इसी साल 9 जुलाई को कनाडा में पहली बार पारा 49.6 डिग्री पहुंचा, गर्मी से लोग चलते-चलते सड़कों पर गिरने लगे। इसी दिन अमेरिका के उत्तरी कैलिफोर्निया बॉर्डर में 4 लाख एकड़ से ज्यादा जंगल जल रहे थे। ठीक इसी दिन न्यूजीलैंड में इतनी बर्फ पड़ी कि सड़कें जाम हो गईं। घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई।
मौसम के इसी अजीबोगरीब बर्ताव के बारे में लिखे गए 14,000 साइंस पेपर्स पर रिसर्च किया गया। 60 देशों के 200 वैज्ञानिक इस काम पर लगे और 3,500 पेज की रिपोर्ट लिखी। सात सालों की स्टडी के बाद जब रिपोर्ट को नाम देने की बारी आई तो वैज्ञानिकों ने कहा- a code red for humanity यानी इंसानी जीवन खतरे के लाल निशान तक पहुंच गया है।
ये
रिपोर्ट पूरी दुनिया के बारे में है और अगले 100 सालों तक इस धरती पर होने वाले बदलावों की बात करती
है। हम उनमें से सबसे जरूरी बातें, उदाहरण के साथ बता रहे हैं। भारत में जो बदलाव दिख
रहे हैं, उन पर
अलग से बात करेंगे।
पहले
बात दुनिया की-
50 साल में एक बार आने वाली हीट वेव, हर साल
आने लगेगी, एक्स्ट्रीम वेदर कंडीशन से मचेगी तबाही
इस
रिसर्च में सबसे बड़ी बात मौसम की चरम परिस्थिति, यानी एक्स्ट्रीम वेदर कंडीशन की है। स्टडी के अनुसार, भूस्खलन, भारी
बारिश, बादल
फट जाना, चक्रवात
आना, बहुत
ज्यादा ओले पड़ना, बाढ़ आना या भयंकर सूखे जैसी तबाहियां जो पहले 50 साल
में एक बार होती थीं, वो साल 2100 तक हर साल होने लगेंगी।
अभी
ज्यादा दिन नहीं हुए, जुलाई के पहले हफ्ते में जिस कनाडा का औसत तापमान 16.4
डिग्री सेल्सियस रहता था, वहां का पारा 49.6 डिग्री तक पहुंच गया। वजह थी, हीट
वेव। स्कूल-कॉलेज, यूनिवर्सिटी, ऑफिस, टीका सेंटर बंद कर दिए थे। कनाडा के वैंकूवर, पोर्टलैंड, इडाहो, ओरेगन
की सड़कों पर पानी का फव्वारा छोड़ने वाली मशीन लगा दी गई थी। पावर सप्लाई काट दी
गई थी, क्योंकि
लाइट रहने पर आग लगने का डर था।
हीट वेव वाले 2 सिस्टम थे। मौसम में सिस्टम का मतलब आप समझते हैं? ये एकदम वैसा ही है, जैसा हम किसी काम के लिए एक सिस्टम बना देते हैं कि वो लगातार एक तरह से चलता रहे। हुआ ये था कि अलास्का के अलेउतियन द्वीप समूह और कनाडा के जेम्स बे-हडसन बे से निकली गर्म हवाओं ने एक सिस्टम बना लिया था। उनके अंदर ठंडी समुद्री हवा घुस ही नहीं पा रही थी। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि जैसे प्रेशर कुकर के आसपास ठंडी हवाएं रहती हैं, लेकिन अंदर गर्म भाप खाना उबालती है। उस समय अमेरिका और कनाडा उसी प्रेशर कुकर के अंदर उबलता हुआ महसूस कर रहे थे। फिर जून के आखिरी हफ्ते और जुलाई के शुरुआती 2 दिनों में न्यूजीलैंड में 8 इंच से ज्यादा बर्फ पड़ी। 55 साल बाद न्यूजीलैंड का तापमान जून-जुलाई में -4 डिग्री तक था। इतनी भयानक ठंड पड़ रही थी कि राजधानी वेलिंगटन में आपातकाल की घोषणा कर दी गई। समुद्र के किनारों पर 12 मीटर ऊंची लहरें उठ रही थीं।
धरती के थोड़े से
हिस्से में बारिश होगी, मूसलाधार होगी, बड़ा हिस्सा सूखे से बेहाल होगा,
गर्मी से तपेगा
