वित्तमंत्री के पति , अर्थशास्त्री परकला प्रभाकर की बड़ी बात :
कोरोना की दूसरी लहर में हर तरह से फेल हुई सरकार, संक्रमण और मौत के आंकड़े वास्तविक नहीं, वैक्सिनेशन की रफ्तार भी धीमी
दुनियाभर में कोरोना संक्रमण की रफ्तार अब भारत में सबसे ज्यादा तेज है। हर दिन होने वाली मौतें और स्वास्थ्य असुविधाओं से लोग बेहाल हैं। जनता सरकार से पूछ रही है कि सालभर में आपने इस ओर क्या कदम उठाएं? मामले पर अब जाने माने इकोनॉमिस्ट और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति परकला प्रभाकर ने भी सरकार की आलोचना की है।
अपने यूट्यूब चैनल मिडवीक मैटर्स ( https://www.youtube.com/results?search_query=midweek+matters पर उन्होंने कई बाते कहीं..
अब हम जो कुछ देख रहे हैं, वो हेल्थ इमरजेंसी है। बीते सोमवार को एक दिन में देश में 2.59 लाख केस आए। 1761 मौतें हुईं, जो देश में एक दिन का सर्वाधिक स्तर था। जब से महामारी शुरू हुई है तब से 1.80 लाख से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं। हम जानते हैं कि संक्रमण और मौत के आंकड़े वास्तविकता से काफी कम हैं।
हालात बदतर हो रहे डॉक्टर हमें बता रहे हैं कि हालात बदतर हो रहे हैं। टेस्टिंग घट रही हैं। हॉस्पिटल और लैब सैंपल लेने से मना कर रहे हैं क्योंकि उन पर काम का इतना दबाव है कि वे सभी सैंपल का टेस्ट नहीं कर सकते हैं। बीते रविवार को सिर्फ 3.56 लाख टेस्ट हुए जो उससे एक दिन पहले हुए टेस्ट से करीब 2.1 लाख कम हैं।
हमारे सियासी और धार्मिक नेताओं पर जूं तक नहीं रेंग रही
कोविड अस्पतालों के बाहर एंबुलेंस और संक्रमित लोगों की कतारें, श्मशान घाटों में एक साथ धधकती दर्जनों चिताएं, एक बेड पर कई मरीजों की तस्वीरों से सोशल मीडिया पर बाढ़ आई हुई है, लेकिन हमारे सियासी और धार्मिक नेताओं पर जूं तक नहीं रेंग रही है। सियासी पार्टियों के लिए चुनाव जरूरी हैं और धार्मिक नेताओं के लिए उनकी धार्मिक पहचान। पब्लिक हेल्थ, लोगों का जीवन इनके लिए बिल्कुल मायने नहीं रखता। हमारे टेलीविजन दिखाते हैं कि कैसे प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और विपक्षी नेताओं की चुनावी रैलियों के लिए हजारों की भीड़ जुटाई गई।
कुंभ मेला के शाही स्नान के लिए लाखों लोग जुटे। स्थिति बिगड़ने के बाद धार्मिक नेता कहते हैं कि कुंभ मेले को सांकेतिक रखा जाएगा और राहुल गांधी अपनी रैलियां रद्द कर देते हैं। बंगाल में प्रमुख प्रतिद्वंद्वी भाजपा और टीएमसी कोविड प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाते हुए रैलियां कर रही हैं। हद तो तब होती है जब कुछ एक्सपर्ट, एनालिसिस और सियासी नेता इन चुनावी रैलियों और कुंभ मेले में जुटी भीड़ को जायज ठहराने में लग जाते हैं। उनको सुनकर मुझे काफी गुस्सा आता है। अब यह सुनकर और धक्का लगा, जब वे तर्क देते हैं कि दूसरों देशों की तुलना में हमारी स्थिति अच्छी है।
कुछ लोगों के दिलों में कोई संवेदना नहीं
वे अर्थहीन, बेमेल और सेलेक्टिव डेटा रख रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इन लोगों के दिलों में उनके लिए कोई संवेदना नहीं हैं, जिन्होंने अपनों को खोया है। हम इस ड्राइ नंबर की वजह से पूरे संकट को नजरअंदाज कर रहे हैं। हम इन नंबर के पीछे के चेहरे, परिवारों को इग्नोर कर रहे हैं। यदि हम प्रति 10 लाख आबादी के हिसाब से संक्रमण की दर, मृत्युदर की तुलना दूसरों देशों से करें तो हमारा प्रदर्शन पड़ोसी देश भूटान, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश से भी खराब है। कोरोना वायरस से लड़ने के लिए हमें 70 करोड़ लोगों का टीकाकरण करना होगा।
वंचित वर्ग को मदद पहुंचाने के बजाय सरकार ने हेडलाइंस मैनेजमेंट पर फोकस किया
इकोनॉमिक पैकेज के जरिए वंचित वर्ग को मदद पहुंचाने की जगह सरकार हेडलाइंस मैनेजमेंट में लगी रही। देशभर में प्रवासी मजदूरों के मार्च ने सरकार की निष्ठुरता को उजागर किया। हमने बीते साल अप्रैल से लेकर अब तक सिर्फ 19,461 वेंटिलेटर, 8,648 ICU बेड और 94,880 ऑक्सीजन सपोर्टेड बेड जोड़े। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने सदन में दिए एक जवाब में बताया कि 9 राज्यों के अस्पतालों की क्षमता घट गई है। इसलिए हॉस्पिटल के बाहर लगी एंबुलेंस की लंबी कतारें देखकर हैरानी नहीं होती है।
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