आखिर क्यों सरकार ने शुरू किया ऑक्सीजन एक्सप्रेस?

आखिर क्यों सरकार ने शुरू किया ऑक्सीजन एक्सप्रेस?

देश में कोरोना का तांडव थमने का नाम नहीं ले रहा है. रोज़ 1 लाख से ज्यादा केसेस सामने आ रहे हैं ऐसे में सरकार द्वारा की जा रही तमाम कोशिशें बेकार नज़र आ रही हैं.कोरोना की दूसरी लहर ने हमारी सभी तैयारियों की कलई खोलकर रख दी है। कोरोना से हर दिन होने वाली मौतों और मामलों का आंकड़ा नए रिकॉर्ड बना रहा है। ऑक्सीजन और रेमडेसिविर की मांग और खपत कई गुना बढ़ गई है। इससे कुछ राज्यों में ऑक्सीजन की कमी की खबरें भी आने लगी हैं। मध्यप्रदेश में तो अलग-अलग मामलों में ऑक्सीजन की कमी की वजह से करीब 25 लोगों की मौत की खबरें भी हैं। महाराष्ट्र और दिल्ली तक में कोरोना मरीजों के लिए ऑक्सीजन जुटाना मुश्किल हो रहा है। आइए समझते हैं कि राज्यों को कितनी ऑक्सीजन चाहिए और कितनी मिल रही है और केंद्र इसके लिए क्या प्रबंध कर रहा है...

सबसे पहले, जानते हैं कि अचानक ऑक्सीजन की मांग क्यों बढ़ी?

6 अप्रैल से लगातार कोरोना मरीज बढ़ रहे हैं। पिछले तीन दिन में लगातार 2.5 लाख से ज्यादा नए केस सामने आए हैं। ऐसे में कोरोना वायरस से इन्फेक्टेड एक्टिव मरीजों की संख्या भी 20 लाख को पार कर चुकी है। पहले के मुकाबले दूसरी लहर ज्यादा घातक है। ज्यादा मरीजों को ऑक्सीजन एवं अन्य उपायों की जरूरत पड़ रही है। इस वजह से ज्यादा लोगों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है।

ऑक्सीजन पहुंचाने की केंद्र की क्या है तैयारी?

केंद्र ने इसके लिए कई स्तर पर प्रयास तेज कर दिए हैं। भारतीय रेलवे ने मेडिकल ऑक्सीजन ले जाने के लिए ऑक्सीजन एक्सप्रेसनामक ट्रेन चलाने की योजना बनाई है। इसके लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाए जा रहे हैं ताकि ट्रेन बिना किसी रुकावट के जल्द से जल्द मंजिल तक पहुंच सके। 19 अप्रैल को महाराष्ट्र से खाली टैंकर लेकर विशेष ट्रेनें विशाखापट्टनम, बोकारो और राउरकेला गईं, जहां से इनमें लिक्विड ऑक्सीजन भरा गया। इसके लिए विशाखापट्टनम, अंगुल और भिलाई में विशेष रैम्प बन रहे हैं ताकि ऑक्सीजन टैंकरों को रेलवे के फ्लैट डिब्बों पर चढ़ाया जा सके।

इसके अलावा केंद्र की तरफ से सबसे अधिक प्रभावित 12 राज्यों को 6,177 मीट्रिक टन ऑक्सीजन प्रदान की जाएगी। इन राज्यों में ऑक्सीजन की और जरूरत पड़ सकती है। केंद्र की योजना है कि 30 अप्रैल तक इन 12 राज्यों को 17 हजार टन से अधिक ऑक्सीजन सप्लाई की जाए। इनमें महाराष्ट्र, दिल्ली, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान शामिल हैं।

गृह मंत्रालय ने 22 अप्रैल से उद्योगों को ऑक्सीजन की सप्लाई पर रोक लगा दी है। हालांकि यह प्रतिबंध 9 उद्योगों पर नहीं लगेगा, जिनमें फार्मा, पेट्रोलियम, पानी और खाने से जुड़े उद्योग शामिल हैं। सरकार ने इसके अलावा दूसरे सभी उद्योगों को ऑक्सीजन के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने को कहा है।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने 100 अस्पतालों को चिन्हित कर वहां ऑक्सीजन उत्पादन के लिए Pressure Swing Adsorption प्लांट लगाने की तैयारी की है। इन प्लांट की मदद से ये अस्पताल अपने इस्तेमाल की ऑक्सीजन का उत्पादन खुद ही कर सकेंगे। ऐसे 162 प्लांट्स का काम पीएम केयर्स फंड के तहत पहले से चल रहा है।

फिलहाल कितने मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है?