रिसर्च में ये भी
सामने आया है कि केवल उच्च अक्षाशों वाले थोड़े से हिस्से में बारिश होगी। उच्च
अक्षांश वाले इलाके उन्हें कहते हैं जहां की जलवायु ऐसी है कि पूरे साल बारिश होती
रहे। इनमें यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया
के कुछ हिस्से और अधिकांश न्यूजीलैंड शामिल हैं।
यहां बारिश और
बढ़ेगी। इतनी कि बाढ़ जैसे हालात लगातार बने रहेंगे। बाकी बड़े हिस्से में गर्मी
पड़ेगी। इसी साल की बात है, यूरोप के देश हंगरी, सर्बिया, यूक्रेन
में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ी। पारा 40 डिग्री से ऊपर पहुंच गया, जबकि इटली में इतना पानी बरसा कि भयंकर बाढ़ आ गई। जर्मनी
में आंधी-तूफान ने तबाही मचा दी। रूस की राजधानी मॉस्को में 120 सालों बाद तापमान 35 डिग्री पहुंच गया।
समुद्र का पानी 4 मीटर तक बढ़ने वाला है, यानी एक मंजिला घर जितना ऊंचा
दुनिया का तापमान
अगले 20 सालों में 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। थर्मा मीटर पर देखेंगे तो आपको
ये बहुत थोड़ा मालूम होगा, लेकिन इसका असर जानते हैं? इतने भर से इतने ज्यादा ग्लेशियर पिघलेंगे कि समुद्र का
पानी 3-4 मीटर ऊपर आ जाएगा। हालांकि ऐसा सदी के अंत तक होगा। इससे
समुद्र किनारे बसे शहरों के दुनिया के करीब 100 करोड़ से ज्यादा लोग बेघर हो जाएंगे।
सिर्फ 1 साल पहले दुनिया के मौसम का हिसाब-किताब रखने वाले विश्व
मौसम विज्ञान संगठन, यानी WMO ने
बताया था कि अंटार्कटिका के बर्फ के पहाड़ों में तापमान बढ़ रहा है। 2020 में पहली बार यहां तापमान 20 डिग्री तक पहुंच गया था। अगर यहां के ग्लेश्यिर पिघलने
शुरू हो गए तो समुद्र में बढ़ा पानी धरती पर तबाही मचा देगा।
अब बात भारत की -
हमारे 12 शहर 3 फीट पानी के अंदर जाने वाले हैं,
उनमें मुंबई भी
शामिल
नासा ने IPCC
की रिपोर्ट का हवाला देते हुए भारत के 12 शहरों के बारे में कहा है कि ये 3 फीट पानी के अंदर चले जाएंगे। नासा ने कहा कि पूरी दुनिया
के इंसान जहां रहते हैं, उसका क्षेत्रफल घटने वाला है, क्योंकि समुद्र का पानी बढ़ जाएगा।
इसमें भारत के ओखा,
मोरमुगाओ, कंडला, भावनगर, मुंबई, मैंगलोर, चेन्नई, विशाखापट्टनम, तूतीकोरन, कोच्चि, पारादीप और पश्चिम बंगाल के किडरोपोर तटीय इलाके 3
फीट पानी के अंदर चले जाएंगे।
हमारे यहां 15 सालों में 310 मौसम की चरम परिस्थिति वाली घटनाएं घटीं
1970
से 2005 के बीच 35 सालों में मौसम की चरम परिस्थिति के चलते 250 घटनाएं घटी थीं, लेकिन 2005 से 2020 के बीच सिर्फ 15 सालों में 310 ऐसी घटनाएं घटीं। इसी साल 7 फरवरी को उत्तराखंड में एक ग्लेशियर के टूटने से ऋषिगंगा
और धौलीगंगा घाटियों में अचानक बाढ़ आ गई थी। करीब 200 लोगों की जान गई थी।
15 साल में 13 गुना बढ़ा सूखा, 40% बाढ़ ग्रस्त जिलों में सूखा भी
2005
से 2020 तक सूखा प्रभावित जिलों में 13 गुना बढ़ोतरी हो गई है। 2005 तक भारत में सूखे से प्रभावित जिले केवल 6 बचे थे, लेकिन अब इनकी संख्या 79 हो गई है। इसमें चौंकाने वाली बात ये है कि अब 40% बाढ़ ग्रस्त जिले ही सूखे का भी सामना करते हैं।
