प्लाज्मा थैरेपी:कब कहाँ और क्यों?
कोविड के मरीज़ दिन प्रति दिन बढ़ते ही जा रहे हैं ऐसे में
ज़रूरी है किहम अपना और अपनों का पूरा ख्याल रखें. कोरोनावायरस के गंभीर मरीजों की
संख्या बढ़ने के साथ ही मेडिकल रिसोर्सेस की मांग भी बढ़ गई है। ऑक्सीजन सिलेंडर
से लेकर कंसंट्रेटर और एंटीवायरस दवाओं की जरूरत महसूस हो रही है। इस समय तमाम
सोशल मीडिया पर प्लाज्मा डोनेट करने वालों को खूब तलाशा जा रहा है। दिल्ली के
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो खुद ही आगे आकर लोगों से कह रहे हैं कि जो कोरोना
से रिकवर हो चुके हैं,
उन्हें प्लाज्मा डोनेट करना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा
लोगों की जान बचाई जा सके।
पर क्या वाकई में प्लाज्मा थैरेपी कारगर है? क्या कोरोना के गंभीर मरीजों की जान बचाने में यह थैरेपी मदद कर रही है?
क्या है प्लाज्मा थैरेपी?
कॉन्वल्सेंट प्लाज्मा थैरेपी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें
इन्फेक्शन से रिकवर हुए व्यक्ति के शरीर से खून लिया जाता है। खून का पीला तरल
हिस्सा निकाला जाता है। इसे इन्फेक्टेड मरीज के शरीर में चढ़ाया जाता है। थ्योरी
कहती है कि जिस व्यक्ति ने इन्फेक्शन से मुकाबला किया है उसके शरीर में एंटीबॉडी
बने होंगे। यह एंटीबॉडी खून के साथ जाकर इन्फेक्टेड व्यक्ति के इम्यून सिस्टम को
मजबूती देंगे। इससे इन्फेक्टेड व्यक्ति के गंभीर लक्षण कमजोर होते हैं और मरीज की
जान बच जाती है।
क्या कोरोना मरीजों में प्लाज्मा थैरेपी कारगर है?
काफी हद तक। पर इसके सबूत नहीं है। प्लाज्मा थैरेपी एक
मान्य प्रक्रिया है,
पर कोरोना मरीजों में यह कितनी कारगर है? इसे
लेकर कई तरह की बातें हैं। दिल्ली के HCMCT
मणिपाल हॉस्पिटल द्वारका के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. देवेंद्र
कुंद्रा का कहना है कि अगर कोरोना की वजह से हुए मॉडरेट से सीवियर निमोनिया की
शुरुआती स्टेज में ही प्लाज्मा थैरेपी का इस्तेमाल किया जाए तो जान बचाने में मदद
मिलती है।
वैसे,
WHO से लेकर किसी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की बॉडी ने इस थैरेपी
की पुष्टि नहीं की है। अमेरिका में रेगुलेटर US-FDA ने भी इसे इमरजेंसी यूज के
लिए अनुमति तो दी थी,
पर नतीजों की पुष्टि नहीं हुई है। यानी इस बात की कोई
गारंटी नहीं है कि कोरोना मरीजों पर यह उपचार सफल रहेगा ही। पर कई स्टडीज बताती
हैं कि प्लाज्मा थैरेपी से रिकवरी फास्ट होती है। मरीज के हॉस्पिटलाइजेशन का वक्त
भी कम होता है।
क्या प्लाज्मा थैरेपी कोरोना की मृत्यु दर कम कर सकती है?
