5 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुए नक्सली हमले में लापता हुए कोबरा जवान रोकेश्वर सिंह को कल नक्सलवादियों ने छोड़ दिया है. लेकिन कोबरा जवान को छुड़ाने के सरकार और नक्सलवादियों के बीच एक सीक्रेट समझौता हुआ है. इस डील का खुलासा तब हुआ जब राकेश्वर की रिहाई के लिए पत्रकारों की टीम मध्यस्थों के साथ नक्सलियों के गढ़ में पहुंची। बीजापुर मुठभेड़ स्थल से सुरक्षाबलों ने कुंजाम सुक्का नाम के एक आदिवासी को अपने कब्जे में ले लिया था। नक्सलियों ने राकेश्वर सिंह को छोड़ने के बदले इस आदिवासी की रिहाई की शर्त रखी थी। सुरक्षा बलों ने कुंजाम सुक्का को मध्यस्थों के साथ नक्सलियों के पास भेजा। इसका हैंडओवर मिलने के बाद ही नक्सलियों ने राकेश्वर सिंह को पत्रकारों के हवाले किया। पढ़िए 8 अप्रैल को घटे सारे घटनाक्रम की इनसाइड स्टोरी।
बीजापुर जिले के जोनागुड़ा गांव से 15 किलोमीटर अंदर
के इलाके में CRPF के कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह को रखा
गया था। गुरुवार दोपहर उन्हें प्रशासन की तरफ से तय मध्यस्थों और पत्रकारों की एक
टीम को सौंप दिया गया। 5 दिनों से नक्सलियों के कब्जे में रहे कमांडो को जब नक्सली
छोड़ रहे थे, वहां करीब 40 नक्सली मौजूद थे। आस-पास के 20
गांव के लोगों को बुलाया गया था। इन सबके बीच जवान को छोड़ा गया। जब कमांडो की
रिहाई हो रही थी तो बीजापुर और सुकमा के पत्रकार गणेश मिश्रा, राजन दास, मुकेश चंद्राकर, युकेश
चंद्राकर, शंकर और चेतन वहां मौजूद थे।
सुबह 5 बजे हुए थे रवाना
बीजापुर के SP
कमलोचन कश्यप ने बताया कि सुबह 5 बजे से मध्यस्थों की टीम और पत्रकार बीजापुर से रवाना हुए
थे। पत्रकारों में शामिल मुकेश चंद्राकर ने बताया कि हमें जोनागुड़ा आने के लिए
कहा गया था। भीषण गर्मी उबड़-खाबड़ रास्तों से होते हुए हम जोनागुड़ा दोपहर तक
पहुंचे। बीजापुर जिला मुख्यालय से ये जगह करीब 80 से 85 किलोमीटर दूर है। यहां पहुंचने के बाद और करीब 15 किलोमीटर अंदर हम गए। करीब दो से तीन घंंटे के तनाव भरे
माहौल के बाद कमांडो राकेश्वर को छोड़ा गया। शाम 5 से 6 बजे के करीब हम जवान को तर्रेम थाना लेकर आए,
जिसके बाद उन्हें पुलिस और CRPF के हवाले किया गया।
बीजापुर में
बीते शनिवार को हुई मुठभेड़ के बाद CRPF के कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह को नक्सलियों ने अगवा कर
लिया था। 5 दिन बाद गुरुवार को रिहा हुए राकेश्वर जब कैंप पहुंचे तो CRPF
की तरफ से कहा गया कि 210 कोबरा बटालियन के सिपाही राकेश्वर सिंह मनहास सुरक्षित हैं।
CRPF
के नियमानुसार मनहास की चिकित्सा परीक्षण कराया जा रहा है।
इस संबंध में उनके परिवार को सूचित कर दिया गया है। साथ ही उनके परिजन से मोबाइल
के माध्यम से मनहास की बात भी करा दी गई है। कमांडो को अपनी बाइक पर बैठाकर लाने
वाले पत्रकार शंकर ने बताया उन्होंने जब राकेश्वर से पूछा तो उन्होंने कहा था कोई
परेशानी नहीं है, मैं ठीक हूं।
कमांडो राकेश्वर
से पत्रकारों ने रिहा होते ही बात करने को कहा। इस पर राकेश्वर धीरे से बोले कि
यहां से जल्दी चलो। बातचीत कैंप में कर लेंगे। राकेश्वर ने बताया कि नक्सलियों ने
उनसे कहा था कि वो उन्हें सुबह 9 बजे रिहा करेंगे। राकेश्वर सिंह अंधेरा होने से पहले कैंप
