कहानी : भलाई का ज़माना...

लीजिये आज हम फिर से हाज़िर हैं एक नए और रोचक कहानी के साथ. जिसको लिखा है नीरजा वर्मा ने. तो चलिए बिना देर किये पढ़ते हैं कहानी- भलाई का ज़माना... तो चलिए शुरू करते हैं आज की कहानी...

बीते कुछ वर्ष पहले की बात है, पोते के होने की ख़ुशी में मैं और मेरा बेटा रांची गए। वहां छठी की पूजा होने के बाद हमें लौटना था किंतु तत्काल टिकट पर रिज़र्वेशन नहीं मिल रहा था। अनेक कोशिशों के बाद भी रिज़र्वेशन ना मिलने पर और ना रुक पाने की मजबूरी से हमने हिम्मत कर जाने का फैसला किया। राउरकेला में कहीं ना कहीं रिज़र्वेशन मिल ही जाएगा, इस उम्मीद पर हम निकल पड़े। बेटा रास्ते भर टी टी से मिल कहीं रिज़र्वेशन की एक बर्थ भी मिल जाए, इस कोशिश में लगा रहा। राउरकेला पर टी टी मिला, तो उसने कहा- सामने फर्स्ट क्लास के डिब्बे में आंटी को चढ़ा दो। अगले दो-तीन स्टेशन के बाद 10 नंबर की सीट खाली होगी। अभी से उन्हें कूपे में भेज दो।बेटे ने मुझे फर्स्ट क्लास में चढ़ा दिया।

भाग-दौड़ ने घुटनों का दर्द बढ़ा दिया था। मेरे पैर काफी सूज चुके थे। उस कूपे का दरवाज़ा खोल मैंने जैसे ही अंदर प्रवेश किया, सामने एक बुज़ुर्ग व्यक्ति घूरता नज़र आया। दूसरी बर्थ पर कोई सिर ढक के सो रहा था। चश्मे वाले ने काफी रफ तरीक़े से पूछा क्या है?’ मेरे जवाब देने पर कि अगले दो स्टेशन के बाद यहां एक बर्थ खाली होने वाली है अतः टी टी ने मुझे बैठने को कहा है, सुनते ही वो भड़क उठा। मैं रिटायर्ड रेलवे ऑफिसर रहा हूं। 3 महीने पहले से मैंने सीट बुक कराई थी और आप ऐसे ही चले आए इस कूपे में। हमें कोई डिस्टरबेंस नहीं चाहिए। यहां से जाइए।ऐसी बदतमीज़ी-भरी बात मैंने कभी ज़िंदगी में नहीं सुनी थी, सो मैं भी भड़क उठी- कोई फ्री में यहां नहीं बैठने आई हूं और परमिशन से ही आई हूं।अब वह बड़बड़ाता हुआ मोबाइल उठाकर- अभी कंप्लेंट करता हूंकहते हुए, फोन लगाने लगा।

तभी सामने की बर्थ पर सोया युवक तेज़ी से उठ खड़ा हुआ और उस बुज़ुर्ग से ग़ुस्से में कहने लगा- अंकल, आपको एक बुज़ुर्ग लेडी से बात करने की तमीज़ नहीं है? आपको क्या प्रॉब्लम है? इस तरह से दादागिरी नहीं जताई जाती। मानवता और इंसानियत भी कोई चीज़ होती है। इनके सूजे पैर देखिए।मेरी ओर बढ़ते हुए उसने कहा- आंटी आप मेरी सीट पर बैठिए, मैं खड़ा रहूंगा बाहर।उसने मुझे आदरपूर्वक बैठने को जगह दी। मैं मन ही मन उसे दुआएं देती- धन्यवाद बेटाकह उठी। वाकई आज भी भलाई का ज़माना है।

Post a Comment

0 Comments