लीजिये आज हम फिर से हाज़िर हैं एक नए और रोचक कहानी के साथ. जिसको लिखा है सुश्री गोयल जी ने. तो चलिए बिना देर किये पढ़ते हैं कहानी- अच्छे व्यवहार का सुख.. तो चलिए शुरू करते हैं आज की कहानी...
उफ़! आज फिर काम वाली ने कह दिया कि आज
नहीं आ सकती, बहन के यहां जाना है। कौन-सा बहुत दूर
रहती है बहन, मुश्किल से दो-तीन किमी पर रहती है। चाहती तो
जाकर, वापस काम पर भी आ सकती थी मगर इन कामवालियों को तो
छुट्टी का बहाना चाहिए। नागा काटने की बात करो तो नौकरी छोड़ने की धमकी देती हैं।
बहुत देर तक मन ही मन कोसने के बाद मैंने सोचा चलो पड़ोस की संध्या भाभी के पास चला
जाए, चाय भी पीने मिल जाएगी और कहूंगी कोई काम वाली ढूंढ
दें। अभी वाली भी उन्होंने ही ढूंढ कर दी थी।
बड़ी भली महिला हैं संध्या भाभी,
मुझे याद है जब मैं नई-नई इस मोहल्ले में आई थी, और घर के सामन व्यवस्थित करने में लगी थी, तब संध्या
भाभी एक जग पानी लेकर आईं थीं और कहा था कुछ ज़रूरत हो तो बताना। मैंने उनको
धन्यवाद कह कर विदा किया। दो-चार दिन में घर का सारा सामान पूरी तरह व्यवस्थित
होने के बाद सत्यनारायण की पूजा का न्यौता देने के लिए मैं आस-पड़ोस के घरों में
गई। कितनी अच्छी परम्परा है, पूजा के नाम से आस-पास के लोगों
से परिचय भी हो जाता है, और नई जगह में रहने को मन मज़बूत भी
हो जाता है। संध्या भाभी के घर भी गई थी। देखा था मैंने ख़ूब बड़ा मकान है उनका।
काफ़ी धनाढ्य लोग हैं, दो तीन महंगी कारें खड़ी थीं उनके घर
पर, गार्ड बैठा था और ड्राइवर लोग आपस में बातें कर रहे थे।
थोड़ा सकुचाते हुए अंदर प्रवेश किया तो देखा, भाभी घर के
अस्त-व्यस्त रखे सामानों को व्यवस्थित करते जा रही थीं।
काफ़ी बड़ा तीन भाइयों का सम्मलित परिवार
था। सभी के दो-दो बच्चे फिर भाभी की सास, न जाने
कुल कितने लोग थे, लेकिन पूरा घर भरा पूरा था! घर के तीन-चार
बच्चे संध्या भाभी के पीछे-पीछे अपनी अपनी फरमाइश लेकर घूम रहे थे, कोई चाची कह रहा था कोई बड़ी मम्मी कह रहा था इस से मुझे समझ आ गया कि सभी
बच्चे भाभी के जेठ और देवर के हैं। इसी बीच भाभी की नज़र मुझ पर पड़ी, देखते ही उन्होंने मुस्कुरा कर आत्मीयता के साथ ‘आओ
आओ आज टाइम मिला है आने का’ का उलाहना देते हुए मुझे सोफे पर
बिठाया। मैं याद कर रही थी भाभी जब कभी दिख जाती थीं तो घर आने का कहना नहीं भूलती
थीं।
मैं कुछ कहती इस से पहले ही भाभी ने कहा ‘पहले बताओ कि क्या पियोगी?’ मैंने कहा, ‘नहीं, कुछ आवश्यकता नहीं है घर से खा पी कर आई हूं’, तो भाभी ने मीठी झिड़की देते हुए कहा, ‘हां, मैं जानती हूं कि सभी लोग घर से खा-पी कर ही निकलते है, मगर आप ये कहो कि मेरे यहां क्या लोगी।’ मैंने कहा, ‘चाय ले लूंगी।’ मैंने सोचा था भाभी किसी नौकर को आवाज़ देंगी और चाय बनाने को कहेंगी मगर भाभी ख़ुद ही बनाने लगीं और चाय के बनते-बनते उनके अन्य काम भी चालू थे। संध्या भाभी अपने सभी नौकर-चाकरों को आदेश देते समय नाम के साथ भैया लगाना नहीं भूलती थीं। उनके सभी नौकर काफ़ी पुराने थे और बरसों से टिके हुए थे। इसी बीच चाय का कप मेरे हाथों में दे दिया तो ऐसा लगा मानो भाभी ने जादू से चाय का कप ला दिया हो। बातो बातो में भाभी ने कहा, ‘अगले महीने मेरे जेठ के बेटे की शादी है, आप ज़रूर आना। देखो अभी से कह दे रही हूं भूल ना जाना।’ और फिर अपनी समस्या के समाधान का आश्वासन लेते हुए मैंने भाभी से विदा ली। घर पहुंचते तक संध्या भाभी के बारे में ही सोचती रही, कितनी गुणी महिला हैं। रिसेप्शन वाले दिन शाम को हम पति-पत्नी मैरिज हॉल पहुंचे। पार्टी पूरे शबाब पर थी, बहुत ही भव्य डेकोरेशन था और खाने-पीने के ढेरों स्टॉल लगे हुए थे।
मेहमानों की गिनती तो पूछो मत, लगता था
सारा शहर उमड़ आया हो। ऐसे माहौल में संध्या भाभी अचानक आईं और मेरे पास खड़े
व्यक्ति, जो शायद उनके देवर का दोस्त था, से पूछा, ‘हेमू, मेरा एक काम
करेंगे, भंडार गृह से टिफिन रेडी करा कर घर पर देकर आइए,
नौकर वहां भूखे बैठे होंगे।’ उनसे आग्रह करके
वे हमारी ओर मुड़ीं, हमसे अच्छी तरह से भोजन करने का आग्रह
किया, साथ ही दो-तीन डिश के नाम गिनाए और कहा कि ये तो ज़रूर
खाना फिर अन्य लोगों से मिलते हंसते-मुस्कुराते वो आगे बढ़ गईं। मैं सोच में पड़ गई
कि घर की शादी के माहौल में धनाढ्य घरों की महिलाओं को अपने ज़ेवर, मेकअप और ड्रेस की ही फ़िक्र रहती है, लेकिन संध्या
भाभी को ऐसे माहौल में भी अपने नौकरों की फ़िक्र थी? मेरा मन
उनकी सोच के आगे नतमस्तक हो गया। कितने अधिकार से उन्होंने अपने मेहमान को भी काम
करने को कह दिया। अब मैंने जाना कि कोई भी उनके कहे को टालता क्यों नहीं है और
कैसे नौकर उनके यहां बरसों टिके रहते हैं। आज एक नई शिक्षा लेकर मैं पार्टी से
विदा हुई।
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