पहुंचने की हड़बड़ी में नजर आए। पत्रकार भी स्थिति को समझकर उन्हें तर्रेम थाना लेकर
आए।
नक्सलियों ने
सरकार से मांग रखी थी कि निष्पक्ष मध्यस्थों को भेजें,
हम जवान को छोड़ देंगे। जवान की रिहाई के लिए गए पत्रकार
युकेश ने बताया कि वहां 20 गांवों के लगभग 2 हजार लोगों की भीड़ थे। ये देखकर हम डर गए थे,
क्योंकि कुछ भी हो सकता था। मौजूद गांव के लोगों,
पत्रकारों और मध्यस्थों पर नक्सली नजर बनाए हुए थे।
मध्यस्थों के पहुंचते ही पहले जवान को नहीं लाया गया। नक्सलियों ने पहले पूरे
माहौल को भांपा और इसके बाद जंगल की तरफ कुछ हलचल दिखी। करीब 35 से 40 हथियार बंद नक्सली कमांडो राकेश्वर को लेकर लोगों के बीच
आए।
नक्सलियों ने
ग्रामीणों से की ये बातें, कैमरा बंद रखने को कहा
जवान को लाने
के बाद कुछ नक्सलियों ने पूरे इलाके को घेर लिया, कुछ जवान को घेरे खड़े हुए तो कुछ मध्यस्थता करने वालों को।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक ये नक्सली पामेड एरिया कमेटी के थे। इनके साथ
एक महिला नक्सली थी जो पूरे नक्सलियों को लीड कर रही थी। आते ही नक्सलियों ने
पत्रकारों से कह दिया कि कोई भी कैमरा ऑन नहीं करेगा। जवान की सुरक्षा का मामला था,
इसलिए पत्रकारों ने नक्सलियों की बात मानी। इसके बाद
नक्सलियों ने वार्ता करने आई आदिवासी समाज की तेलम बौरैया और सुखमति हक्का को
बुलाकर कुछ बातें कीं।
नक्सलियों ने
ग्रामीणों से कहा कि जोनागुड़ा में मुठभेड़ के बाद राकेश्वर उन्हें बेहोशी की हालत
में मिले थे। 5 दिनों तक उन्हें सुरक्षित रखा गया, कुछ चोटें भी राकेश्वर को आईं थीं उनका इलाज करवाया गया। अब
हम उन्हें सुरक्षित छोड़ रहे हैं। नक्सलियों की महिला लीडर ने साफ-साफ कहा हम
इन्हें पत्रकारों को सौंप रहे हैं ताकि ये इन्हें लेकर कैंप तक जाएं,
रास्ते में इन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। काफी देर तक
सभी इंतजार करते रहे फिर जवान को रिहा किया। जब जवान को छोड़ा जाने लगा तो आग्रह
करने पर मीडिया को वीडियो बनाने की अनुमति दी।
पुलिस के आला
अफसरों ने एक अहम जानकारी इस पूरी रिहाई के केस में छुपा रखी थी। सूत्रों से मिली
जानकारी के मुताबिक नक्सलियों के पास जाने से पहले ही मध्यस्थों को कुंजाम सुक्का
नाम का ग्रामीण सौंपा गया था। ये ग्रामीण मुठभेड़ वाली जगह से हिरासत में लिया गया
था। नक्सलियों ने जवान को रिहा करने से पहले मध्यस्थों से पूछा कि वो ग्रामीण कहां
है। तो मध्यस्थों ने कहा कि हम उसे साथ लेकर आए हैं। उस ग्रामीण को गांव वालों के
सामने नक्सलियों को सौंपा गया। इसके बदले जवान को नक्सलियों ने रिहा किया।
पत्रकार युकेश
और राजन ने बताया कि जवान को छोड़ने के वक्त शाम को करीब 4
बजे के आस-पास पूरे ग्रामीण आक्रोशित हो गए थे। गांव के
लोगों ने नक्सलियों से कहना शुरू कर दिया था कि जवान को छोड़कर वो गलती कर रहे हैं,
इसे मत छोड़ो, मत रिहा करो। हंगामा बढ़ता, इससे पहले ही जवान और मध्यस्थों के साथ पत्रकार बाइक में
सवार होकर निकल गए। नक्सलियों और बहुत से ग्रामीणों ने अब पत्रकारों और मध्यस्थों
के सामने ये शर्त भी रख दी है कि आने वाले दिनों में जब फोर्स के लोग आदिवासियों
को हिरासत में लें तो उन्हें छुडा़ने के लिए भी इसी तरह की वार्ता और मध्यस्थता और
पहल करनी होगी।
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