.... कोरोनाकाल आज है कल बीत जायेगा ...मानवता का दामन न छूटे !

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कितना बुरा लगता है न जब एक माँ के आँखों के ही सामने उसका जवान बेटा दम तोड़ दे. देश कोरोना से जूझ रहा है। इस मुश्किल वक्त में मानवता को झकझोर देने वाली कई कहानियां सामने आ रही हैं। ऐसी ही एक कहानी है जौनपुर के विनीत सिंह की। ई-रिक्शे में विनीत के शव को संभाल रहीं उनकी मां की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी हैं। इस मर्म को आप भी समझिए कि आखिरी क्या हुआ था विनीत के साथ।

विनीत पिछले साल तक मुंबई में ही प्राईवेट नौकरी करता था। पिछले लॉकडाउन में (मई 2020) वो अपने गांव वापस आ गया था। लेकिन इस बार मौत ने उसे अपनी आगोश में समेट लिया। उसे इलाज नहीं मिल सका और सोमवार को उसने आखिरी सांस ली।

बेटे के इलाज के लिए भटकती रही मां

विनीत के साथ क्या हुआ? ये उसके बड़े भाई धर्मेंद्र ने मुंबई से फोन पर बताया। वो कहते हैं- हम जौनपुर के मड़ियाहूं में शीतलगंज के रहने वाले हैं। परिवार में बुजुर्ग मां चंद्रकला भी हैं। हम चार भाई थे, दूसरे नंबर का भाई संदीप था। उसकी दो साल पहले बीमारी से मौत हो चुकी है। बहन की शादी हो चुकी है। चौथे नंबर पर विनीत था। सबसे छोटा भाई सुमित है, जो मुंबई में ही जॉब करता है।

घर से मां एडमिट कराने निकली, लेकिन बेजान बेटे के साथ लौटी

धर्मेंद्र आगे कहते हैं- विनीत को लंबे वक्त से किडनी की बीमारी थी। मई 2020 में जब लॉकडाउन लगा तो वो मुंबई का प्राइवेट जॉब छोड़कर मां के पास गांव चला गया। तब से दोनों गांव में ही रहते थे। सोमवार को उसकी हालत बिगड़ी। मां ने गांव के लोगों से मदद मांगी और विनीत को कार से BHU ले आईं। मां को वहां की जानकारी तो थी नहीं, इसलिए भटकती रही। BHU में विनीत को भर्ती नहीं किया गया। थक-हारकर मां उसे ई-रिक्शा से ककरमत्ता के किसी अस्पताल पहुंची। वहां भी इलाज नहीं मिला। इसी दौरान भाई ने रिक्शा में ही दम तोड़ दिया। मडुआडीह के रहने वाले सचिन चौधरी ने फोन पर मुझे इसकी जानकारी दी।

परिजनों तक ने नहीं की मदद

आगे की कहानी सचिन बताते हैं। उनके मुताबिक- मैंने देखा कि एक बुजुर्ग महिला ई-रिक्शा में बैठी है। बैग में कुछ खोज रही है। उस महिला के पैरों के पास एक लड़के का शव रखा था। मैंने उनसे बातचीत की तो उन्होंने कहा कि वे परिजनों को फोन लगाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन लग नहीं रहा। मैंने उनके कहने पर कुछ लोगों को फोन लगाया, लेकिन उन परिजनों ने फोन ही काट दिया। आखिरकार मैंने मुंबई में धर्मेंद्र को फोन लगाया। मां ने उससे कहा- कउनो एडमिट नाही कइने सब" विनीत नहीं रहल। फिर मैंने उनके गांव के कुछ और लोगों को फोन किया। कुछ घंटे बाद वे आए। विनीत का शव और उसकी मां को ले गए।

रिक्शेवाले ने मदद की

सचिन कहते हैं- रिक्शा वाला विनीत का शव और उसकी बुजुर्ग मां को लेकर घूमता रहा। उसने विनीत की मां से कहा था- मां जी, जरूरत पड़ी तो जौनपुर तक आपको छोड़कर आउंगा। BHU के MS से जब इस मामले में बात करने की कोशिश की तो उन्होंने फोन ही नहीं उठाया।

(हर दिल में होते हैं ज़ज्बात, हर मन में हिचकोले लेते हैं ख्यालात कीजिये बयाँ अपने अहसासों को....

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