एऑर्टिक एन्यूरिज्म : बीमारी के चलते 50% मौत इलाज के पहले ही...

एऑर्टिक एन्यूरिज्म : बीमारी के चलते 50% मौत इलाज के पहले ही...

अंगूठे की मदद से किया जाने वाला टेस्ट आपको ऐसी बीमारी से बचा सकता है, जिसमें लक्षण तक नहीं दिखते। बीमारी का नाम है एऑर्टिक एन्यूरिज्म। यह हृदय रोग का एक प्रकार है। अमेरिकन जर्नल ऑफ कार्डियोलॉजी में पब्लिश रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, अंगूठे और हथेली से किए जाने वाले टेस्ट से इस बात का काफी सटीक पता लगाया जा सकता है कि किसी इंसान को एऑर्टिक एन्यूरिज्म बीमारी का कितना खतरा है। शोधकर्ताओं ने इसे हिडन एऑर्टिक एन्यूरिज्म नाम दिया है।

क्या है एऑर्टिक एन्यूरिज्म ?

धमनियों की दीवार कमजोर हो जाने के कारण उनके बढ़ने को एन्यूरिज्म कहा जाता है। इससे कई बार अंदरूनी ब्लीडिंग का खतरा बढ़ता है। थम्ब टेस्ट पॉजिटिव आने का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि इंसान को हृदय रोग संबंधी कोई इमरजेंसी समस्या है।

रिसर्च के मुताबिक, ज्यादातर लोगों में एऑर्टिक एन्यूरिज्म होने पर इसका पता नहीं चल पाता क्योंकि इसके कोई खास लक्षण नहीं दिखते। स्कैनिंग के बाद ही बीमारी की जानकारी मिलती है।

धमनियों की दीवार कमजोर है या नहीं बताएगा थम्ब टेस्ट, ऐसे करें जांच

·         शरीर में एन्युरिज्म का पता लगाने के लिए पहले हाथ के पंजे खोलें

·         अब अंगूठे को सबसे छोटी उंगली तक धीरे-धीरे लाने की कोशिश करें।

·         अंगूठा हथेली के बीच तक आता है तो इस रोग का खतरा कम है।

कब बढ़ता है खतरा

अंगूठा छोटी उंगली की सीमा के बाहर निकल जाता है तो एऑर्टिक एन्यूरिज्म का खतरा हो सकता है। हडि्डयों के लंबा होने और जॉइंट्स के नरम पड़ने से ऐसा होता है, जो इस बीमारी का संकेत हो सकता है।

टेस्ट से अधिकांश लोगों में बीमारी पकड़ी गई

इस टेस्ट को विकसित करने वाले येल यूनिवर्सिटी में प्रो. जॉन ए. एलिफटेरिएड्स बताते हैं कुछ लोगों में टेस्ट पॉजिटिव आने के बाद भी हृदय संबंधी बीमारी नहीं थी, लेकिन अधिकांश में बीमारी पाई गई। यह टेस्ट खासतौर पर उन लोगों को करना चाहिए जिनके परिवार के लोगों में यह रोग हुआ हो।

50% मरीजों की मौत इलाज से पहले हो जाती है

रिसर्च रिपोर्ट कहती है, एऑर्टिक एन्युरिज्म से जूझने वाले 50 फीसदी मरीजों की मौत हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही हो जाती है। सर्जरी के बाद भी मरीज की हालत में सुधार होने की संभावना मात्र 50 फीसदी होती है।

शोधकर्ता इस बीमारी को साइलेंट किलर कहते हैं क्योंकि धमनियों की दीवार डैमेज होने से पहले मरीज को इसका अहसास तक नहीं हो पाता। यह बीमारी एक इमरजेंसी स्थिति पैदा करती है।

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