संघर्ष से कामयाबी तक : पहले घर घर टिफिन फिर इडली, अब कमाती हैं 2 से 3 हज़ार रूपए प्रतिदिन...

उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद की रहने वालीं गीता जायसवाल का बचपन तंगहाली में गुजरा। शादी के बाद उन्हें उम्मीद थी कि हालात बदलेंगे, लेकिन मुश्किलें कम होने की बजाय बढ़ती गईं। घर की माली हालत दिन पर दिन बिगड़ती गई। पति ने साथ देना छोड़ दिया। घर-परिवार और एक बेटी की जिम्मेदारी उनके कंधे पर आ गई। जैसे-तैसे करके एक छोटा सा कारोबार खड़ा भी किया तो कोरोना ने सबकुछ तहस-नहस कर दिया, लेकिन गीता ने मुश्किलों के आगे घुटने नहीं टेके। वे हर बार मजबूती के साथ नई शुरुआत करती रहीं। अभी गीता दिल्ली में इडली सांभर का स्टॉल लगाती हैं और हर दिन 2 से 3 हजार रुपए की कमाई कर लेती हैं।

पति ने घर की जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लिया

43 साल की गीता एक बेहद जैसे-तैसे करके गीता ने सड़क किनारे लिट्टी चोखा का ठेला लगाना शुरू किया। कुछ दिन तक तो आमदनी न के बराबर हुई, लेकिन बाद में धीरे-धीरे ग्राहक बढ़ने लगे। गीता रोज शाम में लिट्टी चोखा का स्टॉल लगातीं और उससे परिवार की देखभाल करने लगीं। कुछ सालों तक लिट्टी चोखा लगाने के बाद गीता को लगा कि कुछ नया शुरू करना चाहिए, क्योंकि दिल्ली में कई लोग लिट्टी चोखा का स्टॉल लगाते थे। इसलिए इससे कुछ खास आमदनी नहीं हो रही थी। ऊपर से घर में बेटी को छोड़कर देर शाम तक बाहर रहना पड़ता था।

गीता बताती हैं कि दिल्ली में UPSC और दूसरे कॉम्पिटिशन की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स काफी संख्या में रहते हैं। इनमें से ज्यादातर दूसरे राज्यों से होते हैं और उन्हें खाने-पीने की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसलिए मैंने तय किया कि अगर इन स्टूडेंट्स को होममेड टिफिन मिल जाए तो इनके लिए भी अच्छा रहेगा और हमारी भी अच्छी इनकम हो जाएगी।

खुद ही तीन टाइम खाना बनाती थीं और स्टूडेंट्स के घर टिफिन पहुंचाती थींही सामान्य परिवार से ताल्लुक रखती हैं। 21 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई। इसके बाद वे अपने पति के साथ मुंबई चली गईं। वहां कुछ साल रहने के बाद उन्हें वापस इलाहाबाद लौटना पड़ा। उनके पति ने काम करना बंद कर दिया और धीरे-धीरे परिवार की जिम्मेदारियों से भी मुंह मोड़ लिया।

गीता के पास पहले से कोई खास संपत्ति नहीं थी। बेटी धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी। घर परिवार की भी जिम्मेदारी थी। काफी सोच विचार करने के बाद गीता 2016 में अपनी बेटी के साथ दिल्ली आ गईं।गीता कहती हैं कि उनके पास दिल्ली आने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं था। यहां आने के बाद भी कई मुश्किलें थीं। हम शहर में नए थे, हमारे पास कुछ खास पैसे भी नहीं थे। इतने बड़े शहर में कहां रहा जाए और क्या किया जाए ताकि कुछ आमदनी हो सके, यह सबसे मुश्किल सवाल था।

लिट्टी-चोखा का स्टॉल लगाना शुरू किया

इसके बाद गीता ने घर से ही टिफिन बनाकर स्टूडेंट्स को देना शुरू कर दिया। वे दिन में तीन बार स्टूडेंट्स को टिफिन प्रोवाइड कराती थीं। जल्द ही उनके पास ऑर्डर्स भी बढ़ने लगे। साल 2020 की शुरुआत तक उनके पास करीब 60 से 70 कस्टमर हो गए। जिन्हें वे टिफिन देती थीं। इससे उनकी अच्छी आमदनी हो रही थी। बेटी की पढ़ाई भी ठीक से चल रही थी। गीता को लगा कि अब सबकुछ ट्रैक पर लौट रहा है। तभी कोरोना ने कहर बरपाना शुरू कर दिया।

गीता कहती हैं कि कोरोना के चलते लॉकडाउन लगा तो कॉलेज और कोचिंग संस्थान बंद हो गए। जो स्टूडेंट्स दूसरे राज्यों से थे, वे अपने-अपने घर लौट गए। इससे एकाएक उनकी टिफिन सर्विस बंद हो गई। आमदनी ठप हो गई। अब गीता के सामने दोहरी मुश्किल खड़ी हो गई। वे न तो टिफिन सर्विस चला सकती थीं और न ही वापस लिट्टी चोखा का स्टॉल लगा सकती थीं।

मरीज की देखभाल करने का काम भी किया

दिल्ली जैसे शहर में बिना आमदनी के रहना मुमकिन नहीं है। यही सोचकर गीता काम की तलाश में जुट गईं। कुछ दिनों बाद उन्हें रोहिणी सेक्टर में एक मरीज की देखभाल का काम मिला। वे अपनी बेटी को अकेली छोड़कर वहां काम करने लगीं। करीब 4 महीने तक गीता ने मरीज की देखभाल की। बाद में जब बेटी को परेशानी होने लगी तो उन्होंने काम छोड़ दिया।

जुलाई 2020 में जब लॉकडाउन में ढील मिली तो गीता ने मिसेज इडली नाम से इडली सांभर और डोसा का स्टॉल लगाना शुरू किया। शुरुआत में आसपास के दुकानदारों ने उनका विरोध भी किया। इससे उन्हें अपनी लोकेशन बदलनी पड़ी। उन्होंने दिल्ली के शालीमार बाग में स्टॉल लगाना शुरू कर दिया। पहले तो उन्हें न के बराबर आमदनी हुई लेकिन बाद में उनकी दुकान चलने लगी। अच्छी आमदनी होने लगी।

लेकिन, इसी बीच कोरोना की दूसरी लहर आ धमकी। उन्हें फिर से अपना काम बंद करना पड़ा। हालांकि कुछ दिनों बाद हालात नॉर्मल हो गए। प्लेन इडली से शुरुआत करने वाली गीता ने वैराइटी जोड़ते हुए चॉकलेट इडली, मसाला इडली और पिज्जा इडली भी अब अपने ग्राहकों को परोसनी शुरू कर दी हैं।

बेटी को डॉक्टर बनाना चाहती हूं

अभी गीता हर दिन शाम 5 बजे से स्टॉल लगाती हैं। देर रात तक उनके स्टॉल पर लोग खाने के लिए आते रहते हैं। हर दिन 2 से 3 हजार रुपए उनकी कमाई हो जाती है। इससे वे अपने परिवार और बेटी की पढ़ाई का खर्च निकाल लेती हैं। गीता की बेटी फिलहाल 12वीं में है और मेडिकल की तैयारी कर रही है। गीता कहती हैं कि पति ने भले ही साथ छोड़ दिया, लेकिन मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकती। मेरी पूरी कोशिश है कि बेटी पढ़-लिखकर डॉक्टर बने।


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