जब शमशान ही बन जाए घर ! इन माँ बेटी की न तो सरकार को सुध न परिवार को...

जब शमशान ही बन जाए घर ! इन माँ बेटी की न तो सरकार को सुध न परिवार को...

श्मशान घाट! नाम सुनते ही रौंगटे खड़े हो जाते हैं, लेकिन संगरूर जिले के भवानीगढ़ के गांव बालद कलां का एक मां-बेटी ऐसी भी हैं जो पिछले सात वर्ष से इस श्मशानघाट में अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं। दोनों मां-बेटी ही एक-दूसरे की जिंदगी का सहारा हैं और जैसे-जैसे श्मशानघाट में अपनी सिर छुपाए दिन गुजारने को मजबूर हैं।

भवानीगढ़ के समीप मौजूद गांव बालद कलां में एक विधवा महिला व उसकी मंदबुद्धि लड़की के लिए यह श्मशानघाट ही उनका घर है। परिवार के पास न तो कोई खाने का बंदोबस्त है तथा न ही कमाई की कोई साधन। श्मशानघाट में एक तरफ चिता जलती है तो दूसरी तरफ गरीब परिवार का चूल्हा। इतना ही नहीं, मां-बेटी को न तो पेंशन की लाभ मिला है तथा न ही आटा-दाल स्कीम का।

सरकार या प्रशासन ने पिछले सात वर्ष में इनकी सार तक नहीं ली है। अपनी दशा बयान करती बुजुर्ग महिला लाभ कौर ने बताया कि उसके पति की बीमारी के चलते मौत हो गई थी। कोई अन्य औलाद नहीं थी व न ही परिवार में कोई कमाने वाला बाकी बचा था। मंदबुद्धि बेटी जवान हो रही थी तो उसके विवाह के लिए उसने अपना मकान बेच दिया था। खुशियों से अपनी बेटी की शादी की, लेकिन उसका भी घर नहीं बसा व बेटी दो वर्ष पहले ससुराल से वापस उसके पास लौट आई।

लाभ कौर ने अपनी इस मंदबुद्धि बेटी का घर बचाने के लिए अपना मकान बेचा, लेकिन अब न तो उसकी बेटी का घर बसा तथा न ही उनके सिर पर मकान की छत रही। कुछ समय उसने अपनी बेटी के साथ कभी गांव की धर्मशाला तो कभी गांव के अन्य धार्मिक स्थल पर दिन गुजारे, लेकिन कहीं पर भी उसे सहारा नहीं मिल पाया। कोई अन्य जगह न होने के कारण वह अपनी बेटी के साथ बाकी की जिंदगी गुजारने के लिए गांव के श्मशानघाट में शरण ले ली। इस जगह पर ही अब वह पिछले करीब सात वर्ष से रह रही है।

परिवार में कोई कमाने वाला कोई आदमी नहीं है। लोगों द्वारा दी गई दो वक्त की रोटी से वह अपना पेट भर लेते हैं या गलियों में से कांच या प्लास्टिक की बोतलें इकट्ठा करके बेचने के बाद मिलने वाले कुछ पैसे से अपना रोटी का प्रबंध करती हैं। कभी कभार भूखे पेट ही रहने के लिए मजबूर हैं। गत वर्ष कोरोना काल दौरान से अब तक उन्हें राशन का एक दाना भी नहीं मिला है।

सरकारी योजनाओं का लाभ बेशक लोगों को मिल रहा है, लेकिन प्रधानमंत्री आवास योजना, पेंशन स्कीम, आटा-दाल स्कीम, आयुष्मान सेहत बीमा योजना सहित अन्य लोक भलाई की स्कीमों का भी उसे कोई लाभ नहीं मिला है। सरकार की योजनाएं, सियासतदान या प्रशासनिक अधिकारी भी शायद श्मशानघाट में रहते इस परिवार को भूल गए हैं।

गरीब परिवार की मदद के लिए ग्रामीणों ने लगाई गुहार

गांव निवासी नरिंदर कौशल, मेजर सिंह, बबला सिंह, शाम लाल ने कहा कि सरकार व प्रशासन को उक्त गरीब परिवार की सार लेनी चाहिए। परिवार के पास कोई सहारा नहीं है, जिस काऱण मां-बेटी श्मशानघाट में जिंदगी गुजार रही हैं। सरकार व प्रशासन इन मां-बेटी को विधवा व बुढ़ापा पेंशन का लाभ प्रदान करे। अगर सरकार इनके लिए प्रबंध करती है तो इनकी दशा में सुधार हो सकता है। उन्होंने मांग की कि प्रशासन जल्द से जल्द इनकी सुध ले व इनके बनती लोक भलाई स्कीम का लाभ प्रदान किया जाए।

कई वर्ष परिवार ने गुजारे, जल्द दिलाएंगे मदद

गांव के सरपंच गुरदेव सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि यह परिवार उनकी टर्म से पहले से ही श्मशानघाट में रह रहा है। परिवार की मुखिया लाभ कौर की पेंशन लगी हुई है। मंदबुद्धि लड़की की पेंशन लगवाने के लिए परिवार ने कभी पहल नहीं की। वह यह मामला प्रशासन के ध्यान में लाकर परिवार की बनती मदद जल्द ही दिलाएंगे। परिवार को किसी प्रकार की कोई परेशानी पेश नहीं आने दी जाएगी।

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