बहुत काम की PPE kit , कहीं नुकसान न दे जाए
दुनिया में कोरोना को अब तक
महामारी ही समझा गया है, लेकिन
एक सच यह भी है कि कोरोना हमारे पर्यावरण के लिए भी बड़ा खतरा है। दरअसल, इससे निपटने में जुटी दुनिया खतरनाक बायो मेडिकल वेस्ट (BMW) का इतना ऊंचा पहाड़ खड़ा कर रही है कि उससे जल्दी पार पाना मुश्किल हो जाएगा।
इसे एक PPE (Personal
Protective Equipments) किट के उदाहरण से समझा
जा सकता है। PPE किट में पॉलीप्रोपोलीन से बना
बॉडी सूट, लोअर, हेड कवर, बूट कवर, ग्लव्स और गॉगल्स शामिल होते हैं। N-95 मास्क अलग होता है। अब अगर इस्तेमाल के बाद किसी PPE को कहीं फेंक दिया गया तो उसे गलने में 500 साल लगेंगे। वहीं, अगर उसे बंद भट्टी में जलाया गया यानी इंसीनरेट किया गया तो उससे 3816
किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)
निकलेगी। इतनी CO2 को सोखने के लिए किसी एक पेड़
को 182 दिन लगेंगे। दूसरे शब्दों में कहें तो 182 पेड़ इतनी CO2 को एक दिन में खत्म कर सकेंगे। इसी तरह रोज करोड़ों की तादाद में बनाए जा
रहे मेडिकल और N-95 मास्क और रोज वातावरण में
छिड़के जा रहे लाखों लीटर सैनिटाइजर-डिसइंफेक्टेंट ने भी पर्यावरण के लिए बड़ा
खतरा पैदा कर दिया है।
तो आइए जानते हैं कि कैसे
कोरोना पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा बनने जा रहा है, खासतौर पर भारत में...
दुनिया भर के
रिसर्चर यह पता लगाने में जुटे हैं कि पर्यावरण में फैले प्रदूषण का कोरोना के
फैलने,
उसके गंभीर होने या उसके चलते मौत होने से कोई नाता है या
नहीं। कुछ स्टडीज में यह बात स्थापित भी हो चुकी है कि कोरोना से मौत के पीछे
प्रदूषण भी एक कारण हो सकता है। हालांकि यह संबंध अभी सिर्फ प्रदूषण और कोरोना से
जुड़े डेटा के एनालिसिस से स्थापित हुआ है। मेडिकल जर्नल कार्डियोवस्कुलर रिसर्च
में पब्लिश हुए एक पेपर के मुताबिक दुनिया में हुई 15% मौतों का सीधा संबंध लंबे
समय तक PM
(particulate matter) यानी
महीन धूल और जहरीले केमिकल के मिलने से बने प्रदूषित कणों के बीच रहने से है। इधर,
वर्ल्ड बैंक के एक पॉलिसी रिसर्च वर्किंग पेपर के मुताबिक
भारत में particulate matter 2.5 (PM 2.5) के प्रदूषण में प्रत्येक 1% बढ़ोतरी के साथ कोरोना से
मरने वालों का आंकड़ा 5.7 percent point बढ़ जाता है। धूल वाले इस प्रदूषण से कोरोना से मौत की दर
भी बढ़ जाती है।
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