मिल गये देवधर...
बात कुछ वक़्त पहले की
है। तब मेरी शादी को कुछ ही वक़्त हुआ था। मेरे ससुराल पक्ष की एक रिश्तेदार का
हमारे घर आना हुआ। वो एक छोटे से कस्बे की रहने वाली थीं। उनका एक आठ वर्ष का बेटा
भी साथ ही आया था जो स्पेशल चाइल्ड था। वो ठीक से बोल नहीं पाता था लेकिन बाकी
मस्ती में एक्टिव था। पता चला कि वो उसी के इलाज के सिलसिले में आई हुई थीं।
चाय-नाश्ते के बाद वो नहाने चली गईं और उनका बेटा वहीं हॉल में बैठा रहा। मैं किचन
में खाने की तैयारी में जुट गई।
घर के बाकी सदस्य भी
अपने-अपने काम से निकल गए। कुछ देर तक तो उनके बेटे की आवाज़ें हॉल से आती रहीं
लेकिन फिर गेट खुलने की आवाज़ आई। मुझे लगा शायद घर का कोई सदस्य कोई बाहर से आया
है इसलिए मैंने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। कुछ देर बाद जब मेरी रिश्तेदार बाहर आईं
तो अपने बेटे को न देख वो परेशान हो गईं। तभी उनकी नज़र मेन गेट पर गई जो खुला हुआ
था। उन्हें समझते देर नहीं लगी कि उनका बेटा सड़क पर निकल गया है। उन्होंने बताया
कि अक्सर गेट खुला मिलते ही वो बाहर दौड़ लगा देता है। वो बदहवास सी बाहर सड़क पर
भागीं। मैं भी उनके पीछे-पीछे दौड़ी। कस्बे में तो सभी पहचानते हैं इसलिए कोई न
कोई घर छोड़ जाता है लेकिन यहां वो ध्यान नहीं रख पाईं। हम उसे चारों तरफ़ खोजने
लगे। आसपास पूछताछ की तो एक दुकानदार ने बताया कि हां ऐसा एक बच्चा दौड़ता हुआ बीच
सड़क पर आ गया था और बाइक वाले दो लड़के उसे बिठाकर ले गए। इतना सुनते ही उनकी
आंखों में आंसू आ गए। उन्हें रोता देख मेरा मन भी आशंका से भर गया। हमने बिना देर
किए थाने जाने का फैसला लिया।
मैंने अपने टू-व्हीलर पर
उन्हें बैठाया और सीधे थाने की तरफ़ निकल पड़ी। मैं उन्हें ढांढस बंधा रही थी
लेकिन सच तो ये है कि मेरी ख़ुद की रुलाई फूट रही थी। थाने पहुंचे तो आंखों पर यकीन
नहीं हुआ। उनका बेटा बड़े आराम से एक कॉन्सटेबल के पास बैठा था। मेरी रिश्तेदार
बेटे को देख दौड़ पड़ीं और उसे सीने से लगा लिया। पुलिस वाले हैरानी से देखने लगे।
पुलिस वालों को मैंने सारी स्थिति से अवगत कराया, तो उन्होंने उन युवकों की तरफ़ इशारा किया कि इन्हें थैंक्यू
बोलिए। हमने उनके सामने हाथ जोड़ लिए। उन्होंने बताया कि ये बच्चा सड़क के
बीचो-बीच दौड़ रहा था और हमारी गाड़ी से टकराते-टकराते बचा। हमने नाम पता पूछा तो
कुछ नहीं बता पाया।
हमें स्थिति समझ में आई
तो हम इसे थाने ले आए। उन दोनों से और पूछताछ की ज़रूरत नहीं थी, सो वे जल्द ही वहां से निकल गए। हम उन्हें ठीक
से धन्यवाद भी नहीं दे पाए। उन दोनों युवकों की सजगता और नेक इरादों से बच्चा
सुरक्षित मिल गया। लगा कि वाकई भलाई का ज़माना है। वो दोनों युवक हमारे लिए देवदूत
बनकर आए थे।
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