साल 2005 के बाद से चक्रवातों से प्रभावित जिलों की संख्या सालाना
औसतन दोगुनी हो गई है। बीते एक दशक में पूर्वी तट के लगभग 258 जिले चक्रवात से प्रभावित हुए हैं।
3 दिन की बारिश 3 घंटे में होने लगी है
स्काईमेट के महेश
पहलावत कहते हैं कि पहले अरब सागर के तूफान 2 साल में एक बार आते थे, अब एक साल में दो-दो बार आने लगे हैं। ये भारत के मौसम की
नमी को खींचकर सऊदी अरब की ओर ले जाते हैं। इससे अगले पांच सालों तक भारत में
बारिश बुरी तरह प्रभावित होती है।
10
साल पहले जितनी बारिश 3 दिन में होती थी, अब वो 3
घंटे में हो जाती है। पहले 1 जून से 30 सितंबर के बीच के 122 दिनों में 880 मिलीमीटर के आसपास बारिश होती थी। अब भी बारिश की कुल
मात्रा में अधिक बदलाव नहीं आया है, लेकिन रेनी डे अब 60 या इससे कम बचे हैं। रेनी डे का मतलब ये होता है कि जिस
दिन 2.4 मिलीमीटर से अधिक बारिश हुई वो रेनी डे है।
संयुक्त राष्ट्र की
पैनल है IPCC, हर 7 साल में क्लाइमेट चेंज पर देती है रिपोर्ट
संयुक्त राष्ट्र
यानी UN
का इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज यानी IPCC
साल 1988 से वैश्विक स्तर पर क्लाइमेट चेंज का आकलन कर रही है। यह
पैनल हर 5 से 7 साल में दुनियाभर में पर्यावरण की स्थिति की रिपोर्ट देता
है। IPCC
की ये छठी एसेसमेंट रिपोर्ट है। इसे 9 अगस्त को जारी किया गया था।
सरकारें बैठकें करती रहेंगी, पर आप धरती को बचाने के लिए 5 कदम जरूर उठाएं
सबसे आखिर में ये
बात कर लेते हैं कि क्या इन सब से बचने का कोई उपाय है?
रिपोर्ट के लेखक फ्रेडरिक ओटो ने कहा कि अगर हम पृथ्वी का
औसतन तापमान 1.5
डिग्री पर स्थिर या इससे कम कर लेते हैं तो मौसम की खराब स्थितियों से बचा जा सकता
है।
यही हालत हमने बनाए
रखी तो 2040 के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस का जो बॉर्डर है,
उसे पार कर जाएंगे। कुछ महीनों बाद दुनियाभर की सरकारें
स्कॉटलैंड के ग्लास्गो में एक कॉन्फ्रेंस करेंगी। पहले भी करती रही हैं,
लेकिन आप क्या कर सकते हैं-
देखिए धरती के
तापमान को बढ़ाने में सबसे बड़ी भूमिका ग्रीन हाउस गैसों की है। हर साल इंसान 50 बिलियन टन, यानी 45 लाख करोड़ किलो से ज्यादा गैसें इस प्रकृति में डाल देते
हैं। इसे कम करने के लिए हम 5 चीजें कर सकते हैं-
घर के गीले और सूखे
कचरे को अलग-अलग रखें, क्योंकि गीले कचरे से ज्यादातर कंपोस्ट बनाने लगे हैं,
जिसे दोबारा
इस्तेमाल किया जाता है।
बिना वजह मोबाइल फोन
और इंटरनेट का इस्तेमाल न करें। हर बार जब हम इंटरनेट के लिए क्लिक करते हैं,
तो उस सर्च को आपके स्क्रीन पर दिखाने के लिए जो टूल काम
करते हैं,
उनसे ग्रीन हाउस गैस निकलती है।
·
प्लास्टिक
का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर दें।
·
पेट्रोल-डीजल
वाली कार,
बाइक का इस्तेमाल तभी करें जब उसकी बहुत ज्यादा जरूरत हो।
·
घर
में बल्ब,
लाइट्स, AC किसी भी सूरत में तब न चलाएं, जब उनकी जरूरत नहीं है।
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