विपत्ति को बनाया अवसर
महामारी के दौर में कई लोगों की नौकरियां,
जीने की आस और उम्मीद छूट गयी है. लेकिन इस विपत्ति को अवसर में कैसे बदला जाता है
ये जानना है तो आप अलीगढ के घासीपुर गाँव जा सकते हैं. जहाँ के लोगों ने बेरोजगारी
को रोजगार में तब्दील कर दिया. घासीपुर। मडराक क्षेत्र के इस गांव में घुसते ही
लगेगा कि किसी रेडीमेड गारमेंट्स के हब में आ गए। गांव में कहीं लोअर बनते दिखेंगे
तो कहीं टीशर्ट। महिलाएं घर के काम के साथ स्वरोजगार करती नजर आएंगी। कोरोना से
पहले चार-पांच जगह ही काम होता था, लेकिन
लाकडाउन में गांव का स्वरूप ही बदल गया। आज कपड़े तैयार करने की 20 फैक्ट्रियां हैं। हजारों रुपये तक सिमटने वाला कारोबार अब करीब एक करोड़
प्रति माह का है।
लॉकडाउन में घर लौटे थे गांव के युवा
लॉकडाउन में रोजगार छिनने पर युवा शहरों
से गांव लौट आए। गांव में बेरोजगारी बढ़ गई। रोजगार की तलाश में जुटे युवाओं की
मदद को कुछ फैक्ट्री संचालक आगे आए। उन्होंने कुछ महिलाओं को मशीनों के साथ काम
दिया। फैक्ट्री संचालक मेहंदी हसन बताते हैं कि शुरू के डेढ़ महीने तो यहां भी
सन्नाटा था। बेरोजगारी बढ़ रही थी। तब पुलिस ने काम शुरू करने की इजाजत दी। मगर,
कपड़े की सप्लाई कहां दी जाए, यह समस्या थी।
ढील मिलने पर युवकों ने दूसरे गांवों व शहरों में कपड़े सप्लाई करने और फेरी लगाकर
बेचना शुरू किया। महिलाओं ने घर ले जाकर कपड़ों की सिलाई की। कारोबार दोगुने से
अधिक हो गया। कारोबार से जुड़े नादर खान बताते हैं कि अब गांव में खुशहाली है।
गांव का बदला स्वरूप
गांव में चार सौ घर हैं। अधिकांश में
महिलाएं कपड़ों की सिलाई करती हैं। 20 छोटी-बड़ी
फैक्ट्रियां हैं, जिनमें करीब 250 लोग
काम कर रहे हैं। एक फैक्ट्री में औसतन पांच सौ से सात सौ टीशर्ट रोज तैयार होती हैं।
कुछ फैक्ट्रियों में लोअर व शर्ट भी बन रही हैं। ये कपड़े दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, गुजरात व
मध्यप्रदेश तक भेजे जा रहे.
आय का गणित
फैक्ट्री संचालकों ने बताया कि प्रति
टीशर्ट की लागत 50 से 100 रुपये तक आती है। टीशर्ट के लिए बड़ी फैक्ट्रियों से रिजेक्ट फैब्रिक लाते
हैं। कटिंग के लिए कारीगर रखे हैं, जिन्हेंं तीन रुपये प्रति
पीस के हिसाब से भुगतान दिया जाता है। सिलाई करने वालों को सात रुपये प्रति टीशर्ट
मिलता है। बाजार में येे टीशर्ट दो सौ से चार सौ रुपये तक में बिकती है।
रेडीमेड गारमेंट्स फेरी का काम करता था।
लाकडाउन में गांव आकर रेडीमेड गारमेंट्स की फैक्ट्री डाल ली,
जिसमें 20 बेरोजगारों को रोजगार दिया है।
-योगेश कुमार,
रेडीमेड गारमेंट्स मैन्युफैक्चर्स
जयपुर में ब्रांडेड रेडीमेड गारमेंट्स
फैक्ट्री में काम करता था। लाकडाउन में फैक्ट्री बंद हो गई। तब गांव आकर काम शुरू
किया।
-शीशपाल सिंह,
कारीगर
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