कहानी...

गोविन्दजी की बेटी का जैसा नाम थाभगवान ने उसे सूरत भी वैसी ही दी थी। समस्या बस एक ही थी। तीन साल की मिष्ठी थी बहुत शैतान। गोविन्दजी अपने काम पर चले जाते तो उनकी पत्नी लतिका दिन-भर मिष्ठी के पीछे-पीछे रहतीं। पता नहीं शैतान कब क्या कर बैठेपानी की भरी बाल्टी में खड़ी हो जाएरसोई के बर्तन गिरा देधुले कपड़े बाथरूम में डाल दे या गंदे कपड़े अलमारी में ठूंस दे उसके सिर पर कब क्या धुन सवार हो जाए कोई नहीं जानता था। घर में जहां तक उसका हाथ जाता थासामान संभला नहीं रह सकता था। हर समय उसके साथ पकड़म-पकड़ाई चलती रहती।

गोविन्दजी की पत्नी दिन भर उसके बिखेरे सामान को समेटती रहतीं या उसके पीछे दौड़ लगाती रहतीं। कहीं जातीं तो मिष्ठी को साथ लेकर ही जातीं। ज़रा-सी नज़र चूकते ही मिष्ठी उड़नछू हो जाती। राखी का त्योहार आने वाला था। लतिका ने सोचा राखी ख़रीदकर ले आती हूं। भाई के पास पहुंचने में समय लगता था। उनका भाई दूर रहता था। उन्होंने मिष्ठी को एक सुंदर-सा फ्रॉक और सैंडल पहनाकर तैयार किया। पर्स उठाया और मिष्ठी को दरवाज़े के बाहर खड़े रहने को कहा। मिष्ठी घूम-घूम कर नाच रही थी। उसे बाहर जो जाना था। लतिका काफी देर तक कोशिश करती रहीं परन्तु चाबी ताले में नहीं लग रही थी। मिष्ठी का गाना और घूमना चल रहा था। उन्होंने मिष्ठी को थोड़ा डांटा- मिष्ठीजब तक ताला बंद नहीं होतापीछे हट कर खड़ी रहो।’ मिष्ठी चुप होकर पीछे हट गई। उन्होंने पर्स से दूसरी चाबी निकाली। प्रयत्न करने पर वह ताले में ठीक बैठ गई। ताला बंद करके उन्होंने पीछे देखा। मिष्ठी नज़र नहीं आई। मेन गेट के बाहर भी कहीं नहीं थी। लतिका के होश उड़ गए। वे तेज़ी से गली के बाहर मेन रोड की तरफ़ भागीं। वहां छोटे बच्चे खेल रहे थे।

उन्होंने बच्चों से पूछा। एक बच्चे ने बताया कि मिष्ठी उनकी गेंद लेकर भाग गई है। अब तो लतिका बहुत परेशान हो गईं। उस पल को कोस रही थीं जब उस शैतान को चुप होकर पीछे हटने के लिए बोल दिया था। सड़क पर सब तरफ़ नज़र दौड़ाई परन्तु मिष्ठी कहीं नज़र नहीं आई। बच्चों को सड़क के इस पार छोड़कर लतिका सड़क पार करके दूसरी ओर आ गईं। रास्ते में जो भी मिलता पूछती जातीं। तभी एक बच्चा चाय की केतली और गिलास हाथ में पकड़े आता दिखाई दिया। उनके पूछने पर उसने कहा, ‘एक छोटी बच्ची हाथ में गेंद लेकर भाग रही थी। मुझे लगा सड़क पर उसे चोट लगेगी तो मैंने अपनी दुकान पर बाबा के पास बिठा दिया था। चलिए आपको ले चलता हूं उसके पास’ कहकर वो आगे-आगे चल पड़ालतिका उसके पीछे-पीछे। उन्होंने दूर से बच्चों को वापस लौट जाने का इशारा किया। मिष्ठी दुकान में मेज़ पर बैठकर टॉफी खा रही थी। अब जाकर उनकी जान में जान आई। बच्ची को साथ लेकर उन्होंने राखी ख़रीदी और घर वापस आ गईं। अपने भाई को राखी भेजकर उसे फोन पर सूचित कर दिया। गोविन्दजी शाम को घर आए तो उन्हें पूरी घटना बताई।

राखी के दिन गोविन्दजी और लतिका मिष्ठी को लेकर उस चाय की दुकान पर आए। लड़का उन्हें देखकर बहुत ख़ुश हुआ। बैठिए साहबमैडम आप भी बैठिएअभी मसाले वाली चाय बनाता हूं’ उसने ख़ुश होकर कहा। नहीं बेटा चाय पीने नहींहम किसी और काम से तुम्हारी दुकान पर आए हैं’ गोविन्दजी ने कहा। उसने बाबा को बुलाया। क्या मिष्ठी आपके बेटे को राखी बांध सकती है?’ लतिका ने विनम्रतापूर्वक पूछा। बच्चा आश्चर्यचकित था। बाबा ने इशारा किया तो उसने अपना हाथ मिष्ठी की ओर बढ़ा दिया। लतिका ने मिष्ठी के हाथ से उसके हाथ पर राखी बंधवा दी। मिष्ठी ने वैसी ही दूसरी राखी अपने हाथ में बंधवा ली। लड़के के बाबा ने हाथ जोड़कर कहा, ‘मेरे बेटे की बहुत अच्छी किस्मत है जो आपने उसे गुड़िया का भाई माना।’ ‘उसने भाई होने का फर्ज़ निभाया था उस दिन मिष्ठी की रक्षा करके। नहीं तो पता नहीं चलती सड़क पर क्या होता।’ लतिका ने जवाब दिया।

हां एक और बात अब आपका बेटा स्कूल जाएगा। उसकी पढ़ाई का पूरा ख़र्च हम उठाएंगे’ गोविन्दजी ने लड़के की ओर देखते हुए कहा। उसके बाबा की आंखें नम हो गईं। बस इतना ही बोल पाए हमारा सौभाग्य है जो मिष्ठी बिटिया हमें मिली। भगवान उसे लंबी उम्र दे।’ सारी बातों से बेख़बर मिष्ठी टॉफी की ज़िद कर रही थी। उसे याद आ गया था कि मेज़ पर बैठकर उसने टॉफी खाई थी।


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