कुछ हद तक। दरअसल,
विशेषज्ञ और डॉक्टर इस थैरेपी का इस्तेमाल इमरजेंसी यूज के
तौर पर कर रहे हैं। डॉ. कुंद्रा की मानें तो यह एक लाइफसेविंग थैरेपी है क्योंकि
मॉडरेट से गंभीर लक्षणों वाले मरीजों में यह अच्छा असर दिखा रही है। इसी वजह से
देशभर के कई अस्पतालों में इसका इस्तेमाल हो रहा है।
कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच कई गंभीर मरीजों पर यह
थैरेपी ने कमाल दिखाया है। जान बचाने में मदद मिली है। इस वजह से इसकी मांग बढ़ी
है। हालांकि, इस संबंध में और रिसर्च करने की आवश्यकता है कि प्लाज्मा थैरेपी मृत्यु दर को
कम कर सकती है या नहीं।
इससे पहले मेडिकल प्रोफेशनल्स ने प्लाज्मा थैरेपी को
अप्रचलित करार दिया था। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने भी
पिछले साल दावा किया है कि कोरोना से जुड़ी मौतों को कम करने में प्लाज्मा थैरेपी
से कोई मदद नहीं मिली है।
प्लाज्मा कौन डोनेट कर सकता है?
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कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या को देखकर केंद्र सरकार ने
प्लाज्मा थैरेपी की इजाजत दी है। जो लोग इन्फेक्शन से रिकवर हो चुके हैं वे अपना
प्लाज्मा रिकवरी के 28-30 दिन बाद डोनेट कर सकते हैं। उनकी उम्र 18 से 60 वर्ष के बीच होना आवश्यक है। वजन भी 50 किलो या अधिक होना चाहिए।
·
प्लाज्मा डोनेशन में उन लोगों को प्राथमिकता दी जाती है
जिन्हें इन्फेक्शन के दौरान किसी न किसी तरह के लक्षण (जैसे बुखार, सर्दी, खांसी, आदि)
दिखे हों। इनमें एंटी-कोरोना IgG
एंटीबॉडी की मात्रा ज्यादा होने की संभावना ज्यादा होती है।
इसके मुकाबले उन लोगों में एंटीबॉडी कम होती हैं, जिन्हें लक्षण न रहे हों।
क्या इसमें कोई रिस्क शामिल है?
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नहीं। अब तक तो प्लाज्मा थैरेपी से जुड़ा कोई रिस्क सामने
नहीं आया है। पर यह महत्वपूर्ण है कि इस प्रक्रिया को मेडिकल प्रोफेशनल की मौजूदगी
में किया जाए। कुछ रिस्क तभी हो सकता है जब रिसीवर और डोनर का उचित मूल्यांकन न
कराया गया हो।
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प्लाज्मा थैरेपी के बाद एलर्जिक रिएक्शन, फेफड़ों
को नुकसान और सांस लेने में दिक्कत,
HIV और हेपेटाइटिस B
और C
का इन्फेक्शन होने का रिस्क रहता है। पर डोनर के प्लाज्मा
का सही असेसमेंट किया हो तो इस रिस्क को कम से कम किया जा सकता है।
प्लाज्मा डोनेशन के दौरान क्या करें और क्या न करें?
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केंद्र सरकार ने प्लाज्मा डोनेट करने वालों के लिए नियम
बनाए हैं कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं...
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डोनेशन के बाद चार महीने तक कोरोना निगेटिव रिजल्ट (RT-PCR टेस्ट) और अपने आधार कार्ड (आगे-पीछे) की हार्ड कॉपी साथ रखें।
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आपमें कोई लक्षण नहीं थे तो कोविड-19 पॉजिटिव
रिजल्ट के 14 दिन बाद ही डोनेट करें। अगर आपमें लक्षण रहे हैं तो आप लक्षण खत्म होने के 14 दिन
बाद डोनेट कर सकते हैं।
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जो महिलाएं पहले कभी गर्भवती हुई हैं, वह
कोविड-19 कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा डोनेट नहीं कर सकती।
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जिस व्यक्ति ने कोरोना वैक्सीन लगवाई है, वह वैक्सीन
लगवाने के 28 दिन तक प्लाज्मा डोनेट नहीं कर सकता।
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एक व्यक्ति प्लाज्मा डोनेट नहीं कर सकता अगर खून में
पर्याप्त एंटीबॉडी नहीं होने की वजह से उसकी पेशकश ठुकराई गई हों।
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इस संबंध में किसी भी अतिरिक्त जानकारी के लिए अपने डॉक्टर
और अस्पताल के संपर्क में रहें और सलाह के बाद ही प्लाज्मा डोनेशन का फैसला करें।
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