कोरोना की गेम चेंजर संजीवनी :DRDO की 2DG

डीआरडीओ ने एक नयी दवा लांच की है जिसका नाम है 2डीजी. भारत के औषधि महानियंत्रक (DCGI) ने देश में निर्मित कोविड रोधी दवा के आपात इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है। मुंह के जरिए ली जाने वाली इस दवा को कोरोना वायरस के मध्यम से गंभीर लक्षण मरीजों के इलाज में इस्तेमाल करने की अनुमति सहायक पद्धति के रूप में दी गई है। इस दवा को ऐसे समय मंजूरी मिली है जब भारत कोरोना वायरस की महामारी की दूसरी लहर से घिरा है और देश के स्वास्थ्य अवसंरचना पर भारी दबाव है। आइए जानते हैं इस दवाई से कोविड मरीजों को रिकवरी में कैसे सहायता मिलेगी, दवा की कीमत क्या होगी और ऐसे ही सभी महत्वपूर्ण सवालों के जवाब...

यह नई दवा किसने बनाई है?

इस दवा को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की प्रतिष्ठित प्रयोगशाला नामिकीय औषिध तथा संबद्ध विज्ञान संस्थान (आईएनएमएएस) ने हैदराबाद के डॉ. रेड्डी लेबोरेटरी के साथ मिलकर विकसित किया है। इस दवा का नाम 2-डीजी है। इसका पूरा नाम 2-डीऑक्सी-डी-ग्लूकोज है। सामान्य अणु और ग्लूकोज के अनुरूप होने की वजह से इसे भारी मात्रा में देश में ही तैयार और उपलब्ध कराया जा सकता है।

क्या यह भी इंजेक्शन है या फिर टैबलेट या कुछ और?

2-डीजी दवा पाउडर के रूप में पैकेट में आती है, इसे पानी में घोल कर पीना होता है। गैस और बदहजमी के लीजिए इनो पाउडर जैसे पानी में घोलकर पीते हैं, उसी तरह 2-डीजी को भी पिया जा सकेगा।

2-डीजी पाउडर की कीमत कितनी होगी?

यूं तो इस बारे में आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है। हालांकि, कहा जा रहा है कि एक पैकेट की कीमत 500 से 600 रुपये के बीच हो सकती है। इसका उत्पादन करने वाली दवा कंपनी डॉ. रेड्डीज ही सही दाम का खुलासा करेगी।

दवा मरीजों को किस तरह मदद करती है?

यह दवा उन मरीजों की मदद करेगी जिन्हें सांस लेने में तकलीफ की समस्या होती है। क्लीनिकल टेस्ट में सामने आया कि 2-डीजी दवा अस्पताल में भर्ती मरीजों के जल्द ठीक होने में मदद करने के साथ-साथ अतिरिक्त ऑक्सीजन की निर्भरता को कम करती है। रक्षा मंत्रालय ने कहा, "कोविड-19 की चल रही दूसरी लहर की वजह से बड़ी संख्या में मरीजों को ऑक्सीजन और अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ रही है। इस दवा से कीमती जिंदगियों के बचने की उम्मीद है क्योंकि यह दवा संक्रमित कोशिकाओं पर काम करती है। यह कोविड-19 मरीजों के अस्पताल में भर्ती रहने की अवधि भी कम करती है।

कोरोना के खिलाफ कैसे काम करती है दवा?

कोविड-19 का सामना कर रहे मरीजों को यह दवा बहुत लाभ पहुंचाएगी। 1 मई को डीसीजीआई ने इस दवा को कोविड-19 के मध्यम एवं गंभीर लक्षण वाले मरीजों के इलाज के लिए सहायक पद्धति के रूप में आपात इस्तेमाल की मंजूरी दी। सहायक पद्धति वह इलाज है जिसका इस्तेमाल प्राथमिक इलाज में मदद करने के लिए किया जाता है। 2-डीजी दवा वायरस से संक्रमित कोशिका में जमा हो जाती है और वायरस की वृद्धि को रोकती है। वायरस से संक्रमित कोशिका पर चुनिंदा तरीके से काम करना इस दवा को खास बनाता है।" दवा के असर के बारे में मंत्रालय ने बताया कि जिन लक्षण वाले मरीजों का 2डीजी से इलाज किया गया, वे मानक इलाज प्रक्रिया (एसओसी) से पहले ठीक हुए। 2डीजी से इलाज कराने वाले अधिकतर मरीज आरटी-पसीआर जांच में निगेटिव आए।

डीआरडीओ ने इस दवा पर काम कब शुरू किया था?

डीआरडीओ ने अप्रैल 2020 में महामारी की पहली लहर के दौरान आईएनएमएएस-डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेल्यूलर ऐंड मॉलिक्यूल बायोलॉजी के साथ मिलकर प्रयोशाला में प्रयोग किया और पाया कि ये अणु सार्स कोव-2 वायरस के खिलाफ कारगर हैं और वायरस के संक्रमण को बढ़ने से रोकते हैं।

क्लीनिकल ट्रायल में इस दवा के क्या रिजल्ट मिला?

मंत्रालय के मुताबिक इन नतीजों के बाद डीसीजीआई के केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने मई 2020 में 2-डीजी के कोविड-19 मरीजों पर दूसरे चरण का क्लीनिकल ट्रायल करने की मंजूरी दी। प्रभाव एवं सुरक्षा की जांच करने के बाद मई से अक्टूबर 2020 तक दूसरे चरण का परीक्षण किया गया और पाया गया कि सुरक्षित होने के साथ-साथ कोविड-19 मरीजों के ठीक होने भी मदद करता है। दूसरे चरण के पहले हिस्से में छह अस्पतालों में और द्वितीय चरण के दूसरे हिस्से में देश के 11 अस्पतालों में 110 मरीजों पर परीक्षण किया गया।सफल नतीजों के बाद डीसीजीआई ने नवंबर 2020 में तीसरे चरण के परीक्षण को मंजूरी दी। तीसरे चरण का क्लीनिकल ट्रायल दिसंबर 2020 से मार्च 2021 के बीच देशभर के 27 अस्पतालों के 220 मरीजों पर किया गया। ये अस्पताल दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु के हैं। तीसरे चरण के ट्रायल के आंकड़े डीसीजीआई को दिए गए। नतीजों के मुताबिक 2-डीजी दवा से लक्षण वाले मरीजों में उल्लेखनीय सुधार हुआ और तीसरे दिन से ही एसओसी के मुकाबले इस दवा से ऑक्सीजन निर्भरता (31 प्रतिशत के मुकाबले 42 प्रतिशत) खत्म हो गई। इसी तरह का सुधार 65 साल से अधिक उम्र के मरीजों में भी देखने को मिला।


Post a Comment

0 Comments