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA)-महाराष्ट्र चीफ अविनाश भोंडवे के मुताबिक कुल मरीजों में से 10% को ऑक्सीजन लग रही है। मौजूदा 20 लाख एक्टिव मरीजों में से औसत करीब 2 लाख लोगों को ऑक्सीजन की जरूरत होगी।

हर राज्य में एक्टिव मरीजों की संख्या के हिसाब से ऑक्सीजन की अलग-अलग जरूरत है। हालांकि विशेषज्ञों के दावे अलग-अलग हैं। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि एक्टिव केसेज के 60-70 प्रतिशत मरीज ऐसे है जिनमें संक्रमण की वजह से फेफड़ों पर असर पड़ा है और उन्हें ऑक्सीजन की जरूरत है।

ऑक्सीजन सप्लाई में परेशानी कहां आ रही है

सिलेंडर की कमीः मेडिकल ऑक्सीजन को विशेष टैंकरों में निश्चित तापमान पर एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाता है। प्रोडक्शन के बाद इस ऑक्सीजन को लिक्विड फार्म में टैंकरों में भरा जाता है। अस्पताल में इस लिक्विड ऑक्सीजन को फिर से गैस में बदला जाता है। पूरी प्रक्रिया में जंबो और ड्यूरा सिलेंडर चाहिए होते हैं, जिनकी कमी है।

टैंकर से सप्लाई में समयः राज्यों को टैंकर से ऑक्सीजन सप्लाई की जाती है। इसका सीधा-सीधा मतलब है कि दूरी जितनी ज्यादा होगी, टैंकर को पहुंचने और वापस प्लांट में लौटने में उतना ज्यादा समय लगेगा।

संसाधन भी कमः छोटे नर्सिंग होम या अस्पताल जिन्हें कोविड सेंटर में बदल दिया गया है, वहां ऑक्सीजन को स्टोर करने के लिए जरूरी संसाधन नहीं है। इस वजह से ये सेंटर टैंकरों से ऑक्सीजन की डेली सप्लाई पर निर्भर हैं।

क्या नए ऑक्सीजन प्लांट समस्या का समाधान हैं?

केंद्र सरकार के अनुसार देश में प्रतिदिन 7127 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का प्रोडक्शन किया जा सकता है। इसके बाद भी विशेषज्ञों का मानना है कि ऑक्सीजन प्रोडक्शन के लिए नए प्लांट लगाने में डेढ़-दो साल लग जाएंगे। खर्च भी काफी आएगा। फिलहाल इस विकल्प पर कोई विचार नहीं किया जा सकता।

स्टील कंपनियां आगे आईं, ऑक्सीजन कर रही हैं सप्लाई

अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन के कम होते ही सरकार ने भी उद्योगों से मदद की अपील की थी। इसके बाद स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) ने अपने 5 स्टील प्लांट्स से 35 हजार टन 99.7% प्योर लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन सप्लाई की है। सेल ने पिछले पांच दिनों में हर दिन 600 टन के हिसाब से लिक्विड ऑक्सीजन उपलब्ध कराई है। यह भारत में उद्योग से आई सबसे बड़ी मात्रा है।

इसके अलावा टाटा स्टील और आर्सेलरमित्तल निप्पोन स्टील इंडिया (AMNS इंडिया) ने कोविड के इलाज के लिए ऑक्सीजन की सप्लाई शुरू कर दी है। यह सप्लाई राज्य सरकारों और अस्पतालों को दी जा रही है। कोविड-19 के मरीजों के इलाज के लिए लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन यानी LMO बेहद आवश्यक है।

टाटा ग्रुप की स्टील कंपनी टाटा स्टील ने रविवार को कहा कि देश की आवश्यकता को देखते हुए हमने ऑक्सीजन की सप्लाई शुरू कर दी है। कंपनी ने कहा कि हम रोजाना 200-300 टन लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की सप्लाई कर रहे हैं। यह सप्लाई विभिन्न राज्य सरकारों और अस्पतालों में की जा रही है। कंपनी ने कहा कि हम इस लड़ाई में एकजुट हैं और निश्चित तौर पर इसमें जीतेंगे।

आर्सेलरमित्तल निप्पोन स्टील इंडिया (AMNS इंडिया) ने कहा है कि वह रोजाना 200 टन मेडिकल ऑक्सीजन की सप्लाई कर रही है। यह ऑक्सीजन गुजरात की हेल्थ एजेंसियों को दी जा रही है। AMNS इंडिया के CEO दिलीप ओम्मान ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता के तहत हम सभी एजेंसियों के साथ खड़े हैं।

रिलायस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) ने कोविड से बुरी तरह जूझ रहे महाराष्ट्र को 100 टन ऑक्सीजन मुफ्त देने का वादा किया है। इसके अलावा मध्य प्रदेश के इंदौर को 60 टन ऑक्सीजन भेजी गई है। यह ऑक्सीजन रिलायंस की जामनगर रिफाइनरी से भेजी जा रही है। जामनगर रिफाइनरी से अन्य राज्यों को भी ऑक्सीजन की सप्लाई की जा रही है।

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